पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१५८

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1 कर्मपञ्चम-कर्मभूमि १५४ कर्मपक्षम (सं० पु.) एक रागिणी। यह ललित, अनीयर । बर्मप्रवचनीयाः । रामद। पाणिनि-व्याकरणोक्ता संधाविशेष। हिन्दोल, वसन्त और देशकारके योगसे बनती है। कर्मपञ्चमी (स• स्त्री०) कर्मपक्षम देखो। कर्मफल (सं० क्लो०) कर्मण: जीवकृत शभाराभरूपस्य कर्मपथ (सं० पु.) कर्मणां पन्याः, कर्मन्-पथिन फलं परिणामः। १ शुभाशुभ कर्मका सुखदुःख भोगरूप अच। कर्मपदति, कामको राह। यह दशमकार है। परिणाम, भले बुरे कामसे पाराम और तकलीफ मिलनेका नतीजा । २ सुख, पाराम। ३ दुःख,

इसके परित्यागका उपदेश दिया गया है,-

तकलीफ। ४ कमरङ्ग फल, कमरख । "सायन विविध कर्म बाचा चापि चतुर्विधम् । कर्मफलोदय (सं. पु.) कर्मके परिणामका विकाश, मनसा विविध व दशकमपधास्त्यजेत् । प्रापातिपात: संन्यच्च परदारमथापि वा। कामके नतीजेका उठान। वीपि पापानि कायन सातः परिवर्तयेत् । कर्मबन्ध (सं० पु.) कर्मणा बन्धः शरीरसम्बन्धः, पसत्प्रया पारुष्य पेशन्धमतृत वथा। ३-तत् । १ कर्मके : अदृष्टसे. परजन्मका बन्धन, चलारि वाचा राजेन्द्र ननोचावचिन्तयेत् । कामको गांठ। इसीसे जीव सुखदुःख भोगता है। अनभिधा परखें षु सर्वसबै पु मोहदम् ॥ (नि.) कर्मबन्ध बन्धनसाधनं यस्य, बहुव्री। कर्मयां फलमस्तीति विविध मनसा चरेत् ।" (महाभारत) २ कर्मके बन्धनका कारण रखनेवाला, जो कामको विविध कायिक, चतुर्विध वाचिक पौर विविध गांठ रखता हो। मानसिक-दश कर्मपथ परित्याग करना चाहिये। कर्मबन्धन (सं० क्लीः) कर्मणा बन्धनं कर्म एव प्राणनाश, चौर्य और परदारगमन तीन प्रकारके बन्धनं वा। १ कर्मस जम्भग्रहण, कामसे पैदा होनेको कायिक कर्म सर्वतोभावसे छोड़ने योग्य हैं। असत्, हालत। २ कर्मका बन्धन, कामकी गांठ । कर्कश, निष्ठुर और मिथावाक्य यह चार प्रकारके कर्मभू (स. स्त्री०) कर्मणः कर्मणि उचिता वा भू, बाक्य बोलना पच्छा नहीं। परसम्पत्तिसे निष्य । ६ वा ७-तत्। १ अष्ट भूमि, जोती हुयी जमीन् । रह, सर्व जीव पर सौहार्द रख और कर्मके फलमें २ भारतवर्ष। विश्वासकर चलना उचित है। "सवापि भारत बेष्ठ नम्बुहोपे महामुने । कर्मपद्धति (स. स्त्री०) कर्मणां पतिः, ६-तत् । यतो हि कर्मभूषा पहोऽन्या मोगलमयः ।" कर्म को प्रणाली, काम करनेका कायदा। कर्मभूमि (सं. स्त्री०) कर्मणा पुण्यमनक यज्ञादि कर्मपाक (सं० पु०) कर्मयः धर्माधर्ममूलकस्य पाकः रूपक्रियायाः भूमिः, -तत्। .१ आर्यावर्त, विन्ध्याचत परिणामः, ६-तत् । धर्माधर्मका सुखदुःखादि रूप और हिमालयके बीचका देश । परिणाम, भलायो वुरायोसे आराम और तकलीफ "भारतानेरावतानि विदेहाय कुरुन् विना । मिलनेका नतीजा। कर्मविपाक देखो। वर्षाषि कर्ममूम्यः स्य : शेषाणि फलममयः" (हेमचन्द्र) कर्मपुरुष (स० पु०) जीव, जानवर । कर्मप्रधानक्रिया (सस्त्री०) क्रियाविशेष, एक फेल । कुरको छोड़ भारत, ऐरावत पौर विदेह कर्मभूमि इसमें कम ही प्रधान रहता.और कर्ताके.समान पड़ता है। बाकी वर्ष भोगभूमि कहाते हैं। २ भारतवर्ष, हिन्दुस्तान। है। फिर क्रियाका लिङ्क और वचन भी उसी कर्ता "उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेयव दचिणम् । बने कमके अनुसार लगता है। वर्ष" वद मारतं नाम भारती यव सन्तति । कर्मप्रधान वाक्य (सं० लो०) वाक्यविशेष, एक जुमला । मक्यौमनसाइयो विचारोऽस्य महामने । इसमें कर्म कर्माके स्थानपर रहता है। बमभूमिरियं खर्गमपवर्गध गछताम् । (विणपु. शार) कर्मप्रवचनीय (स: पु०.).कमपोलवान्, कर्मन्-प्रवच समुद्रसे उत्तर और हिमाद्रिसे दक्षिण पड़नेवाले . -