पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कामना-कतुकाम १४५ तंबोलीके घर रहे। इलसे उसकी छोड़ कुछ दिन किसी रामदुचालक समय भनेक धनी, मानी और जानी १८१ गन्धवणिक के पास भी वह टिके थे। फिर मौखिया-चांद ध्यमियोंने यह मत अवलम्बन किया था। एक भूखामीके भवन डेढ़ वर्ष ठहरे। वहसि चलने के चैत्र मासकी कृपा- एकादपीको उन्होंने इस पर बङ्गालके पूर्वाशमें कोई कोई स्थान कुछ दिन घूम लोकसे अवसर लिया। फिर २७ वलर वयःक्रमके समय वैजड़ा नामक ग्राममें पोछे रामदुलालको पत्री सरस्वतीने 'कतामा' वह जा रहे। उक्त गाममें २२ शिष्य उनके अनुचर और 'सती मा' के नाम गही पर बैठ इस. सम्प्रदायको बने। फिर श्रौलिया-चांद चाकदहके निकट परारी श्रीहदि की। नामक स्थानमें बहुत दिन टिके और १५१ शाकको कर्ता-भजनौ सम्प्रदायके वीजमन्त्रका मूलसूव 'गुरु बयानमें मर गये। पाठ प्रधान शिष्योंने उनकी सत्व है। यही सबको पहले सिखाया जाता है। फिर कन्या उसी स्थान पर गाड़ देशकी परारी ग्राममें ले निम्नलिखित मन्त्र तीन बार सुनाते हैं- नाकर समाहित किया। "का पीखिया महाम। तुम हमारे और हम तुम्हारे ।। तुम्हारे कहते-मराठोंके हसमिम किसी सैन्याध्यचने ही सबसे कम चलते हैं। हम तुमसे निवार्ष भो चलन नहीं। इन चौलिया-चांदको बैगार पकड़ा था। किन्तु वह वि. तुम्हारी साथ। दोहाई महामस।" देशीके निकट चन्द्रहाटी घाटसे अपने कमण्डलुमें कर्ता-भजनियोंके मतमें परस्त्रीगमन, परद्रयहरण, गङ्गाको डाल जलशून्य पति गङ्गागर्भ पार कर गये। परहव्यासाधन, मिथ्याकथन, बथाभाष और पचाप- उनके कमण्डलुका गङ्गाजल आज भी घोषपा९में भाषका निषेध पौनिया-चांदकी मात्रा है। इनमें पानके घर रखा है। कताभननी विखास बाते, कि जातिविचार नहीं होता। मनुष्य मनुष्यका सेव्य और उस जलसे लोग सकल प्रमिलाय और मोक्ष पाते हैं। पूज्य है। दूसरे देवदेवीको उपासना पावश्यक नहीं। औलिया-चांदकै २२ शिष्यामि रामशरणपाल एक कर्ताभननियोंके कथनानुसार पृथियोका दूसरा सद्गोप नातीय राइस्य थे। उन्होंने इस मतको सर्वप्रकार धर्म समस्त पनुमान और स्त्रीय धर्म सत्व फैलाया है। पीचियाचांद पतिदीर्घकाय और पाजानु प्रधान है। धानसाधन द्वारा मनुष्य अपने इष्टदेवको लम्बित वाह रहे। वह कचभूल का बतायन की खाकर प्रत्यक्ष कर सकता है। किन्तु प्रत्यचकरण क्रिया अपना जीवन चलाते थे। उन्होंने अन्धको नयन, सबसे नहीं बनती। घोषपाड़ेमें महन्तको गही है। पटुको चरण, प्रयुतको पुन, दरिट्रको धन तथा मृतको फालानको पूर्णिमाको दोलका मेला लगता है। फिर नीवन दे अपने मतावलम्बियों को विमोहित किया रथयात्रा प्रमति दूसरे भी महोत्सव होते हैं। पौर बहुतसे लोगोंको पनुयायी बना लिया। उनके कतार (हिं. पु०) १ का, करनेवाला । यह संस्कृत प्रसादसे रामशरण भी अलौकिक शक्तिसम्पन्न हुये। 'कर्तृ' शब्दको प्रथमा विभक्तिका बहुवचन है। किन्तु रामशरणके मरनेपर उनके पुत्र रामदुलालने इस हिन्दीमें एकवचनको ही भांति पाता है। २ विधाता, मतको बड़ी स्वति की। वह फारसी खूब पढ़े थे। परमेश्वर, दुनियाको बनानवाचा। उन्होंने सब लोगोंके समझने योग्य . सात-पाठ सौ कर्तित (सं० वि०) कत--च् । कर्तन किया गीत सामान्य भाषामें बनाये। उनमें कोयो प्राचीन हुवा, कटा, छंटा, जो काटा गया हो। हिन्दू शास्त्रानुगत, कोयो मुसलमान सूफी सम्प्रदाय- ) कति यत् (स० वि०) कर्तन करनेको इच्छा रखने- सिख और कोयी गीतरचयिताका अभिप्रेत है। वाला, जो काटना चाहता हो। कर्तामजनी रामदुलालके उल गीतोंको भारत समः करिष्यत् देखो। झते हैं। प्रति एक्रवारको प्रातः पौर सायंकाल | कतुं काम (सं० त्रि.) कर्तुं कामः अभिलायो यस्थ, नो समान लगाते, उसमें लोग वही गीत गाते हैं। बड़ो। करनेका इच्छुक, जो करना चाहता हो। Vol. . IV. 37 कतिप्यमाण,