पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

1 - कांटा-काड़ी २७८ परीक्षाकी क्रिया,हिसाव नोचनेको तरकीब । १० मन- है। इससे बहुधा पक्षी मर जाते हैं। पालतू पतिः योका कांटा निकाल डालते हैं। ४ मुखरोगविशेष, युइविशेष, किसी किसाको कुश्ती।. इसमें पहच- मुंहको एक बीमागैः। इससे मुखमें तौमाय और वान् भिड़कर नहीं लड़वे, दूर होस काट छांट करते पिड़कायें पड़ जाती है। ५ लौहकीलक, लोहेको है। २० अनुवरा भूमिविशेष, एक असर। यह कोल। ६ कटिया, मछली मारनेको कोस। गोला यमुना किनारे मिलता है। काटमें कोयो चीन उत्पन्न पाटा लपेट इसको पानी में डाल देते हैं। धोकसे खा नहीं होती। २१ किमी कि.मका वेलबूटा। यह जाने पर यह मछलीके मुखमैं अटकता और निकाले | दरी, नोकदार निकाला जाता है। २२ अग्निकोड़ा. नहीं निकलता । फिर शिकारी कांटेसे लगे मोटे विशेष, एक पातशबाजी। २३ मछलोका काटा। डोरको बन्दोके सहारे खोंच मछलोको अपर खींच २४ दुःखदायी पुरुष, तकज्ञीफ देनेवाला पादमो। लेता है। यन्नविशेष, एक पाजार। यह जोडेको कांटादार (हिं. वि.) कण्डक्रान्वित, कटोला। झुकी हुयो कोलोका एक गुच्छा है। इससे कुयेंमें काटी (हिं॰ स्त्री०) १ शुद्र कोलक, छोटो कोल। गिरे गोटे, गगरे वगैरह निकाले जाते हैं। ८.तीच्या २ क्षुद्रतुलाभेद, एक छोटी तरान। इसके दहपर वस्तुमाव, कोई नुकीलो चौल। ८ ग्रन्यनयन्त्र विशेष, सूचि लगती है। कर्मकारादि काटोसे काम लेते हैं। गूंथनेका एक भौजार। यह लोहको एक टेढ़ी कोल ३ कटिया, अंकुड़ी। ४ यन्त्रविशेष, एक प्रौजार। है। पटवे इसमें घागा डाल गूंचनेका काम बनाते यह किनारे पर चोहेको अंकुड़ी लगी एक लकड़ी है। है। १. लौहसूचीभेद, लौहेको एक सूयो। यह इससे सर्प पकड़े जाते है। ५ बेड़ी, कैदियोंके पैर तुलादण्डके पृष्ठदेशपर लगती है। इससे तराज के डाले जानेवाले लोहे के कड़े । ६ किमी किमाको रुयो। दोनों पलड़की बराबरी मालूम होती है। यह धुनि जाने पोछे बिनौलों में लिपटी रहती है। तलाभेद, लोडेको एक तराज । इसको डांडीमें कांटा २ वानकीको एक कोड़ा, लड़ लगानेका खेल। सगा रहता है। १२ नासालारविशेष, लौंग, कोल, कांटेदार, कांटादार देखो। नाकका एक ने,वर। १३ खाद्य सम्बन्धीय यन्त्र विशेष, कांठा (हिं. पु.) १ कण्ड, गला। २चिह विशेष खानका एक आजार, इससे उठा उठा पंगरेज रोटी एक मिथान। यह शुकपक्षीके गनमान्त पर मण्ड- वर्ग,रह खाते हैं। १४ काष्ठयन्त्रविशेष, वैसाखो, चाकार पड़ जाता है। ३ उपकण्ड, किनारा। 8 पाखं; पांचा। इससे कषक तणादि बटोरते हैं। १५सूचि- बगल । ५ काष्ठदण्डविशेष, एक लकड़ो। यह एक विशेष, सूजा। १५ घटिका सूचि, घड़ीकी सूयो। विन्ते लम्बी और पतली होती है। इस पर तन्तुवाय १७ गपितमें गुणनफचकी शहाशवपरीक्षा, जबरको बाना बुननेको रेश्म चढ़ाते हैं। बादखेका ताना कठिसे नांच। इसमें दो रेखायें पारपार बनायो.जानी है। ही बुना जाता है। फिर गुण्यके अद्ध एकत्र संयुक्त कर से भाग लगाते | कांडना (हिं.लो.) १ कण्डन करना, रौंद डाचना। हैं। शेष भङ्ग एक रेखाको किसी सीमापर रखते हैं। २ कूटना, पुरना। ३ मारना-पीटना, लतियाना। इसी प्रकार गुणकके भी पक जोड़ पौर नौसे तोड़कर कांडली (हिं. स्त्री०) काण्ड, कुखफा, लोनी। शेष अरेखाके दूसरे प्रान्त पर रखा जाता है। यह काड़ा .(हिं० पु०) १ धरोग विशेष, पेड़ॉकी एक संमुखीन भय अङ्क गुणन और से विभागकर शेष बीमारी। इससे चोंके काष्ठमें कोटादि संग नाते परको दूसरी रेखाके एक अवसान पर लगाते हैं। है। २ काष्ठकोट, लकड़ीका कोड़ा। ३ दन्तकोट, फिर गुणनफालके पर जोड़ने और.से तोड़ने पर दांतों में लगनेवाला कोड़ा। यदि शेष पर पूर्वोच्च पहले मिल जाता, तो गुणनफल कांडी (हिं. स्त्री० ) १ उदूखलगतं, पोखलीका गड्डा । सासमझा जाता है। १८ गणितसम्बन्धीय शहाशा इसमें डालकर सुषत्त पत्र कूटा जाता है। २ मिर्मभू ११ लौह .