पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७७४

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अभिनेता-अभिपौड़न भिनेता (सं० पु.) अभिनय देखानेवाला व्यक्ति, च दृष्टि भवेत्तस्य समर्था रूपदर्शने नाटकका पात्र, जो शख स खांग करता हो। न घ्राण' न च संस्पर्श शब्द वा नेव बुध्यते ॥ पभिनेट (सं० त्रि०) अभिनयति हस्तादि चेष्टया शिरो लोटवतेऽभौक्षामाहार' नाभिनन्दति । पूर्वभूतभावं व्यञ्जयति, -अभि-नी-टच् । अभिनयमें कूजति तुद्यते चैव परिवर्तनमौहते ॥ अल्प' प्रभाषते किञ्चिदभिन्यासः स उच्यते । देहादि चेष्टा द्वारा पूर्वभूत किसी प्रसिद्ध विषयका प्रत्याख्यातः स भूयिष्ठः कश्चिदेव प्रमुच्यते।" (माधव निदान) अनुकरणकर्ता, अभिनयकारी, तमाशा देखानेवाला, जो स्वांग करता हो। अभिपठित (सं० त्रि.) अभिधान किया हुआ, जिसका पभिनेत्री (सं० स्त्री.) अभिनय देखानेवाली स्त्री, नाम निकल चुके। जो औरत स्वांग लाती हो। अभिपतन (सं. लो०) १ आक्रमण, हमला। २ भाग- भिनय (सं० त्रि०) अभिनीयते, अभि-नौ कर्मणि यत् । मन, आमद। ३ निपात, गिराव । १ देहादि चेष्टा द्वारा अनुकार्य, जिन्मको चाल-ढालसे अभिपत्ति (सं० स्त्रो०) अभि-पद-तिन् । निष्पत्ति, नकल करने काविल । 'दृश्य तवाभिनेयम् ।' (साहित्य दर्पण ) २ अभिमुख प्रापणीय, सामने लाने काबिल। अभिपद्म (स'• त्रि.) सरसिजसे भो सुन्दर, अतिशय भिन (सं० त्रि०) भिद्यते स्म, नत्र-तत् । १ एक- मनोहर, निहायत खू बसूरत । रूपताप्राप्त, पूर्वापर एकरूपस्थित, एक जैसा, जो आगे- अभिपन्न (सं० त्रि०) अभि-पद-त। १ अपराधयुक्त, पीछे एक ही तरह का हो । विश्वासोपगमादभिन्नगतयः ।' (शकु०) मुजरिम। २ विपदग्रस्त, आफ़तज़दा। ३ खोकत, २ अविदलित, अविदारित,कुचला न गया, जो टूटा न राजी। ४ सन्मखगत, सामने पहुंचा हुआ। ५ अभि- हो। ३ दृढ़, मजबूत । (पु०) ४ गणित-शास्त्रानुसार भूत, दबा हुआ। ७ पलायित, भागा हुआ। पूर्णाङ्क, सही अदद। अभिपरिग्लान (सं० त्रि.) श्रान्त, लान्त, खिव, बभिन्नता (सं० स्त्री०) १ अखण्डता, पूर्णता, अभिन्नका अवसन्न, थका-मांदा। भाव, कमालियत। अभिपरिप्लुत (सं० वि०) १ अभिभूत, दबा हुआ। रभिन्नपद (सं० पु०) श्लेष अलङ्कार विशेष । श्लेष देखो । २ ग्रस्त, आक्रान्त, हमला किया गया, जिसपर धावा पभिन्नपरिकर्माष्टक (सं० ली.) पूर्णाङ्ककार्यसम्ब लग चुके। ३ मग्न, गक डूबा हुआ। ४ कम्पायमान, धीय आठ नियम, सही अदद निकालनेके आठ जो कांप उठा हो। कायदे। अभिपरीत (सं. त्रि०) आवेष्टित, अभिभूत, ग्रस्त, भिन्नपुट (सं० पु.) अभिन्न भेदरहितं पुटं यस्य । घिरा हुआ, मगलूब, जो दब चुका हो। १ नवपल्लव, नयो कोंपल। २ मधूकपुष्प, महुवेका अभिपित्व (वै० स्त्री० ) अभितः सर्वतोभावेन प्राप्तिः, फल। ३ पद्म, कमल । अभि-आप भावे औणादिक इत्लन्। १ अभिपतन, "दूर्वा यवा रतचत्वगभिन्नपुटोत्तरान् ।" (र) गिराव। २ सम्मुखपतन, सामनेका गिरना। २ आम- पभिन्त्रात्मन् (सं. त्रि०) अभिवहृदय, एकात्मा । मनकाल, आमदका वक्त । ४ अभिमत-प्राप्ति, मक- पभिन्यास (सं० पु० ) अभिन्यस्यते वहिष्क्रियते शरी- सदका बर पाना। ५ सन्ध्या, शाम। ६ प्रभात, सबेरा। राभ्यन्तरस्थ उमा येन, अभि-नि-अस करणे घञ् । ७यन्न। सन्निपातज्वर, त्रिदोषकुपित मूळयुक्त ज्वर । अभिपौड़न (स. क्लो०) अभिचार, जादू । “वयः प्रकुपिता दोषा उरः स्रोतोऽनुगामिनः । अभिपीड़ित (सं० त्रि.) व्यथित, खिब, अमित, माभितया ग्रथिता बुद्धौन्द्रियमनोग्रताः ॥ तकलौफजदा, ईजा उठाये हुआ, जिसको तकलोफ जनयन्ति महाघोरमभिन्यास ज्वर' दृढ़म् । दी गयौ हो। भुतौ नवे प्रसुप्ति: स्यान्न चेष्टा काचिदौहते ॥