पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अक्षरलिपि System)से असुरोय और उसके समीपवर्ती। फ़िक चित्रलिपिसे किस तरह मिश्रराजमें हिराटिक- स्थानोंकी कौललिपि क्रमश: पोढ़ी हुई, उससे लिपि चल पड़ी थी। अङ्गरज़ौ ॥ अक्षरको उत्पत्ति मिश्रको यह सङ्केतलिपि ऊंची या नीची धारामें दिखाते पाश्चात्य-भाषाविद् कहते हैं. कि मिश्रको अनुसृत हुई मानी जा नहीं सकती। प्राचीन भाषामें उल्लूका नाम मूलक है। पहली चित्र- चीनवासियोंकी तरह मिश्रवासी भी उसी उद्देश्यसे लिपिके अनुसार उल्लू पक्षो या उसो वस्तुको धारणा स्वतःप्रवृत्त हो (चित्रलिपिसे) अक्षरमालाके निर्धारणमें (as a idiogram) दिखाने में उल्लूको हो तस्वीर बनाई आगे बढ़े। उन्होंने भी वस्तुविशेषको आकृति और गई थी। पीछे वह उल्लू शब्दार्थ (Phomograms)के वस्तुगत भाव सादृश्यके ऊपर निर्भरकर और उन बोधकरूपसे व्यवहृत हुई। शेषोक्त अर्थमे उसके शब्द- चित्रोंके आकार निकाल एक-एक वर्णशब्द-रूप रूपको परिणति संघटित होती और शब्दानुमार उसमें अक्षरको निर्णय किया था ; पीछे इसीसे एक प्रकार 'उ' मिलकर M॥ पद बनता है। प्राचीन हायरोग्लि- युरोपको प्रचलित भाषायें जैसे आक्षरिक हैं, फिक्वाला उल्लूका चित्र प्रस्तराङ्कनके बदले जब मिश्रको भाषा वैसे कभी आक्षरिक न हुई। कारण, पापिरास् (Papyrns) पत्रमें लिखा जाने लगा, तब प्राचीन मिश्थवासी स्वभावसे ही आत्मगौरव-रक्षणशील द्र तलिपि या घसीट लिखने के लिये सुस्पष्ट उल्लको और चित्रविद्याविशारद थे। वह स्वकीय इस आकृति न बनाई जाकर स्थू लतः उसके चारो पार्खको शोभावईक और सौष्ठवशाली चित्रलिपिके ही पक्ष रेखा ही लिखी गई। पीछ लेखके तारतम्यानुसार पाती रह इसके बदले अक्षरमाला-चिङ्ग-व्यवहार धीरे-धीरे आदि उल्लूका चित्र लुप्त हुआ और पद 'वासनाको विलक्षण क्षतिका विषय ही समझते रहे। और पृष्ठ विहीन उल्लूको रेखाको तरह वह अङ्गरेज़ी इसौकारणसे वह चीनवासियोंकी तरह अक्षर हस्तलिखित जेड् या संस्कृत “द" वर्ण जैसी मालाके सम्बन्ध विशेष कोई उन्नति कर न सके। वह आकृतिमें लिखा गया। सेमेटिक लिपिमें भी वह परस्परके संयोगको लक्ष्यकर वही शब्द जिस वस्तु, क्रमशः विकृत होते आया। फिर, मेमेटिक अक्षर- पशु, पक्षी या मनुष्य के उद्योतक शब्दको बताता था, मालाके प्रति लक्ष्य करनेसे देखा जाता है, कि उक्त उस वस्तुके द्वारा ही भाषालिपि लिख जाते थे। जैसे अक्षर मानो मिश्रको सङ्केतलिपि (Ilieratie) से लिये जलका भाव प्रकट करने में इस चिङ्ग हारा गये हैं। मोाबाइट प्रस्तरफलकमें सेमेटिक अक्षरसे तरङ्गायित जलपृष्ठ बनाते और प्यासको बात कहने में जो सुप्राचीन शिलाफलक उत्कीर्ण हैं, उनमें m जलका चिह्नबनाकर उसकी ओर एक गोवत्स दौड़ानेसे अक्षरको जगह vj अक्षर अङ्कित मिलता है। काम चल जाता था। युद्धका हाल बताने में एक हाथमें उसके साथ मिश्रवालो सङ्केतलिपिके m अक्षरका ढाल और दूसरे में बळ या तलवार लिये वोरमूर्ति | कितना हो सादृश्य विद्यमान है। इसलिये लोग कल्पना बनाना पड़ती थी। इन सब चित्रलिपियोंके बीचमें करते हैं, कि मोआबाइट अक्षरसे प्राचीन युनानका परस्पर सम्बन्ध निर्देशार्थ उन्होंने कितने ही चिह्न wjअक्षर उत्पन्न हुआ है। उसके परवर्ती समयमें परि- व्यवहार किये। डाकर आइजाक टेलरका कहना वर्तन-नियम द्वारा यूनानी भाषाका )[ या M अक्षर है, कि सब अक्षरमूलक (Alphabetic symbol) निकला था। इसके बाद यूनानीलिपिने इटलीमें उप- चिह्नोंमें ही वर्तमान अगरेज़ी अक्षरमालाका निवेश स्थापित किया। उन्हीं यूनानियोंके संस्पर्शमें वोजकोट प्रसुप्त था, समय पाकर वही प्रबुद्ध और आकर रोमकोंने अक्षरमालाका Roman capital M प्रकाशित हो गया है। ले लिया था। उसी रोमक अक्षरसे सुन्दर आकृतिके साधारण लोगों को अवगतिके लिये नीचे इस अङ्गरेज़ी m अक्षरको उत्पत्ति हुई। 'बातका एक दृष्टान्त दिया गया है, कि इस हायरोग्लि मिथको सङ्केतलिपि में व्यञ्जन और अर्थव्यञ्जन