पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अक्षरलिपि सम्पूर्ण विपरीत यानी वर्तमान अरबी या फ़ारसी जाती, वह प्राचीन हायरोग्लिफिक् और चिह्नलिपिके की तरह दाहनेसे बायेंको है। इस शब्दलिपि संयोगसे उत्पन्न है। मिथराज्यवाले इतिहासोक्त में पांच स्वराक्षरके चिह्न हैं, किन्तु इस्ख या दीर्घ प्रथम राजवंशके राजत्वकालसे भी पहले या सन् ई० के स्वरके पार्थक्य निर्णयको सुविधा और व्यञ्जन अक्षरोंमें ६०००से १२०० वर्ष पहले तक यह चिह्नलिपि जिह्वामूलीय, तालव्य या अनुनासिकादिओंके उच्चारण अबाध रूपसे मिथराज्यमें प्रचलित रहो। सन् ई०से निर्धारणका उपाय नहीं है। पहलेके वें शताब्दस पूर्वयुगकै उत्कीर्ण क्रोट- पाश्चात्य अक्षरमालाकी उत्पत्ति । हीप वाले शिलाफलकमें भी इस चित्रलिपिका गभोर गवेषणाके साथ साइप्रीय अक्षरमालाको निदर्शन विद्यमान है। इसके द्वारा भी परवर्ती आलोचना करते-करते स्वतः मनमें अक्षरमालाका मिथभाषाकी वर्णमालासे फिनिकों द्वारा वर्ण लिपिको उत्पत्ति-प्रसङ्ग आकर समुदित होता है। पाश्चात्य परिपुष्टि-सम्बन्धीय पूर्वसिद्धान्तित मौमांसा हो अप्रति- पण्डितोंको विश्वास है, कि यह अक्षरमाला, फिनि पन्न होती है। सिया और यूनानसे पहले भूमध्यसागरोपकूलवर्ती सन् १८०० ई में क्रौट दोपवाले भूगर्भके भीतर देशों और पीछे वहांसे दूरवर्ती जनपद समूहोंमें परि मिष्टर इभान्सने जो सकल लिपिपूर्ण मृत्फलक पाये व्याप्त हुई थी। सन् १८५८ ई के समय इमानुएल थे, उनको लिपि मिश्रको चित्रलिपिके अनुरूप ही है। डिरूजने Academie des Inscriptions सभामें उसके ८२ चित्रोंमें ६ मनुष्य या उनको प्रतिकृति ; लिपितत्त्वका जो अभिमत प्रकाशित किया, उसमें १७ अस्त्राकृति, यन्त्र और बाजे, ग्रह, ग्रहांश या उन्होंने मिथवाली हायरोग्लिफिक या चित्रलिपिको रन्धनके पात्रादि ; ३ सामुद्रिक जोव-चित्र ; १७ पशु अभिशप्त या कुत्सित आकृतिसे ही फणिक् अक्षर और पक्षोमूर्ति ; ८ वृक्ष और गुल्मादि, ६ ग्रह- मालाको उत्पत्ति मानी है। वह इन दोनो अक्षर नक्षत्रादि ; एक भौगोलक चित्र; ८ ज्यामितिमूलक 'मालाओंके सामञ्जस्य-साधनकालमें उभय भाषागत चित्र और १२ दूसरे चिह्न थे। आज भी आविष्कृत कितने ही अक्षरोंका अपूर्व वैषम्य अवधारित कर नहीं हुआ, कि यह बारह कौन अक्षर थे। साधारण गये हैं। सन् १८७७ ई में अध्यापक डिके (Deecke)ने लोगोंको धारणा है, कि नोसस (IKnosstis) वाले इमानूएल रूजका मत काटकर कहा था, कि सुविख्यात प्रासादकै ध्वस्तस्तूपमें जो फन्लक मिला, वह अपेक्षाकृत परवर्त्ति-कालको विकृत असुरौय कौल माइकिनि हौपके आदिम अधिवासियोंका खोदा है। लिपिसे सेमेटिक अक्षरमालाको उत्पत्ति है और इभान्सको इस मृत्फलकके पढ़नसे समझ पड़ा, फणिक् भाषा भी उसी असुरोय अक्षरमालाके निकट कि यहांके अधिवासो माइकिनिवाले विजदलके ऋणी है। किन्तु इस विषयमें प्रमाणका अभाव अधीन रहे थे । माइकिनीयोंके यहां नवागत होते भी, है। यदि प्रमाण मिले, तो अवश्य ही स्वीकार उनको लिपि अपेक्षाकृत प्राचीन थी। क्योंकि आज भी करना पड़ेगा, कि फणिक् अक्षरमालाकी वर्तमान आविडास्से निकले फलकमें माइकिनोय लिपिकी निर्धारित युगको अपेक्षा और भी सहस्राधिक जो प्रतिकृति विद्यमान है, वह, इसमें सन्देह नहीं वर्षको प्राचीन बताकर ग्रहण करना और अक्षर कि, मिश्रवाले प्रथम राजवंशके पूर्ववर्ती समयको मालाके इतिहासमें कोई युगान्तर साधित होगा। मृत्पात्रस्थ चित्रलिपिसे पुरानी नहीं तो, उसकी फिर, मिश्रके ध्वस्तस्तूपोंको ढूंढते-ढूंढ़ते अध्या समसामयिक है हो। वह अभी सुस्पष्ट रूपसे समझ पक फिण्डार्स पिट्टीने सन् १८०० ईमें आबिडोस् नहीं पड़ा है, कि इस लिपि-प्रथाके वर्ण आक्षरिक नगर वाले राजसमाधिस्तम्भके बीच जो लिपि (Sym या शाब्दिक हैं। 'bols like alphabetic characters) उत्कौण देखी एक समय इस द्वीपसे सभ्यतासोत कारिया और ।