पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६३. अखतियारपुर-अखरोट यत्र। जहां सदाके फल-फूल उत्पन्न हों। सफल तारीखे सिन्ध नामक पुस्तकमें इस युद्धका विस्तृत वृक्षादि । विवरण मिलता है। अखतियारपुर-दरभङ्गा ज़िलेके अन्तर्गत समस्तीपूर अखय (सं० अक्षय) अक्षय देखो। तहसीलका एक गांव। यहां नारायणी-पाठशाला अखर (सं० अक्षर) अक्षर देखो। नामको एक संस्कृत चतुष्पाठी है। इसके प्रतिष्ठाता अखरना (हि० क्रि०) खलना। बुरा लगना । असह्य एक सन्यासी थे। वह भिक्षा द्वारा अर्थोपार्जन होना। बोझ जान पड़ना । कर इसके यावतीय व्ययको निर्वाह करते रहे। अखरा (हि० वि०) खोटा । जो खरा या सच्चा न हो। अखतौ (हि. स्त्री०) अक्षय-तृतीया। झूठा। बनावटी। कृत्रिम । अखतौज या अखतिज (हि. स्त्री०) वैशाख शुक्ल तृतीया। (पु०) १ अक्षर। हरफ़। कृषक रबी बोनेके समय बनियोंसे जो ऋण लेते २ भूसी मिला यवका आटा, जो निर्धन लोग उसे इसी दिन चुकाते हैं। इसी शुभ दिन वह कृषि खाते और घोड़ोंको भी खिलाते हैं। कार्यके यन्त्रादि बनानेको देते, कुछ भूमि जोत रखते अखरोट (हिं० पुं०) अक्षोट (Juglans regia)-एक और ब्राह्मणोंको भोजन कराते हैं। इस दिन बीज बड़ा वृक्ष, जो काश्मीरसे शीतोष्ण हिमालय और बोना निषिद्ध है। पश्चिम तिब्बततक जङ्गलमें होता और बोया जाता अखनवारी-विहारको. हलवाई जातिके तिनमुलिया है। यह मणिपुर और आवाको पहाड़ियों में भी होता मधेसियों, छमुलिया-मधेसियों, और भोजपुरियोंकी और उत्तर ईरान, ककेशस और अरमेनियाको भेजा एक श्रेणी। जाता है। बहुत पुराने समयसे अखरोटका व्यवहार अखनी (हि० स्त्री०).मांसका रसा या झील । शोरबा। और इसकी कृषि होते चली आई है। वास्तवमें प्रायः हडडीको उबालकर जो रस निकालते हैं, उसीको इसकी कृषिका इतिहास इतना पुराना है, कि अरबी में यखनी कहते हैं। भारतमें इसकी प्रथम कृषि होनेका समय मालूम अखबार (अ० पु०) खबरका बहुवचन। १ समाचारा करना असम्भव हो गया है। कितने ही शताब्द समाचारपत्र । संवादपत्र। सामयिकपत्र । हुए पहाड़ोंसे मैदानों में इसकी खूब रफ़तनी होते ख.बरका काग़ज़। २ मुसलमानोंके राजत्वकालमें आई है। आईन-इ-अकबरीमें काश्मीरके अखरोटी- भारतवर्षके राजा अपने राजकार्यका जो विवरण का उल्लेख है, जो सन् ई० के १६ वें शताब्द तक सबसे दूसरे राजाओं के पास लिख भेजते थे । अच्छे समझे जाते रहे, तातारके अखरोट निम्नश्रेणीके अखबारनवीस (अ० पु०) समाचार-लिखनेवाला। होते हैं। इसे ऐसे जल-वायुको आवश्यकता पत्र-सम्पादक। संवाददाता। मुसलमानी राजाओंके रहती है, जो न अधिक गर्म और न अधिक ठण्डा समय संवाद लिखकर भेजनेवाले कर्मचारी थे। वह हो। उत्तम भूमिमें इसे लगाकर इसकी चारो ओर अपने अपने निर्दष्ट स्थानोंके संवाद लिखकर बादशाहके घास-पात खूब साफ कर डालना चाहिये। फलका पास भेज देते थे। बङ्गालवाले शोभासिंहके विद्रोही बकला रंगँनेके काम आता है। युरोपमें इससे खूब तेल होने पर मुर्शिदाबादके नवाबने भयसे बादशाहको निकाला जाता और फान्समें जो तेल बनता, उसमें खबर न दो। किन्तु उस समयके अखबारनवीसोंने इसका एक तिहाई भाग रहता है। जबतक अखरोट चुप-चाप यह खबर दिल्ली भेजी थी। बुने दो-तीन महीने बीत न जायें, तब तक इससे तेल अखमलोहान ब्राह्मणाबादके शासनकर्ता। यह लाख, न निकालना चाहिये । कारण, उस समय इससे अच्छा सम्मा और सौहत प्रदेशके अधिपति थे। सिन्धु देशक तेल नहीं निकलता। बादाम था मींगी बड़ी सावधानी- राजा चचके साथ इनका युद्ध हुआ था। चचनामा या के साथ बकलेसे अलग की और कुचलकर लेई बनाई वली। २४