पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७७५

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ओर। अभिपीत-अभिप्रश्निन् अभिपीत (स• त्रि०) जलभूयिष्ठ, अनूप, जलसिक्त, | अभिप्रणीत (सं० वि० ) अभितः प्रणीतम्, अभि-प्रणी- सोंचा हुआ, जो पानौसे भर दिया गया हो। त। १ सर्वथा संस्कृत, हरतरह बना हुआ। २ विनि- अभिपुष्प (सं० पु.) अभितं पुष्पमस्य, बहुव्रौ । योजित, प्रतिष्ठापित, नियाज किया हुआ, जिसका १ सकल दिक् पुष्पविशिष्ट वृक्ष, जिस पेड़में चारो ओर तकद्दस हो चुके। फल खिले रहें। २ अनुपम पुष्प, निहायत उम्दा | अभिप्रतप्त (सं० त्रि०) १ अतिशय उष्ण, निहायत फूल। (त्रि०) ३ पुष्पविशिष्ट, फूलोंसे भरा हुआ। गर्म । २ शुष्क, जो सूख गया हो। ३ ज्वर वा वेदनासे अभिपूजित (सं० वि०) १ सम्मानित, इज्जतदार। लान्त, बुखार या दर्दसे थकामांदा। २ समत, प्रशस्त, पसन्दीदह, मकबूल । अभिप्रथन (सं० क्लो०) विस्तार, विस्तृति, फैलाब । अभिपूज्यमान (सं० त्रि०) अतिशय सम्मान प्राप्त, अभिप्रदक्षिण ( स० अव्य०) दक्षिण दिक्को, दाहनी जिसको बहुत ज्यादा परस्तिश की जाये। अभिपूरण (स'• क्लो०) अभ्यासेन अभितो वा पूरणम्, अभिप्रपन्न ( स० वि०) प्राप्त, समुपगत, पहुंचा हुआ, प्रादि-स०, अभि-पूर-लुपट । अभ्यासहेतु पूरण, सकल जो हाथ आ गया हो। दिक् पूरण, भराव। अभिप्रमुर् (सं० स्त्री०) अभिप्रमुह्यति पाहुतिदानेन अभिपूर्ण (सं० वि०) आकुल, संकुल, मामूर लबा अग्नि वेष्टयति, अभि-प्र-मुह क्विप्। जुह, आहुति लब । २ संपन्न, भरा पूरा। ३ भाराक्रान्त, लदा देनेका पात्रविशेष। (वै त्रि०) २ पूर्ण रूपसे आवेष्टित, हुआ। पूरी तौरपर घिरा हुआ। ३ नाशक, बरबाद अभिपूर्व (सं० अव्यः) एक-एक कर, आगे-पीछे । करनेवाला। अभिप्रज्ञा (सं० स्त्री०) अभितः सर्वदा प्रज्ञा चिन्तनम्, अभिप्रयाय (सं० अव्य०) उपस्थिति द्वारा, पहुंचसे, प्रादि-स०, अभि-प्र-ज्ञा- अङ-टाप्। सर्वदा चिन्ताका पास जाकर। करना, हमेशा फ़िक्रका पड़ना। अभिप्रवर्तन (सं० लो०) अभितः प्रवर्तनम्, अभि- अभिप्रणत (सं० त्रि०) पानमित, सुका हुआ, जो प्र-वत्-लुपट् । १ सकलदिक् प्रवृत्ति, उभार, बहाव । सामने झुक रहा हो। २ सकल दिक् प्रवृत्तिसम्पादन, बढ़ाव, धावा। अभिप्रणय (सं० पु.) १ प्रसादन, आराधन, अनुरञ्जन, अभिप्रवृत्त (सं.वि.) १ अग्रगामी, जो आगे बड़ अनुनय, रजाजोयो। २ प्रेम, कृपा, मुहब्बत, रहा हो। २ उपस्थित, आगे आते हुआ। ३ अधिकृत, मेहरबानी। जिसपर कब्जा जम जाये। अभिप्रणयन (सं० लो०) अभितः प्रणयनं संस्कारः, | अभिप्रनिन् (स० वि० ) प्रश्नेच्छु, अनेक प्रश्न पूछनेका अभि-प्र-नो लुम्ट् । वेदविधानसे अग्न्यादिका संस्कार। इच्छक, जो कितने ही सवाल करना चाहता हो (प्रथम भाग समाप्त)