पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१७६

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कलकत्ता १७७ । राम चक्रवर्ती चण्डीमङ्गलमें कसत्तेका उल्लेख है। पालका नाम भांगौरवौके पश्चिम तौर चला था। कुल- सम्भवतः १४६६ शाकको सबाट प्रकवरके सिंहासना पासक.दो मुन रहे-हरिपाल और पहियाल । ज्येष्ठ पद होनेसे बारह वर्ष पहले व अन्य बना. था। हरिपालने सिङ्गुरसे पश्चिम पपने नामपर इट्टवापीयुत वणिक् धनपति और उनके पुत्र श्रीमन्त सौदागरक एक महाग्राम स्थापन किया। फिर वहां ब्राहाण, समुद्रयात्राको कलकत्ते पहुंचनेको कथा है। प्रतएव तन्तुवाय और साङ्गायि बसा यह राजा बने। परिपाल अकबरसे भी अनेक पूर्व कलकत्ता वर्तमान था। किन्तु माइय, त्रिवेणीके निकट चक्रदीप (चाकदा) और नाममें कुछ गड़गड़ पड़ता है। पाईन-इ-प्रकवरीमें | मुरदीप (डमुरद के मध्य जाकर बसे । अहिपालके कलकत्ता महालके ग्रामोंका नाम नहीं। फिर उसी तीन पुत्र थे-कतध्वज, विभाण्ड और महाबल समयके संस्कृत अन्यकारोंने कलकत्तेको किसकिला वैशिध्वज। वह किलकिलासे पश्चिम योजनासर सप्त- लिखा है। मगधाधिप बैजनराजको सभाकै पण्डित ग्रामके मध्य राजा हो वैध जातिको पालने लगे। कत- कविरामने 'दिग्विजयप्रकाश नामक पुस्तकमें किस ध्वजके पुत्र महाबल विरति सुगन्धि नामक ग्राममें किलाका विवरण दिया है। उनके मतसे भी किस रहते थे। विभाण्ड पूर्वपारको वाण राजाके मन्त्री किलामें अनेक ग्राम लगते थे। नीचे कविरामका हुये। उनके वंशधर मालमें वास करते थे। ...... विवरण उहत है, यशोरराज प्रतापादित्य भागीरथौके उभय पाखंड 'पश्चिम सरस्वती और पूर्व यमुना नदीके मध्य देश समूहके राजा रहे। राना कैविध्वजने चान्दोल- २१ योजन परिमित किलकिला भूमि है। यह दो में नाना स्थानसे कायस्थ बीता राजत्व चखाया। भागमे विभव है। दानगली नदीसे पश्चिम गङ्गाके भान कर बाली नदीतीर कैथिध्वजके वथोडव निकट शा३खरी देवी विरामती है। यहां उपवास कायम राजा है। शिवपुर और बालुक (बाली) करनेपर कुष्ठादि दारुण रोग देवीकी छपासे पारोग्य ग्रामके मध्य तथा भदेखरके निकट श्रीरामपुरमें होते हैं। माहेश और खड़गदाह (खडदा) ग्रामके ब्राह्मण रहते हैं। हुगलीके निकट वंशवाटी मध्य दीधंगना (बूढ़ी गङ्गा )के निकट कुलपाल नामक (बांसवेडिया) प्रभृति ग्राम है। यहा खलापि नदी राजा रहते थे। किसी किसीके कथनासार गङ्गा नदी दामोदर से निकल गङ्गामें पा गिरी है। खंलशानि किनार पनपदेश समूहके मध्य श्रेष्ठतम वा भूमि है। ग्राममें धीवर राजाका राजत्व है। आजकल गवा वहां कदली, पृश्निपर्णी, पूगफल (सुपारी) प्रभृति और यमुना नदीके मध्य पाटलिग्राम कायस्थ अधिवा- इक्ष सत्पन होते हैं। पीठमान्तांतन्त्रके मासे भागौरथी सियों के अधीन है। गोविन्दपुरादि ग्राम, भयक्षिक, तोर सती देवीके शरीरसे वामहस्तकी अङ्गुलि गिर काली देवीके निकटस्थ शृगावदाह (सियालदा) पड़ी थी। काली देवीके प्रसादसे किलकिलावासी धन और सारपक्षिमें भी कायस्थोंका शासन चखता है। धान्यवान रहते हैं। सकल प्रकार शस्यादि उपजनेसे सब मिलाकर ३००० ग्राम किलकिलामें लगते हैं। लोग इसे देश कहा करते हैं। यहां सकल वर्णक विश्वसारसम्बके प्रथम पटलमें किलकिलास्थ शिव- लोग नियत रूपसे बसते हैं। किसकिना(अव्यय शब्द लिङ्गका विषय निरूपित है। इसौ सन्त्रके मतसे है। लोग नानाप्रकार इसका अर्थ लगाते हैं। स्थानीय किलकिला देशान्तर्गत नवदीप नगरके माधणवंशमें देशवासियोंके मतसे समुद्र मथते समय कूर्मपृष्ठस्थित चौसत (चैतन्यदेव) और खड्गद प्रामस्थ हाड़ायि मुन्दर पर्वतके भारसे घबरा दैत्योंके मोहनको अनन्त पण्डितके घर नित्यानन्द जम लेंगे।* देवने निखास छोड़ा था। उसी निश्वासका ; कोख मां तक पहुंचा, वहां तक किसकिसा. देश वा । •"परिमे सरसतौसीमा पूर्व वासिन्दिका मवा। सती देवीके बस मर वान् इसपास पौर देश एवधिविधीमने मियो विचविखामिषः। र Vol. IV. 45