पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३२५

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.. काचसम्भव-काछौ काचसम्भव (सं• क्लो०) काचः सम्भवः उत्पत्तिस्थानमस्य,

बहुव्री०। काचलवण, कालानमक।

पौर बहावाबार मौजूद है । १७८२ १०को इसकेल सावने यह बाजार लगाया था। ग्रामके मध्य एक काचसौवर्चल (सं० लो०) काचस्थानिक सौवचंचम्, नाला निकला, जिससे यह दो भागमें बंट गया है। मध्यपदलोपी कर्मधा० । काचलवण, कालानमक । भाने जाने के लिए पुन बंधा है। यहां इञ्चू (घुइयाँ) काचस्थालो (बी०) काचस्य स्थालीव, उपमितसमा। बहुत होती है। १ पाटलावध, पाडरीका पेड़। इसका संस्कृत पर्याय | काचक (सं•पु०) काच बाहुलकात् उकञ् । १ कुक्कुट, पाटलि, पाटला, अमोधा, मदूती, फलेरुहा, कृष्ण मुरगा। २ चक्रवाक, चकवा। छन्ता, कुवेराक्षी, कालस्थाली और ताबपुष्पी है। काच्छ (स.वि.) कच्छस्थानीय, नदी के किनारेका। भावप्रकाशके मतसे यह कषाय एवं तितरस, ईषदुष्ण- | काच्छप (स'• वि. ) कच्छपसम्बन्धीय, कछूयेका। दौर्य और वायु, पित्त, प्रलेमा, परुचि, खास, शोथ, | काच्छिम (स'• त्रि.) परिष्कार, साफ । रखवमि, हिका तथा तृष्णा नाशक होती है। इसका काछ (हिं.पु.) १ जस्का उपरि भाग, जांघका ऊपरी पुष्प कषाय, मधुररस, शीतवीर्य, हृदयग्राही, कण्ठ- दिया। २ काछा, लांग। ३ रूपका भराव। शोधक और कफ, रतदोष, पित्त तथा प्रतिसारन है। काछना (हिं. क्रि०) १ खोंसना, खगाना। १ श्रृंगार मल हिका और रक्षपित्तको दूर करता है। २ करना, बनाना। काचपाव। काहनी, (हि.स्त्री०) एक प्रकार को धोती। यह कस काचा, (सं. स्त्री.)१ काच-मणि, विलौरी पत्थर । और अपर चढ़ा कर पहनी जाती है। २ परिधेय वस्त्र- २ पखके दन्तको शत्र रेखा, घोड़ेके दांतको सफेद विशेष, नांधियेके उपर पहना जानेवाचा कपड़ा। नकौर। यह पन्द्रहसे सत्रह वर्ष की अवस्था तक यह धांधरेको तरह रहती पौर चुबट पड़ती है। घोडके दांतों में सरसोंकी तरह पड़ जाती है। रामलीला और कृष्ण सोलामें पुरुषमान प्रायः काछनी काचाच, (सं० पु.) काच इव पचि यस्य, बहुव्री । पहनते, हैं। .१ वृहदक, बड़ा बगला। २ पद्मकन्द, कमलको जड़। कांछा (हि पु०) बांग, उठी धोती। काचावा, (सं० स्त्री०) हरिद्रा, हलदी। काही युक्त प्रान्तको एक कृषक जाति। यह काचिघ, (सं० पु.) कचते दीप्यते, बाहुलकात् इन् लोग प्रायः खेत जोतते-बोते और भाजो तरकारी काचिं- कान्ति इन्ति गच्छति, काचि-हन-ड-पृषोदरा- बाजार में वेचते हैं। युक्त प्रान्तके काही ७ श्रेणियों में दित्वात् हस्य धः। १ काञ्चन, सोना। २ मूषिक, विभाव है-कनौजिया,, हरदिया; सिंगौरिया, जौन- चहा। ३ शिम्बी-धान्य विशेष, एक धान । पुरिया, मगहिया, नरेठा पौर कलाह। इन . काचिशिक (सं० पु.) काकचिच्चा, बुधची। श्रेणियों में परस्पर आदान-प्रदान और पान. भोजनादि काचित्-(संः अव्य. ) कोई भी भनिर्दिष्ट-स्त्री। प्रचलित नहीं। सातो श्रेणियों में कनौजिये सर्वापेक्षा काचित (सत्रि०) कच्यते बध्यते अशी, कच-णिच- । सम्मानाई और कछाइ सबसे छोटे समझ जाते हैं। शिक्यारोपित, शिकहरमें रखा हुआ। किन्तु कलाह कहते कि वही सर्वापेक्षा सम्मानाई और कनौजिये सबसे छोटे होते हैं। कनौजसे काथी काचिम, (संपु.) कच-णिच-इमन्। देवकुलोद्भव तक कनौनिये, पूर्व अवधमें हरदिये, अवधके दक्षिण- वृक्ष, पाक पेड़। काचितिम्दि, बाविधिक देखो। पश्चिमांशमें सिंगौरिये, बनौधेमें जौनपुरिये, मगहिये. पौर वरठे विहार में तथा का व्रज एवं जयपुरादि काचुया-बङ्गालके खुलना जिलेका एक गांव। यह भैरव और मधुमती नदीक सङ्गम स्थानपर बाधेरहाट स्थानों में मिलते हैं। इन सात अंथियोंको शेड़ से सीन कोस पूर्व अवस्थित है। यहां पुलिसका थाना कारियों में दूसरी भो । श्रेषी चलतीधाकड,