पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/८१

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अक्षरलिपि ७७ है और कालीफोर्नियाके पावत्यचित्रमें अश्रुभाराक्रान्त प्रतिकृति शोकज्ञापनार्थ उत्कीर्ण हुई है। अमेरिकावासो आदिम जातिके बीच में इस चित्र लिपिका प्राचीनतम आदर्श विद्यमान रहते भी वास्त- विक पक्षसे वह क्रमशः उन्नत हो अक्षरमालामें परि- णत न हो सका। प्राचीन भूखण्डके असुरीय, मिश्र और चीन राज्यमें सभ्यता फैलने के साथ-साथ चित्र- लिपिको यथेष्ट उन्नति साधित और वह कालमें शब्द या अक्षरमालाका प्रकृष्ट रूप पाकर वहां वाले जनपद- वासियोंके मनोभाव और अर्थज्ञापनमें निद्धारित या अधिकारी हुई। चीन देशमें ही सबसे पहले इस चिह्नलिपिसे अक्षर या शब्दलिपिको क्रमोन्नति और विकाश साधित हुआ था। वहांको वर्तमान लिपिका मौलिकावस्थाके साथ सामञ्जस्यनिर्णय करने के लिये उस आदिम चित्रलिपि- का निदर्शन दृष्टिगोचर न होते भी निःसन्देह कहा जा सकता है, कि चीन-देशी अक्षरलिपि आनुमानिक सन् ई के ८००से १००० वर्ष पहलेको प्रचलित है। चोन देशीय प्राचीन अभिधान-लिखित शाब्दलिपि और वर्तमान अक्षर या शब्दलिपिका वैषम्य देखनेसे स्पष्ट हो इसकी उन्नति और विकाश मालूम हो सकता है। जब वह पत्थर या वैसे हो कड़े पदार्थपर लौहशलाका- से चित्रलिपि बनाते, तब गोलपिण्डसे सूर्य और अर्द्धचन्द्राकारसे चन्द्रको दिखाते थे । पौछ जब कागज, रेशम और वैसी ही किसी कोमल वस्तुपर अक्षरमाला- विन्यासका आवश्यक हुआ, तब वह लौहशलाकाके बदले कूची जैसी केवल लेखनी या चित्रतूलिका व्यवहार करने लगे। उसी समयसे ही वास्तविक पक्षपर कू'चौकी खींच द्वारा वैपरीत्य साधित हो अक्षर वर्तमान आकारमें रूपान्तरित होते चले आये हैं। चीन-शब्दलिपिसे जापलिपि ली जानपर भी वह अनेकांशमें संस्कृत हो भिन्नाकृतिको प्राप्त हुई है।* इस जातीय लिपिवाले अक्षरोंके सिवा जापानमें संस्कृत अक्षरमालाकी वह लिपि भी विद्यमान है, जो सन् > See Taylor's The Alphabet, I, p. 34. २० ई०के ५ वें शताब्दके समय भारतमें प्रचलित थी। वहांके बौद्धधर्म सम्बन्धीय कितने ही ग्रन्थ संस्कृत अक्षरों में लिखे हैं। मिश्रको अक्षरलिपि ही सम्भवतः पाश्चात्य जगत्में सबसे पुरानी समझी जाती है। वहां चित्रलिपि (Hieroglyphics) का ही एक समय विशेष प्रचलन था, जिसका सम्यक् विवरण वहांके उत्कीर्ण फलकादि देखनेसे समझ पड़ता है। चीनके लोग जब वस्तु- विशेषको चित्रलिपिके द्वारा बतानेके बदले शब्दलिपि- के उद्भावनमें सचेष्ट हुए, तब उन्होंने शब्दानुसार द्रव्य- विशेषके कई चिन-सामञ्जस्य मान लिये थे ; जिससे आदिम चित्रवाली लिपिके आंशिक चित्र मिटे और मूलतः वह विलुप्त हो गई। भाषाविद् प्राचीन भूखण्डको इन तीन विस्तृत चित्रलिपियोंके उत्पत्ति-निर्ण यमें कहा करते हैं, कि किसी समय यह मध्य एशियाखण्डवासी जातिके बीच फैली थीं। कोई-कोई कहते हैं, कि चीनवाले बाबिलोनसे क्रमशः पूर्वाभिमुख आकर वर्तमान चीन साम्राज्यमें बस गये हैं। फिर, किसी-किसीको धारणा है, कि इउफेटिस-प्रवाहित उपत्यकाभूमिमें पहले मिश्रको सभ्यता फैली थी यानी प्राचीन आर्यों (हिन्दुओं)को तरह इउफेोटिस तौरवासी जनस्रोतने सेमेटिक अभियानमें लिप्त हो राज्यसे राज्यान्तरमें सभ्यता फैलाते-फैलाते मिथ राज्यमें आ अपना प्रभुत्व जमाया था। मिश्चके यह लोग पुरानी सोमाली जातिको दूसरी एक शाखाके सिवा और कुछ भी नहीं हैं। मिश्रके प्राचीन इतिवृत्तिको आलोचना करनेसे मालूम होता है, कि बहुत समय तक असुरीयोंके साथ मिश्रवालोंका राजनैतिक संघर्ष चला था ; किन्तु उस युद्धमें लिप्त होकर ही वह क्रमशः पश्चिमाभिमुखमें उपनौत हुए और स्थान-स्थानमें अपनी जन्मभूमिको प्रचलित चित्राक्षरमाला फैला दी। वास्तविक पक्षसे मिश्रको यह साङ्केतिकलिपि प्रथा (Hieratic writing) नौलनदके उपत्यकादेशमें भली भांति पोढ़ी न हुई ; अथवा जिस प्राचीन चित्रलिपि (Pictographic 1