पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२६७

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- " २१८ कसौजौ-कस्त रिकामृग हैं। रतवर्ण कसौंजेके पत्र और वोज पीरोग। कस्तोर (सं० लो०) पिञ्चट, रांगा। इसका संस्खत औषधको भांति व्यवद्धत होते हैं। पर्याय-पुत्रपिञ्चर, मृदङ्ग, वङ्ग, रङ्ग, वपुः, वर्णज, कसौंजी (हिं. स्त्री०) साँजा देखो। नागजीवन, गुरुपत्र, चक्र, तमर, नागज, पालीनक कसौंदा, कौंजा देखी। और सिंहल है। र देखो। कसौंदी (हिं० स्त्रो०) कमौना देखो। कस्तीर्ण (सं० लो०) रङ्ग, गंगा। कसौटी (हिं० स्त्रो०) समणि, चांदीसोना कसनेका कस्तुरिका (सं० वि० ) कस्तूरी खार्थे कन्-टाप-पृपो. पत्थर। यह कानी होती है। शालग्राम कसौटीके | दरादित्वात् साधुः। कस्तूरिका मृग, एक हिरन बनते हैं। लोग इसके खरल भी तैयार करते हैं। इसकी तोंदौरी कस्तूरी निकलती है। इस रिकाम्ग देखो। २ परीक्षा, जांच। २ कस्तरी, मुश्क। कसौली-पञ्जावके शिमला ज़िलेका एक सैन्यवास | कस्तूरमक्षिका, कस्त रोमक्षिका देखो। (छावनी) और निरामय स्थान । यह एक पर्वतके शिखर कस्तूरा (हिं• पु० ) १ कस्तूरी, मुश्क। २ सन्धिभेद, (अक्षा० ३०.५३ १३“उ• तथा देशा० ७६.०५२ एक नोड़। यह जहाजी तख्तों में पड़ता है। ३.शक्ति पू०)पर अवस्थित है। कालिकाको उपत्यका नीचे भेद, एक सांप। इसमें मोती रहता है। ४ पछि देख पड़ती है। कसाली अम्बालेसे ४५ मोल उत्तर विशेष, एक चिड़िया। यह धूसरवणं होता है। पद और शिमलेसे ३२ मील दक्षिण-पश्चिम लगती है। तथा चञ्च का वर्ष ,पोत लगता और उदर खेताभ रहता १८४४-४५ ई०को देशीय राज्य बीजासे भूमि ले यहां है। कस्तूरा पार्वत्य प्रदेशमें काश्मीरसे अासाम तक छावनी डाली गयी थी। उस समयसे वराबर कासलीम मिलता है। इसकी बोली सुनने में अच्छी लगती है। अंगरेज सिपाही रहते हैं। पर्वत समुद्रतलसे ६३२२ ५ द्रव्य विशेष, एक चीज। इसे पोर्टवलेयरके पर्वतोंकी फीट ऊंचा है। इससे दक्षिणपथिम समभूमि और थिलावास खुरच-खुरच निकालते हैं। कस्तूरा अत्यन्त उत्तर हिमालयका दृश्य अत्यन्त मनोहर लगता है। मूल्यवान् होता है। इसे दुग्धके साथ २ रत्ती सेवन यहां कुछ ट और शृगाल आदिके विषको चिकित्सा करते हैं। लोग इसे अबाबील पक्षीके सुखका फैन होती है। समझते हैं। कस्कादि (सं०४० ) पाणिनि व्याकरणोक्त गण विशेष। कस्तूरिक (सं० पु० ) करवीर वृक्ष, कनैरका पेड़। इसमें विसर्गस्थानपर नित्य 'स' होता है। कस्कादिके कस्तूरिका (सं० स्त्री० ) कस्तुरी स्त्रार्थ कन्-टाप् पृषो. शष्ट यह है, कस्क, कौतस्कुत, धातुप्प न, शनस्कर्ण, | दरादित्वात् इखः। कस्तूरी, मुश्क । सद्यस्वाल, समस्त्री, साास्त्र, कांस्कान, सपिंकु- कस्तरिकाण्डज, कस्त रीकाज देखो। ण्डिका, धनुष्वापाल, वहिप्पल, यजुष्मान, अयस्कान्त, कस्त रिकामृग (सं• पु०) एक प्रकार हरिण, मुश्की तमस्काण्ड, अयस्काण्ड, मेदस्यिण्ड, भास्कर, बहकर हिरन । तलपेटके निकट नाभि, कस्तुरी सश्चित और पाक्क्षतिगण। (१०८।३।४८) रहने पौर शरीरसे कस्तूरिका गन्ध निकलने से ही कस्तम्भी (बै० स्त्री०) के शिरोऽप्रभागं स्तभाति, इसको कस्त रिकामृग कहते हैं। संस्कृत पर्याय- क-स्तनभ-भण-डी । भकटका अधः पत्तन रोकनेको एक प्रवष्टम्भ, गाड़ीके बांसको यूनी। अति पूर्वकालसे यह मृग परिचित और समादृत कस्तरी (हिं. स्त्री०) दुग्धपात्रभेद, एक बरतन। है। प्राचीन शास्त्रकारोंने पांच प्रकारके मृग कई इसमें दूध पकाकर रखा जाता है। मुख विस्तृत रहता "पृथिव्यपवायुगगनासे जोऽधिवास्तु पचा। है। फारसी में इसे 'कसा' और साधारण हिन्दी में मिद्यसबभेदाय समता भगनावकः । कस्तुरीमृग, गन्धवाह और गन्धमृग है। भारतवर्ष में । हैं। कस्तू रिका मृग 'पार्थिवमृग'के अन्तर्गत है। 'दूधडंडी कहते है।