पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/११६

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1 कर्कशछद-कतन ५ गुड़त्वक, दालचीनी। खड्ग, सलवार। (वि.) बहुत छोटा कुम्हड़ा, कुम्हड़ी। (स्त्री०) ४ कुष्माण्डी- ७ समसण, खुरखुरा। ८ निर्दय, वेरहम। ८ क्रूर, सता, कुम्हड़ेको बेल। - पाजी। १. दुर्योध, समझमें मुश्किल से पानेवाला, कर्कारक (सं० पु.) कक हास हितकारिबात ऋच्छति जनयति, कर्क-ऋ-उका । १ कालिन्दवच, कड़ा। ११ कपण, कङ्ग्स। १२ साहसी, हिम्मत- वर। १३ कठोर, सख्त। कलौंदेका पेड़ । सुश्रुतके मतसे इसका फल गुरु, कर्क शच्छद स. पु० ) कर्कश: छदः पत्रमस्य, विष्टम्भी, शीतल, खादु, कफकारक, मलमूत्र-परि- बहुव्री। १ पटोल, परवल । २ पाटलच, सुलतान कारक, चारयुक्त और मधुररस होता है। २ कुभाण्ड, चम्या। ३ याखोट वक्ष, सहोरेका पेड़। ४ शाकष, कुम्हड़ा। सागौनका पेड़। ५ कृष्णकुष्माण्ड, काला कुम्हड़ा। कफ (सं. स्त्री०) कुष्माण्डोलता, कुम्हड़ेको वैच.। कर्कशच्छदा सं० स्त्री०) कर्कश: प्रमणः छदो कर्कि (सं० पु०) कर्क-इन्। .१ कर्कट राशि, बुज- यस्याः, कर्कशच्छद-टाए। १ घोषा, तरीयो। २ दग्धा. सरतान्। २ औरङ्गाबादका पूर्व नाम । वृक्ष, बंदाल। कोहणमें इसे काही करते हैं। कर्को (स'. स्त्री०) कर्क अच्-डोष्। १. कर्कटी, कर्कशता (स्त्री) कर्कशत्व देखो। ककड़ी। (पु.) कर्कइन्। २ कर्कट राशि, वुर्ज- कर्कशत्व (सं० ली.) कर्क शस्य भावः, कर्कश ब। सरतान्। कर्कशता, कड़ापन, सख्ती। कर्वश देखो। कौप्रस्थ (सं-पु.) नगरविशेष, एक पुरातन शहर । कदल (सं० पु.) कर्कशं दलं पत्रमस्य, बहुव्री०। ककेसन (सं: पु०-ली.) कर्क हास्यादौ. तनोति, १ पटोल, परवल। २ सहोरेका पेड़। कतन-अच् अलुक समा०। रत्नविशेष, एक जवा- ककै पदला (सं. स्त्री.) कर्कशं दल यस्याः, कर्क हर। इसे हिन्दीमें तथा फारसीमें बमुरद, हिब्रू में दल-टाप् । १ दग्धिका, बंदाल । २ कोशातको, तरोयो। टारशिस, ग्रीक, वैरलस, लाटिनमें मारगडास कर्कशवाक्य (सं० क्ली० ) कर्क शश्च तत् वाक्यश्चेति, (Smaragdus), पोलण्डौमें जमरगद, रूसोमें इसुमरद, कर्मधा० । १ निष्ठुर वचन, कड़ी - बात । अोलन्दाजमें स्मरगद वा एसमरद, दिनेमार एवं खिसमें वाक्य, रुखा बोल। सगरद, रोमको समरलदो, पोतंगोजमें ऐसमरन्द, कर्कशा (सं० स्त्री० ) कर्कश टाप । १ व्यभिचारिणी बाइवेल तथा फरामोसीमें वैरिन (Baril) और अंग- स्त्री, छिनाल औरत। २ वृश्चिकाली वृक्ष, बिछुवा। रेजीमें वैरिल या किसोबेरिल. (Beryl or Chryso- ३ इस्त्रमिषशृङ्गी, छोटी मेढ़ासौंगो। ४ वनवदर, beryl) कहते हैं। झड़वैरी। गरुडपुराणमें लिखा है-वायुने इष्टचित्त दैत्यपतिके कर्क शिका (सं० क्लो०) कर्कश-कन्-टाप् पत इत्वम्। सकल नख छठा चतुर्दिक फेंकने पर कर्केतन नामक वनकोसी, भड़वेरी। पून्यतम रख पृथिवीसे उत्पन्न हुवा। निग्ध, विण्ड, कर्क सार (सं० ल.) कक: कर्फयाः सारो यत्र, सर्वत्र समवणे, परिमाणमें गुरु, विचित्र और वास- बहुव्री०। दधिशक्त, दहीका सत्तू। व्रणादि दोषवर्जित ककेतन अति उत्कष्ट होता है। कर्काक (सं०.पु.) कर्कटिका, ककड़ी। रताकी भांति लोहित, चन्द्रकी तरह पाण्डुर, मधुकी करु (सं० पु.) कर्क हास्यवत् शौक्ला ऋच्छति भांति ईषत् पोत, ताम्रको तर अत्य र पोत, पौर प्रायोति, कर्क-ऋ-उथ् । १ कुमाण्डभेद, कुम्हड़ा, पग्निकी भांति उज्वल, नील तथा खेत .कसन पेठा।. भावप्रकाशक- मतसे यह शीतल, गुरु, मल पापनाशक है। संस्कारकके दोषसे यह अधिक बहकारक, धारयुक्त और कफ तथा वायुनाशक है। ज्योतिर्मय नहीं होता। कर्केतन स्वर्णपर अड़ कण्ड २ कसिङ्गसता, बासौंदा, तरबूज। पतिद्रकुमाण्ड, वापिस्तमें पहननेसे अति सुन्दर. खगता है। इससे Vol. IV. 30 २ नौरस