पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१९३

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। २६४ कलकना-कलगी बड़ी बड़ी राहों और छोटीमोटो गलियों में विजलो ४ जलप्रपातध्वनि, भरनेकी पावान । ५ विवाद, तथा गैसको रोशनी होती है। इसलिये दिनको चकचक, झगड़ा। भांति रातको चलने फिरनेमें कोई कष्ट नहीं कलकत (हिं स्त्रो० ) कण्डु, खुजन्नी, कमाइट। पड़ता। फिर विजलीसे दाम, पाठा पीसनेको चक्को कनकलवान् (स.नि.) कञ्चकलो ऽस्यास्ति, कल-कल- और छापकी कल भी चलती है। घर घर विजलीके मतुप मस्य वः । कन्तकन्नविशिष्ट,चकचक लगानेवाचा । पास लगे हैं। कलकलो (हिं. बी.) क्रोध, गुस्सा। डेन-कुछ दिन पहले कलकत्तेको राहोंके घर कलकानि (हिं. स्त्रो०) कोलाहल, मोर, रसा। उधर गन्दा नाला था। किन्तु अब यह बात नहीं कलकि, अलकी (हिं०) शनि देखो। रही। प्रायः सर्वत्र भूमिके भीतर ड्रेन चलता है। कालकोट (सं० पु०) कलाधान: कोटा, मध्यपदो० । सब जगहका मैला उसमें गिर धावेक विक्ष पहुंचा। सङ्गीतका ग्रामविशेष, गानेका एक ग्राम । करता है। कलकत्तेके रहनेवालीको नालेका दुर्गन्ध कलकुनिका (सं. स्त्रो०) कलं कूजयति उच्चारयति, भीगना नहीं पड़ता। कल-कूज-गनु -टाप प्रत इत्त्वम् । मधुरध्वनिकारिती, बन्दर और व्यवसाय-कलकत्ता बन्दर भागीरथी किनार मोठी प्रावाज निकालनेवाची। २ विवासिनी, पहिया, ५ कोस विस्तृत है। १८७० ई.से पोट कमिशनरीका विनाश । तत्त्वावधान चलता है। १८७१ ई०को २२ लाख कलकूजिका, कलक्षिका देखो। रुपये खुधकर कलमत्तेसे हावड़े तक वर्तमान बड़ा कलकूट (सं० पु.) क्षत्रिय जाति विशेष तथा उसके पुत बना था। पोर्टकमिशनर ही इसकी देख भाल रहनेका देश । रखते हैं। फिर पोर्ट कमिशनरोंका प्रधानकार्य कलकणिका, कवनिका देखो। भागीरथी किनारे जहाज, नाव तथा मान रखनेको कलकर (अं० पु० = Collector ) १ संप्राइक, जमा जेटी एवं गुदाम बनाना, नदी पर रोपनी कराना करनेवाला, बटोरू। २ करणाहक, उगाहनेवाला, और नौकादिका अनिष्ट बचाना है। कलकत्तेका जो तहसील करता हो। ३ जिलेदार, निलेका बड़ा वाणिज्य जहाज और रेलवे नाना देयोंके साथ हाकिम । यह मालगुजारी वसूद्ध कराता और मानके होता है। प्रति वर्ष करोड़ों रुपयेका मान पाया मुकदमे भी निबटाता है। जाया करता है। मारवाड़ियोंने इसमें पड़ अपनी कलकरी (हिं. स्त्री०) १ जिलेदारी, कलकरका अच्छी उन्नति देखायी है। यहां पाट (सन)का पोहदा। २ मालक महकमे की अदालत । (वि.) बड़ा कारवार है। ३ कलकर-सम्बन्धीय, कलकरके मुतालिक । कलकत्ते में अजायब घर, चिडियाखाना, बोटानि- कलगट (हिं० पु. ) तवर, कुल्हाड़ा। कल गार्डन और मेठ दुखीचन्द तथा राय बदरीदास .कलगा (हिं. पु. ) इविशेष, एक पेड़ । इसे बहादुरका उद्यान देखने योग्य है। सन्याको एडन मुकेश और जटाधारी भी कहते हैं। कलगेका गार्डन (लेडी बाग )में वेण्ड बाजा बनता है। फुल मुर्गेकी चोटी-जैसा लाल और चपटा लगता कसकना (हिं० कि०) १ चौकार करना, चिज्ञाना। है। मरसेसे यह मिलता है। वर्षा ऋतु रसको २दुःख करना, रश्न मानना।' उत्पत्तिका समय है। पाखिन वा कार्तिक माह कलकफस्स (संपु.) दाडिमच, मनारका पेड़। कलगा फूलता है। कलका (स.पू.) कन्नादपि कसा, कलशब्दे धन कलगी (त. स्त्री.) १ बहुमूल्य पालक, कीमती पर। कसः प्रकार, प्रकारार्थे हित्वं वा। कोलाहल, यह राजावों की पगड़ीमें लगती है। कभी कभी इसमें शोर, हमा। २ मनिर्यास, सोबान, धूमा । ३ शिव । मोती भी पिरो देते हैं। शुतुरमुर्ग वगरका विड़ियोंक