पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/८३

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अक्षरलिपि 98 अक्षरका प्राधान्य रहनेसे मिश्रको धातुयें साधारणतः तीन अक्षरोंसे बनी हैं, जसके सम्बन्धमें चौनभाषाके साथ मिश्र भाषाका बहुत ही मिला-जुला लगाव है । टलेमी वशके अधिकार तक सुप्राचीन मिश्रराज्यमें सङ्कतलिपिका हो प्रचलन रहा था। पीछे कुछ सुविधा- जनक और सहजलेख यूनानी -अक्षरमालाका प्रचलन होनेसे वह एकबारगी ही लुप्त हो गई। सन् १८०२ ई० में आकेरब्लाद नामक किसी सूइड्ने मिश्रवालो अक्षरमालाके उद्धारको चेष्टा की, इसौसमय ग्रोटफेण्डने ईरान राज्यान्तर्गत कितने हो कौलफलकोंका पाठोडारकर अपना प्रथम उद्यम साधारण लोगोंके गोचरार्थ प्रकाशित किया था। इसके बाद कम्पोलियो और टमासइयां विशेष अध्यवसायके साथ मिश्र-भाषाको आलोचना करते रहे। उन्होंने कितनी हो गवेषणाके पोछे, रोजेटेको प्रस्तरलिपिके साहाय्यसे प्राचीन भाषाके उद्धारका पथ सुगम कर दिया और ग्रोटफेण्ड और सर हेनरी रलिन्सनने सन् ई०से ५१६ वर्ष पहले दरायूस-विस्तास्य द्वारा उत्कीर्ण कौलफलकका पाठोद्धारकर कौलफलक पाठको यथेष्ठ सुविधा की। कोललिपिके पाठोडारसे प्रकृत पक्षमें ईरानियों के पवित्र धर्मग्रन्थ अवस्ताशास्त्रपाठको भी विस्तर सुविधा हुई। कारण, कौललिपि और अवस्ता- को भाषाका परस्परमें विशेष नकट्यसम्बन्ध है। जब प्राचीन ईरान-लिपिका पाठोद्धार हो गया, तब सुसान और बाबिलोनिया-वाली समान्तराल स्तम्भयेणोको गात्रोत्कीर्ण लिपिके पाठको आशा बंधी। परवर्त्तिकालके बीच एशिया माइनरके नाना स्थानों में कोललिपि आविष्कत होनेसे उक्त भाषालोचनाका पथ कितना ही सुगम हुआ और निनिभ और बाबिलोन- को ध्वस्त स्तूपराशिके अभ्यन्तरनिहित मृतफलकोंका पाठोडार होनेसे यूफोटिस उपत्यकाका इतिवृत्त सजीव बन गया। आकेदियान भाषामें कानको “पौ” कहते हैं। कौलाकारलिपिमें “पौ” लिखते हुए जिस भावसे कोलक (२) विन्यस्त होते हैं, उसके साथ बंगला "" हिब्रू “पो,” अङ्गरेज़ी P. और संस्कृत 'प' का विशेष सादृश्य है। असुरीय और बाबिलोनीयसे यह कोलाकारलिपि विभिन्न देशोंमें विस्तृत हुई। किन्तु उस समय अपरा- पर जातियों में दूसरी एक भाषा प्रचलित थी। वह, कोललिपिको उत्पादक सुमारीय जाति या उसके विजेता सेमितिक बाबिलोनीयोंकी भाषासे सम्पूर्ण विभिन्न है। एशियाके विभिन्न स्थानों, विशेषतः ईजि- यन सागरस्थित द्वीपों में भी इस भाषाके कई सौ शिलाफलक विद्यमान हैं । इस भाषा का नाम है हिटा- इट् (Hittite)। इसका लिपिकौशल प्रथमावस्थाको चित्रलिपिसे सम्भूत होते भी आक्षरिक परिणतिमें यह बाबिलोनीय लिपिसे सम्पूर्ण स्वतन्त्र है। कितनी ही चेष्टाके पीछे, इस भाषाको फलकलिपिका पाठोद्धार कार्य आरम्भ हुआ सही, किन्तु अभी उसको प्रकृष्ट पन्था निर्धारित नहीं हुई है। पुराने समय पिलोपेनिसे एक यूनानियोंका उप- निवेश साइप्रास हीपमें जाकर बसा । वह जिस भाषामें बात करते थे, वह अधिकांशमें आर्केडिय भाषाके अनुरूप है। समग्र यूनानी जातिके बीच यह शाखा अक्षरमालामें लिखना न जानती थी ; इसने एशिया- वासियोंके संस्रवमें पड़कर ध्वन्यात्मक अक्षरलिपिका भी अनुसरण किया था। विख्यात ईरानयुद्धके अवसानमें साइप्रास् द्वीप यूनान-राजके अधौन हुआ और यूनानी उपनिवेशिकोंने स्वजातीयोंका संस्रव पाया तो सही, किन्तु वह मूल यूनानियोंको अभ्यस्त अक्षरलिपि ग्रहण न कर अपनी पूर्वतन शब्दलिपिको ही व्यवहार करते रहे। अब बृटिश अजाइब घरवाले अध्यक्ष्योंके यत्नसे साइप्रास होपके ध्वस्त स्तूपोंका खननकार्य प्रारम्भ हुआ है। भूगर्भको ढूंढते-ढूंढते उसके बीचसे सन् ई०से पहलेके ४ थे शताब्दका उत्कौर्ण एक शिला- फलक निकला। इस फलकमें ड्रेयिट और पाशि- फोनके उद्देश्यसे उत्सर्गीकृत व्यापारांश, यूनानी अक्षरमाला और उसके नौचेको घटना शब्दलिपिमें उत्कीर्ण है। इसको यूनानी अक्षरमाला वाली प्रणालीको बाई ओरसे आरम्भ कर क्रमश: दाहने आना होता है, किन्तु शब्दलिपिको प्रथा इससे