पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३३६

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२ कर्तन, काचीप्रस्थ-काटना कांचीपस्थ (सं० स्त्री०) काशीपुर देखो। पड़ता घऔर केश पकने लगता है। किन्तु खानेमें कानिक (सं० क्लो) कु दात्सिता पञ्जिका प्रकाशी कोई दोष नहीं। (राजनिघण्ट) यस्य, कु-यक्ष-गवुल-टाप् प्रत इत्वं कोः शादेशः। कानिपत्रिका (सं० खी. ) कृष्णदन्ती क्षुप, धान्याम्ल, कांजी। अन्नमें जल डाल सड़ानेसे जब कालो दांतो। खट्टा पड़ नाता, तब वही जल 'कालिक' कहाता| काजी (सं० स्त्री०) के जलं अनति, क-पन्ज-अण इसका संस्कृत पर्याय-पारनान्च, सौवीर, डोष् । १ महाद्रोणपुष्यो, एक फूलदार पेड़। कुल्माय, अभिपुत, अवन्तिसोम, धान्यान्न, कुम्नल, २ काजिक, कांजो। ३ भाग, एक ओषधि । कुल्मास, कुल्माषाभिषुत, काजीक, कालिका, कक्षिक, काप्नीक (सं० लो०) कालिक, कांजी। काजी, भक्तवारो, धान्यमूल, धान्ययोनि, तुषाम्ब, काट (सं० पु०) कंजलं भव्यते अन, का-पट-घञ्। रहान, महारस, तुषोदक, शुक्त, चुका, धातुन, १ कूप, सूवा । २ विषमयय, नोची-जंची राह । उन्नाह, रक्षोन, कुण्डगोलक, सुवीरान, वीर, काट (हिं. पु०-स्त्री.) १ छेदन, कटाई। अभिषव और अम्बसारक है। तराश । ३ आहत स्थान, कटी हुयी जगह। ४ पीड़ा, राजवल्लभके मतसे यह भेदक, तीक्ष्ण, उष्ण, दर्द। ५ छल, धोका। ६ मन्बयुदका कौशल विशेष, स्पर्शशीतल, श्रम एवं कान्तिनाशक, अग्निवर्धक पेंचपर लगनेवाला पेंच। कार्ड, चिट्ठी लिखने का और पित्त, रुचि तथा वस्तिशुदिकारका है। फिर एक कागज। ८ ताशके खेलमें तुरुपका रंग। इससे राननिघण्ट, देखते इसे अपर मलनेसे वायु, शोध, दूसरे सब रंग कट जाते हैं। मन, कोट। पित्त, ज्वर, दाह, मुर्छा, शूल, प्राध्यान और विवन्ध काटको (हिं. स्त्री०) यष्टिविशेष, एक छड़ी। इससे रोग विनष्ट होता है। मदारी तमाशा देखाते और वकर, बन्दर तथा भालू काजिकवटक (सं० पु.) खाद्यद्रव्य विशेष, कांजी नचाते हैं। बड़ा। मट्टोका एक नूतन पान कटु तेल लगा काटन (हिं. स्त्री०) खण्डविशेष, एक टुकड़ा। यह निर्मल जलसे भरते हैं। फिर उसमें राई सरसों, निरर्थक होनेसे छोड़ दिया जाता है। जौरा, नमक, बौंग और इलदीक चूर्ण साथ कुछ काटना (हिं. क्रि०) १ कर्तन करना, तीक्षा अस्त्रसे बड़े भिगो तीन दिन तक मुख बांध रख छोड़ते हैं। खण्ड उतारना, टुकड़े उड़ाना। २ रगड़ना, पोसना। यही बड़े जब खट्टे पड़ जाते, तव 'काक्षिकवटक' ३ चर्मपर आघात लगाना, चमड़ा उड़ाना। ४ छांटना, कहाति है। यह रुचि एवं कफकारक और शूल, व्योतना। ५ मिटाना, छोड़ाना। ६ व्यतीत करना, अनीर्ण, दाह तथा वायुनागक है। विता देना। ७ गमन करना, चलना । ८ अधर्मसे धनो- कालिकषट्पत (सं० लो०) धृत विशेष, एक घो। पार्जन करना, चोरीसे रुपया कमाना। 2 रद्द करना, हत ४ घरायवा, काजिस १६ शरावक और हिङ्ग, छेकना। १० प्रस्तुत करना, बनाना । ११ निकालना, शुण्ठी, पिप्पली, मरिच, चश्य तथा सैन्धवलवणका ले जाना। १२ खींचना, तेयार करना। १३. बांटना, कल्क एक एदत पन्ना एयान्न पकानेसे यह औषध प्रस्तुत भाग लगाना। १४ तराश लेना। १५ सफायोसे होता है। काजिशपट्पदकृत आमवातके लिये फैटना। १६ उठाना, भोगना। १७ दांत मारना, हितकर है। (चक्रपापिन) डस लेना। १८ लगाना, फाड़ना। १८पार करना । कालिका (संस्त्री०) कुत्सिता अनिकायस्याः, टाप् । २० पाना, देख पड़ना। २१ मारना, उड़ाना। १ घुजीवन्ती। २ पलागी जता । ३ काजिक, कांजी। २२ प्रसिद्ध करना, सावित होने न देना । २३'चोराना। काश्मितेस (सं० लो०) कार्मिक विशेष, एक कांजी। २४ अलंग करना, सोड़ना। २५ सहन न होना, सा इसे माननेसे वात बढ़ता, दाह उठता, गात्र शिधिन. न जाना । २६ झाड़ना, साफ करना। Vol. IV. 85