पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७९

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अक्षरलिपि ७५ को परस्परके स्वाधिकार और खातन्त्र यमें निर्दिष्ट देख पड़ता है। वह पहले संख्यागणना कार्यमें व्यव- रखने या अपने हाथसे बनाये हुए मृत्पात्रादि या हृत होती थी। पीछे कालवश क्रमशः उसको उन्नति कोई दूसरे द्रव्य सर्वसाधारणसे अलग करने के लिये साधित हुई । बनानेवाले के कौशलसे उसमें ऐतिहासिक विशेष-विशेष चिह्न व्यवहार करते थे। आज भी घटना, राजविधिप्रशस्ति प्रभृति सङ्कत ग्रथित होते रहे भूगर्भनिहत मृत्पात्रोंमें जो विभिन्न चिह्न विद्यमान और उसके द्वारा देशसे देशान्तर और राज्यसे राज्या- देखे जाते हैं, उनकी आलोचना करनेसे अच्छी तरह न्तरमें संवाद-प्ररणको व्यवस्था चलाई गई। उस समय समझ पड़ता है, कि हृष्ट-जन्मसे बहुत पहले विभिन्न प्रत्येक प्रधान-प्रधान नगरमें कुइपुको व्याख्या करनेके व्यक्तियों द्वारा वह सब पात्रादि बनाये गये थे, आजभी लिये एक-एक कर्मचारी नियुक्त किया जाता था। वही भिन्न-भिन्न स्थानोंके मृत्पात्रों में उस समयकी भांति कुइपु पढ़ने के बाद फिर कुइपुके साहाय्यसे उसमें उत्तर कुम्भकारके साङ्केतिक चिन्ह व्यवहार किये जाते बांध देता था। दुःखका विषय है, कि कुइपुका अपूर्व हैं। प्राचीनकालमें जो व्यक्ति विशेषके पारस्परिक व्याख्याकौशल लुप्त हो गया है। ऐसी ही साङ्केतिक सम्पत्तिक स्वातन्त्र्य के चिह्न रूपसे गृहीत हुआ था, प्रथा किसी दिन चीन, तिब्बत और प्राचीन भूखण्ड- वर्तमान युगमें वही क्रमश: उन्नतिको परिणतिको वासी आदिम लोगोंके बीच फैली हुई थी। प्राप्त हो 'ट्रेडमार्क में पर्यवसित हो गया। आष्ट्रेलियाके आदिम अधिवासियों के बीच कुइपुको सभी लोग जानते हैं, कि हमारे देशको अन्न भांति कार्यसाधनशो 'दौत्यदण्ड' विद्यमान है। वह रमणियां परिधेय वस्त्र या रूमाल आदिमें चिलस्वरूप एक वृक्षशाखा मात्र है। पत्रलेखक उसके गात्रपर घोंधे- कोनेपर गांठ लगा धोबीको दिया करती हैं। सन्थाल, से (आजकल कुरौके साहाय्यसे ) पहले कितनो ही कोल प्रभृति वर्णज्ञान-वर्जित जातियों के बीच आज भी रेखायें बनाते हैं। वर्तमान "शार्ट हैण्ड” लेखकी तरह ऋणग्रहणकार्यमें रुपयेको संख्या निरूपण करनेके वह रेखायें स्वतः व्याख्यात नहीं होती। लिये सूत या रस्मोके टुकड़ेमें गांठ लगाई जाती है। विशेषके मनोभावको स्मृतिपथारूढ़ करनेको निदर्शन पूर्ववङ्ग के निरक्षर ग्वाले दूध लेने-देनका हिसाब बांस मात्र हैं। लेखक जब वह रेखायें खींचता, तब पास एक को चटाई में निशान लगा करते हैं। यह भी कितनी दूत या पत्रवाहक खड़ा रहता था। जैसे ही एक रेखा ही बार देखा गया है, कि यदि कभी हिसाबके रुपये वृक्षशाखापर बनाई जाती, वैसे हो लेखक पत्रवाहकको लेने-देनेपर अदालतमें मुकद्दमा चला, तो हाकिमने उस प्रकारके अङ्कनका अभिप्राय और अर्थ बता देता। यह सब निशान देख मुकद्दमेका सत्यासत्य स्थिर कर इसीप्रकार इस दण्डको अङ्कन समाप्त होनेपर पत्र- लिया। पाश्चात्य जगत्में भी इसी तरह किसी समय वाहक हाथमें ले पत्रोद्दिष्ट व्यक्तिके निकट पहुंचता ऋणसंख्याके लिये ग्रन्थचिह्न व्य वहृत होते थे। हेरोदो और आपही एक-एक रेखाको लक्ष्य कर एक-एक भाव- तासको (IV-78) विवरणोसे मालम होता है कि, की बात समझाता। उपरोक्त होपके विकोरिया शकाभियानके समय दरायूसने ईष्टर नदौको अतिक्रम विभागको विन्मे रा नदी-तोरवासी वोटजोबलूक जाति- करके सेतुरक्षक सेनादलके हाथमें बहुतसी गांठों में ऐसी ही प्रथासे पत्रोंका आदान-प्रदान हुआ करता वाली एक लम्बी रस्मौ रख दी और कहा-इसमें जि है। वहां पत्रवाहक एक सरदारके निकटसे अडिन्त तनौ गांठे हैं, उतने दिन तुम इस सेतुको रक्षा करना दौत्यदण्ड लेकर दूसरेके हाथमें देते और उसे जना- और रोज एक एक गांठ खोलते जाना; यदि अन्तिम न्तिकमें बुलाकर पत्रप्रेरकका नाम सुनाते और पत्रका गांठ खोलनेके दिन राजा वापस न आयें, तो यूनानी | मर्म बताते हैं। इस दौत्यदण्डको अङ्कित रेखायें या सेतु तोड़ चले जायेंगे। लिपियां यदि दो व्यक्तियों के बीच निरन्तर चलती रहें, इसोका उन्नत प्रकरण पेरू राज्यको कुइपु रस्सीमें * Ethnologische Parallelen und Vergleiche, I. p. 184. वह व्यक्ति-