पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/८५

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अक्षरलिपि ८१ लाइसियाको प्रवाहित हुआ था। कारियावालोंके विस्तार-प्रसङ्गमें जो कुछ लिखा गया है, उससे कोई क्रोटसे एशियाके उपकूल में पहुंच उपनिवेश स्थापित पाश्चात्य पण्डित भी यह मीमांसा कर न सका, कि करते भी उनकी भाषा और लिपिके साथ कौनास किस लिपिस पाश्चात्य अक्षरलिपि ली गई थी। पाश्चात्य (Caunus)-वासियोंको लिपिका कितना हो सादृश्य पण्डितोंको धारणा है, कि फनिक अक्षरमाला हो देख पड़ता है। नोससके फलकपाठसे अनुमान युरोपीय समग्र अक्षरमालाका आदि है। अध्यापक होता है, कि कारौय और माइकिनीय लोग पिटर गाइलने लिखा है,- परस्परमें निकट सम्बन्धयुक्त और कारौय और "Whenever the Symbols originated, it was to the लाइसीय लोग भी परस्परमें विशेष भाव-संश्लिष्ट Phenicians that the Western world owed its Alphabets, as is clear (1) from the forms of the letter themselves ; हैं, किन्तु दुःखका विषय है, कि उनका भाषागत (2) from the names which the Greeks gave to them ; (3) सादृश्य स्वतन्त्र है। वह आदिमें इन्दो-युरोपीय from the Greek traditon of their origin." केन्द्रसम्भूत हो समझा नहीं जाता। पक्षान्तरसे सन् १८८६ ई० में खेरा होपसे कई प्राचीन शिला- फ्रिजीय भाषामें उत्कीर्ण फलकादिपर. यूनानी लिपि आविष्कृत हुई थीं। पण्डितवर Freiherr Hiller लिपिका यथेष्ट सादृश्य देख पड़ता है। उपरोक्त Von Gartringenने उनका पाठोडारकर दिखाया, तीनो भाषाके उत्कीर्ण शिलाफलकोंमें एक भी कि प्राचीन यूनानी अक्षरमालाके साथ फनिक सन् ई०से पहलेके ६४ शताब्दका परवर्ती नहीं। अक्षरमालाका यथेष्ट सादृश्य रहा था। एशिया-माइनर (विशेषतः लाइसिया )-वासियोंकी जो हो, इस फनिकजातीय बणिक् समिति द्वारा कथित भाषाके साथ यूनानी-भाषाका कितना ही पश्चिम-युरोप खण्ड और भूमध्यसागरके तौरवत्तौं शब्द-वैषम्य लक्षित होता है। इसके द्वारा प्रतीयमान प्रदेशमें अक्षरमालाके विस्तारकल्पसे मानवजातिको है, कि यूनानी अक्षरोंसे इस भाषाके वर्ण-चिन बहुत विशेष उन्नति और ऐतिहासिक परिणति साधित हुई। कुछ स्वतन्त्र हैं। कितने ही लोग ऐसा भी अनुमान अदम्य उत्साह और अध्यवसायसे इसौ फनिक जातिने करते हैं, कि रोडस् होपको डोरिया लिपिके साथ अति प्राचीनकालमें हौ मिश्रराजवासियों के साथ यूनानी अक्षर मिल जानसे इस अक्षरमालाको उत्पत्ति बाणिज्य-सम्बन्ध फैला दिया था। इसी समय इन्होंने बाणिज्यके प्रयोजनीयतानुसार मिश्रको लिपिप्रथा कितने ऊपर जिस मोआबाइट प्रस्तरफलकका विवरण हो परिमाणसे बदल डाली। ऐसे स्थलमें यही स्वीकार दिया गया है, वह निःसन्देह खुष्टजन्मसे ८८५ वर्ष किया जा सकता है, कि यह अपने देशमें हो रह जटिल पूर्ववर्ती समयका उत्कीर्ण बताया जा सकता है। चित्रलिपिका वजन करना सीखे और इन्होंने अन्यान्य यह मोआब भाषा और इसके वर्णचिह्न, आक्षरिक सङ्केत-चिन्न अपनी अक्षरमालामें सन्निविष्ट कर लिये परिपुष्टिके कीर्तिस्तम्भ माने जानेपर भी, समग्र-युरोप थे। किन्तु वास्तविक पक्षसे यह ठीक निर्णीत करना के अक्षरचिङ्गको विस्तारकर्ता फनिक-भाषासे पृथक् दुःसाध्य है, कि फनिक् सम्पदायने मिश्रको सङ्केतलिपि हैं । सन् १८७६ ई में साइप्रास् होपसे जो ब्रोञ्ज-धातु और उसके उच्चारित स्वरादि ग्रहण किये थे या नहीं, का बना पात्र पाया गया, वह सिदोनोयराज हिरमके अथवा उसने मिश्रको सङ्कतलिपि ग्रहणकर उसमें भृत्य द्वारा बाल्लेबनोनके उद्देश्यसे उत्सर्गीकृत हुआ अपनी अक्षरसंयोजना की थी या नहीं। फिर भी, था। उसमें जो लिपि खोदी हुई है, वह फनिकलिपि स्वीकार किये जानपर केवल यही कहा जा सकता है, का प्राचीनतम निदर्शन है। कोई उसको मोाबाइट कि साङ्कतिक और उसके अनुरूप शब्द फनिकोंसे फलकसे पूर्ववर्ती और कोई परवत्तौ मानता है। उद्भावित होना कुछ विचित्र नहीं। दूसरी यह बात ऊपर अक्षरलिपिको उत्पत्ति, परिणति या उसके भी ठीक है, कि फनिक अक्षरमालामें जो सब नाम