पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२७०

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1 । कस्तू रिया-कस्माब २७१ उपकारी है। बालकोंके पक्षिपरोगमें अधिक प्रक्षिप मध्यपदलो० । १ मृगनामि,हिरनका नाफा। २ मल्लिका- होनेसे १.५ ग्रेन कस्त रो पिचकारीसे लगानेमें फल पुष्पभेद, किसी किस्म की चमेली। यह मृगमदबासा मिलता है। होती है। कस्तुरोमलिका दो प्रकारको मिलती है- पानकल तीन प्रकारको कस्तरी प्रचलित है एक लता सदृश और दूसरी एरण्डवक्षके समान । तिव्वती, रूमी और चीना। तिव्वती सर्वोत्कृष्ट, चौना दोनोंमें फलफल आते हैं। पुष्य और फलके वीजमें मध्यम पौर रूसी अधम होती है। रूस देशीय मगको सद्गन्ध रहता है। केश मलनेके मसालेमें इसका कस्तू गै उत्कृष्ट नहीं रहती। व्यवसायो रूस देशीय वीज डाला जाता है। मृगके नाभिमें लगा देते हैं। इससे रूस देशीय कास्त : कस्तू गेमग, कस्त रिकामृग देखो । रीका गन्ध बहुत कुछ बदल जाता है। कस्त गैमोदक ( स० पु.) मोदकभेद, किसी किस्मका मगनाभि अधिक मूल्यमें बिकती है। प्रत्येक लडडू । कस्तरी, प्रियङ्ग, कण्टकारी, दोनो जोरक, नाभिका मूल्य १५) या १) रु. है। इससे व्यवसायी त्रिफला, पक्ककदलीफन्न, खजूर, कृष्णतिलक तथा मांस और रक्ष मिला और कविम चर्म लेप लगा इसे कोकिलापका वीज समभाग और सबके वैवते हैं। किन्तु सुगनाभिकी परीक्षा बहुत सीधी शर्करा डाल सवैद्य पूस चूर्ण को मन्द मन्द पग्निसे है। कृत्रिम मगनाभि अग्निमें डालनेसे दुर्गन्ध उठता धानोरस, दुग्ध एवं कुष्माण्डरसमें पाक करे। मोदक है। किन्तु प्रछत कस्त रोमें यह बात नहीं होती है। अक्षपरिमित बनता है। इस मोदकको खानसे प्रमेह कस्तू रिया (हिं. पु.) १ कस्तू रिकागा (वि०) रोग पारोग्य होता है। (रसेन्द्रसारसपा) २ करत री मिश्रित, मुशको। ३ कास्तरी सदृश वर्ण कस्त रोवल्लिका (स'स्त्री.) कस्त रीगन्धधुता वलिका, विशिष्ट, जो मुस्क रंग रखता हो। मध्यपदलो। खताकस्त रो, एक खुशबूदार बेन । कास्त्र रिक, कस्तुरिक देखो। भावप्रकाशके मतसे यह मधुर एवं लिख रस, शीतल, कस्तरीकाण्डन (सं० पु.) मगनाभि, मुश्क। लघु, चक्षुके लिये हितकर, भेदक और हृष्णा, वस्ति- कस्त रीतिलक (सं० लो०) कस्त र्यास्तिलकम्, ६-तत् । रोग, मुखरोग तथा श्लेषनाशक होती है। कस्त रोका तिलक, मुश्कका टीका । कस्त रोहरिण, वस्तु रिकामृग देखो । "कस्त रोविलकं खलाटपटने” (विस्तव) कृस्द (१० पु.) प्रतिज्ञा, सङ्कल्प, इरादा। कस्त रोभैरवरस (स'• पु०) रसविशेष, एक कुश्ता। कस्मल (सं० क्लो०) कम-फल-मुट, निपातनात् शस्य हिङ्गुल, विष, रक्षः ( सोहागा), नातीकोषफल (जाय सत्वम्। १ सन्त्रास, घबराहट। २मोह, गण। फाल ), मरिच, पिप्पली पोर कस्तरी बराबर वरावर | कस्मात् (सं० अव्य०) किस कारपसे, किसलिये, क्यों । जस्त में घोटनेसे यह पोषध प्रस्तुत होता है। मात्राका कस्य (हिं. ली.) सुरा, शराब। परिमाण २ रती है। इसके सेवनसे शौताङ्ग सत्रिपात कखर (सं० वि०) कम्-वरन् । १ गमनशील, चलता दूर होता है। ( भेषव्यरयावली) बृहत् कस्त रीभैरव हुवा चालू । २ हिंसक, खंखार। रस बनानेका विधि यह है-कस्तुरी, कपूर, ताम, करमरी (हिं० स्त्री०) आकर्षण, खींचतान । धातकी, शूकाशिस्वी, रोप्य, स्वर्ण, मुक्ता, प्रवाल, लौह, यह शब्द लङ्कर खींचने या ताननेके पर्थमें भाता है। पाठा, विङ्ग, मुस्तक, शुण्डी, बाला, हरिताल, अभ्न कस्मा (हि.पु० ) वर्वरकत्वक, बबूल को छाल। इसमें और आमलकी समभाग अर्कपत्रके रसमें घोटनेसे रंगनेके लिये चमड़ा भिगोया जाता है। २ मद्यभेद, यह रस प्रस्तुत होता है। इसे १ रत्ती पाकके रसमें सुरा,एक शराब। यह वर्धरको त्वक्से प्रस्तुत होता है। सेवन करने से विषमज्वर छूटता है। (रसरबावर) कस्साचना (हिं॰ स्त्रो०) दुबिया मटर, नौविण । कस्त रोमलिका (स' स्त्री०) कस्तूरी गन्धयुक्ता मल्लिका | कसाब (ज. पु०) गोधातक, कमाई।