पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/८६

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अक्षरलिपि प्रदत्त और मिश्रको सङ्कतलिपिमें जो सब मौलिक अपनी अङ्गो त अक्षरलिपिको परिपुष्टि और उसके वस्तुओंके चित्र उद्घाटित हुए हैं, उन दोनोके बीच में उत्कर्ष साधनमें तत्पर थो, ठोक उमो ही समय कोई सम्बन्ध नहीं। हिब्रू “अलिफ़” जैसा फनिक प्राच्य जनपद-समूहमें मममोतम अक्षरमान्ना और अक्षरमालाका जो तुल्य आद्यक्षर है, उसके साथ वृष लिपिप्रचार कार्य चल रहा था। पाश्चात्य पण्डितांका मुण्डका काल्पनिक सादृश्य है और द्वितीय हिब्रू विश्वास है, कि पूर्व खण्डमें समटिक जालिने हो सबसे अक्षर “वथ्” के साथ भी एक चतुरसभवनका मौसा पहले कई असमवर्गीय चिह्न ले भाषालिपिकी प्रतिष्ठा- दृश्य देख पड़ता है। किन्तु वस्तुतः वृषमुखाकृति, इस की थी, जहांसे वह क्रमश: दूरदशमं विस्तुत हुई फनिक अक्षरके शीघ्र-शीघ्र लिखे जानेपर वृषमुखके बदले किन्तु पूर्वापर आलोचना करनमे भली भांति समझ गृध्रपक्षीके गरदन जैसी होते आई और इसी तरह पड़ता है, कि यह बात कहां तक युक्तियुक्त है। द्रुत प्रणालीसे 'बैथ्' अक्षर भी बगुलेको तरह वक्रग्रोव ग्ले सारने जिन स्तम्भोंको अरब देशर्म आविष्कार किया हो गया। इससे पाश्चात्य पण्डित अनुमान करते हैं, था, उनमेंसे किसो-किसीको लिपि मन् ई०से पहलेके कि फनिकोंने चिह्न और शब्द या स्वरमात्रको ग्रहण १५वे शताब्दसे भी पुरानो है। इलिये यदि उसमे किया था, किन्तु उन्होंने अक्षरका नाम ग्रहण न किया। अक्षरमालाको उत्पत्ति और उसका प्रचार स्वीकार- यह, लिपिचित्र और फलकादिको निरीक्षण करने कर लिया जाय, तो पूर्वमीमांमित लिपितत्त्वको से ही सुस्पष्ट प्रतिभात होगा, कि परवत्ति कालमें भित्ति और भी प्राचीन युगमें जाकर खड़ी हो जाती फनिकोंके द्वारा फनिक अक्षरमालाको कहांतक पुष्टि है। इसके बाद सन् ई०से पहलेक व शताब्दवाले साधित हुई। उत्तर-इजिपृके आबुसिम्बल नगरस्थ पुराने कई एक सेमेटिक लिपिक निदर्श न मिले । सुबृहत् प्रतिमूर्तिसमूहके पादमूलमें समेतिकासके होजकीयके राजत्त्वकालभं मोाबाइट पत्थर और वेतनभोगी यूनानी, कोरिया और फनिक सेनादलने सिलोयमके तालाबको सुरङ्ग के बीच मिनो हुई हिब्र - अपनी-अपनी जातीय भाषामें अपना-अपना नाम लिपि और बललेबानोनको पात्रस्थ-लिपिम फनिक अङ्कित कर दिया था। इसके बाद सन् ई०से पहले चिहके सेमेटिक अक्षरको लिपि विद्यमान है। सिवा वाले ३रे शताब्दके समय बाइवलोसको टेली, इसके लाफिस और अन्यान्य नगरों में प्राप्त मृत्पात्रादि- एसमाञ्जारके प्रस्तर निर्मित शवाधार, कार्थेजके में जो सब हिब्रू-अक्षर, चिह्न और हि शिलालिपि ध्वस्तस्तप और प्राचीन सिडोन् उपनिवेशमें जिन सब मिली, वह भी वैसी ही प्राचीन मानी जाती है। फनि- लिपियोंके जो सब फलक पाये गये, वाह्य आकृतिकमें कोंको भांति यह हिब्रू-चिह्न भी विशेष वक्राकृति हैं। वह प्रायः एक रूप हैं; और उनके सभी विषयोंमें यहूदी लोग निर्वासनके पीछे क्रम-क्रमसे अरमीय अति सामान्य प्रभेद देख पड़ता है। लिपिका अभ्यास करते रहे थे। उसोर्म ही क्रमशः इन सकल शिला या मृत्फलकोंमें जो सकल अक्षर चतुष्कोण हिब्रूलिपि उत्पन्न हुई। एक मात्र सामा- व्यवहृत हुए हैं, वह पूर्ववर्ती या आक्षरिक लिपिचिह्ना रिटान् जातिने हो उस प्राचीन और वक्राकृति हिब्रू- पेक्षा ढालू और लम्बे हैं। इसलिये भली भांति समझ लिपिका आश्रय लिया था ; इसोस उम जातिवाले पड़ता है, कि यह लिपिप्रणाली उस समय शिलाफ अपनेको प्रकृत हिब्रू बता गोरव दिखाया करते हैं। लकके बदले वाणिज्यकार्यके उपयोगी हो गई थी। अरमीय लिपिका प्राचीनतम निदशन सिरिया कारण, वाणिज्यको व्यस्ततासे लिखना कुछ दूत और राज्यके अन्तर्गत सिन्दजिल नगरमें मिला, जो ढालू हो ही जाता है। पत्थरपर खोदनेके लिये फलकपर सन् ई०से कोई ७०० वर्ष पहले खोदी गई मोटे-मोटे अक्षर आवश्यक होते हैं। थी। इस अरमीय लिपिके साथ पूर्वोक्त मोाबाइट ... जब फनिक अक्षरमाला पाश्चात्य भूखण्डके बीच | प्रस्तरलिपिका वैसा पार्थक्य विशेष नहीं है। अनु-