पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२०५

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. १७पल्प समय। ९० कला-कलाकन्द इन्द्रके षड, देवर्षिक सप्तम, अजैकपादके अष्टम, । विद्यामान, वैजयिकी विद्याज्ञान और वैतालिको यमके नवम, वायुके दशम, उमाके एकादश, पिळ विद्याज्ञान। किसी किसी पुस्तको सूचीवाप कर्म लोकके हादश, कुवेरके त्रयोदश,पशुपतिक चतुर्दश और तथा सूत्र कोडाको एक पद बना वोगाडमरुक वाद प्रजापतिके पञ्चदश कला पौने पर षोड़श कला जनमें अधिक सनिवेश और वेतालिकोके स्थान पर वैया- घुस कर ओषधिके शरीरपर. पहुंचती है। गो सिको पाठ देख पड़ता है। १४ जिह्वा, जीभ । सकलके जल तथा ओषधि प्रविष्ट कला पौने पर "कचा परामुखों कृत्वा विपथै परियोजयेत् ।" (इठयोगदौपिका) अमृत खरूप पोर होकर निकरती है। इस क्षौर- जात कृतको मन्त्रपूत बना अग्निमें पाहुति देने चन्द्र १५ शिव । १६ लेथ । फिर दिन दिन पाण्यायित होते हैं। १८ विभूति । १८ सामर्थ्य, ताकत। २. संख्या, ११ सूर्यका हादश भाग। इनका नाम तपिनो, शमार। २१ शौर्यादि गुण, बहादुरी वगैरह सिफ्त । तापिनी, धना, मरीचि, ज्वातिनी, सचि, सुषमा, २२ फलन। २३ विभीषणको ज्या कन्या। यह भोगंदा, विश्वा, बोधिनी, धारिणो और क्षमा है। मगैचिको पना थी। २४ जीव देहस्य षोड़शकता । १२.पग्नि-मण्डलका दशम भाग। इन्हें धुना, इन्हें प्राण, बहा, व्योम, वायु, जल, पृथिवी, इन्द्रिय, मन, अन्न, वीर्य, तपः, मन्त्र, कम, लोक और नाम अचिं, उमा, ज्वलिनी, ज्वालिनी, विस्फ लिङ्गनी, सुन्त्री, कहते हैं। २५ मानायुक्त एक लघु वर्ण । सुरूपा, कपिला और हव्यकव्यवहा कहते हैं। १३ चतुःषष्टि (६४) कला। शिवतन्त्रमें इन "पड़ विषमेऽष्टी समे कलाक्षाय सम यो निरन्तराः। सकल कलावौका नाम मिलता है, यथा-गीतवाद्य, न समाव पराशिता कला वैतालीयोऽन्चे रखी गुः" (चरवार) नृत्य, नाट्य, चित्र, भूषण, निर्माण, तण्डुल तथा कुसु. २६ ठाट, बनाव। २७ बदली, केला। पहले मादिसे पूजाके उपहारको सज्जा, पुष्पशय्या, दन्त भारतमें कलाको नाम बना जलपथसे प्रति जाते थे। वसन-पङ्गराग, मणिभूमिकाका · कम, शय्यारचना, बड़े बड़े केलेके वृक्ष काट बांससे बंधने पर यह नाव उदकवाद्य, चित्रायोग, मालाग्रन्यन, चड़ानिर्माण, बनती है। वैशभूषाकरण, कर्णपत्रभङ्ग, गन्धलेपन, भूषणयोजना, कलाई (हिं. स्त्री० ) १ कलाची, पहुंचा। पलीके इन्द्रजाल, कौमारयोग, हस्तलाधव, विविध शाकपूपादि जपरी जोड़को कलाई कहते हैं। पुरुषके रक्षा बांधने भक्ष्य प्रस्तुतकरण, पानकरस-रागासवादि, योजना, और स्त्रोके चूड़ी चढ़ानेका स्थान कलाई ही है। सूचीवापकर्म, सूतकौड़ा, प्रहेलिका, प्रतिमाला, दुव- कविताम यह शब्द प्रायः पाता है। २ व्यायामविशेष, चक योग, पुस्तक पाठ, नाटिका एवं श्राख्यायिका एक कसरत। इसे दो मनुष्य मिखकर करते हैं। एक दर्शन, काव्य समस्यापूरण, पट्टिकावेत्रवाणविकल्प, . दूसरेनी कलाई बलपूर्वक पकड़ता पौर दूसरा अपनी तककर्म, तक्षण, वास्तुविद्या, रौप्यरत्नादि परीक्षा, कलाई घुमा उगलियोंके सहारे उसको कलाई पर ३ कलायो, पूला। ४ पूजा। चढ़ाया करता है। धातुवांद; मणिरागज्ञान, आकरज्ञान, वृक्षाधुर्वेद योग, यह पार्वत्य प्रदेशमें फसल पाने पर होती है। फसल मेष कुक्कुट एवं लावक युद्धविधि, शुकथारिका कटनेसे पहले दश बारह बालका पूता बांधकर कुल प्रलायम, उत्सादन, समाजन कौशल, अक्षर मुष्टिका कथन, स्नेच्छित कविकल्प, देशभाषाज्ञान, देवताको अर्पण करते हैं। ५ कुकरी, सूतको मच्छो। पुष्पचकटिका निमित्तान, यन्त्रमाढका, धारण ६ कलावा ! यह हाथोके कण्ठ में बंधती है। पालक इसौमें पद डाल हाथोकी हांकते हैं। ..पखान, माटका, सम्माध, मानसो काव्य क्रिया, क्रियाविकल्प, छलितक योग, अभिधान कोष-छन्दोमान, वस्त्रगोपन, पदुई। ८माष, उड़द । शतविशेष, पाकर्षण क्रीड़ा, बासकोड़नक, वैनायिकी । कलाकन्द-प्रतिजगती नामक छन्दका एक भेद।