पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१३

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- । । कपोत काश्मीरी वगैरह तरह तरहके रङ्गोंका होता है। आतो है। मस्तकका खेतवर्ण चक्षुके नांचे या गल-. इसके विशेष चिह्नमें चक्षुके मूलसे चक्षुके पश्चात् अवटु देशमें फैल जानेसे इसको दागी मुक्खा कहते हैं। (गुही), पृष्ठ एवं पक्षको राह पुच्छके मूल पर्यन्त | दागौ मुक्खे का मूल्य एवं पादर अल्प रहता और एकमात्र वर्ण रहता और निम्न चच्च के नीचे गलदेश, रूप भी ईषत् विधी लगता है। विलायती मुक्के वक्षस्थल, पक्षका निम्नभाग तथा पुच्छका पालक मस्तक तथा पक्षवाले तीन बड़े पालक पौर पुच्छका खेत देख पड़ता है। फिर क्योहदिक साथ जघनदेश वर्ण काला होता है। शिखा कुछ बढ़ मस्तकके पालिके ग्रन्थि पर्यन्त पालकसे ढंक जाता है। सम्मुख भुक भाती है। गावका वर्ण खेत रहता इस जातिका कपोत बहुत बड़ा होता है। शोराजी है। वहां तीन प्रकारका मुक्खा होता है। इन देखने में पति सुन्दर लगता, किन्तु गम्भीर भीमकाय तीनों श्रेणीवाले कपोतके मस्तकका वर्ण यथाक्रम पौर बलशाली रहता है। मुख शोरानीका रङ्ग कृष्ण, पौत और रस लगता है। फिर मस्तकका बिलकुल लाल नहीं होता। उसमें चिलके वर्णपर | वर्ण, पक्ष एवं पुच्छके बड़े पालकों में भी रहता है। ईषत् कृष्णाभ पोतका भाग ही अधिक देख पड़ता stutata fan-fanta (nun-pigeon ) arat है। स्थाइ शौराजीका वर्ण धार नौलवर्णयुक्ता कृष्ण वैरागन कहते हैं। लगता है। जर्ट शोराजो हरिताम चिक्कण होता कौडियाला-चक्षु कौड़ी जैसे होते हैं। चक्षुके है। खाको शीराजो देखने में सुन्दर भौर स्याहसे चतुष्पाल और नासिकाके मूलमें चच्च के अपर ईषत् नमप्रकति रहता है। काश्मौरी खाकी होते भौ पालक, रताम कोमल मांसके बड़े बड़े फल पड़ जाते हैं। वक्ष, पृष्ठ, पक्ष तथा अवटु (गुदी)का वर्ण खेत लगता चोटियाला-विशेषत्वसे मस्तकपर शिखा पोर पादमें और बैंजनी मिला बूंद बूंद दाग पड़ता है। एकरंगे पालकका विकाश देखाता है। पैरमें एडोके पास शौरानोको वक्ष एवं उदरमें भिन्न वर्णका एक क्षुद्र जो पर रहते, वह बहुत बड़े लगते हैं। चोटियाला पालक रहनेसे गुलदार कहते हैं। गुलदार शोराजी देखने में अधिक सुदृश्य नहीं होता। शौराजीको देखने में प्रति सुन्दर लगता है। तरह यह भी प्रति बहत् एव भीमकाय रहता, किन्तु मुक्डा-प्रधानतः दो श्रेणीका होता है-स्याह माधुर्यपूर्ण गम्भीर भावके बदले अपनेमें कुछ भीम- और धब्बेदार। यह देखने में पति सुन्दर रहता है। दर्शनख रखता है। चोटियालोंमें किसी किसी इसके विशेष चिह्नमें चचुके ऊपर चक्षुके उपरिभागसे श्रेणीका चच्चु ईषत् कृष्णाम लगता है। इनमें शिखाके कोल पर्यन्त मस्तक धब्बेदार सफेद लगता मुखों की संख्या ही अधिक है। फिर सफेद काला और दोनों पक्ष तथा समस्त देशका अन्य वर्ण पड़ता चोटियाला भी होता है। यह कोटरमें बैठ गुटरगू है। यह अति शुद्र जातिका कयोत है। फिर शब्द निकाला करता है। स शब्द करते समय मुक्खा जितना ही क्षुद्र रहता, उतना ही सुदृश्य | गलदेशका अभ्यन्तरस्थ खाद्याधारं फल उठता है। लगता है। यह भी लके का तरह गर्दन हिलाता और उक्त खाद्याधार या खोस को अंगरेजीमें क्रप (Crop) अवटु (गुहो) उठाते समय सुन्दर एवं सौष्ठवसम्पन्न और इस श्रेणोके कपोतको क्रपार (Cropper) देखाता है। स्थाह मुक्खे में उज्ज्वलता अधिक होती। कहते हैं। पैरके परोंको देख कोई इसे है। इसका भी गलदेश नानावणमिश्रित चिक्कण • फेथाइड पिजन (Flay-thighed pigeon) भी कह रहता है। सिधा स्याहेके दूसरे रशके सुक्खे को ही देते हैं। किसीके मतमें धब्बेदार कहते हैं। धूसर चिन्न-सदृश गलफुला-दो प्रकारका है-वाह और सफेद। वर्णविशिष्ट मुक्खा चक्षुस्निग्धार होता है। इसके पैरमें यह प्रति बृहत्काय होता है। इसके चक्षुसे नीचे पर नहीं रहता। किन्तु मस्तक पर शिखा निकल वास्यच. पर्यन्त समस्त स्थान थैलीकी तरह .फूत Vol. IV 4.