पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४२

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४२ कमलवन्धु-कमलवसु किसको मायरी। इसके अक्षर नियमपूर्वक लिखनेसे । कमल वसुबालके एक विख्यात व्यक्छि। साधारणत: कमलका चित्र उतर पाता है। लोग इन्हें 'फिरङ्गी कमन्तवोस' कहते हैं। किन्तु कमलबन्धु (सं० पु०) कमलोंका बन्धु सूर्य । इस विजातीय उपाधिक संयुक्त होनेका कारण बहुतसे कमलबायो (हिं. स्त्री०) रोगविशेष, एक बीमारी। लोग नहीं जानते। इससे शरीरं पीला पड़ जाता है। कमल वसुका असली नाम रामकमल वसु था। कमलभव (सं० पु.) कमसात् भवतासि. कमल १७६७ ई०को इन्होंने गोवरडांगके निकटवर्ती गोईपुर भू-प्रए । १ कमलन, ब्रह्मा । २ एक जैन अन्यकार। नामक ग्राममें जन्म लिया। इनके पिता.माणिकचम्ट्र इन्होंने कर्णाटी भाषा शान्तिनाथपुराण बनाया है। वसु चन्दननगरवाले फान्सोमियों के अधीन तहसोतदार कमलभू (सं० पु.) ब्रह्मा। थे। उसी समय गोईपुर, कराल कालरूपी शीतना कमलमूल (सं० लो०) कमसकन्द, कंवलको जड़। रोगका प्रादुर्भाव हुवा। अधिवासी प्राणके भयसे कमलयोनि (सं० पु०) कमलं विष्णुनाभिकमलं स्थानान्तरको भाग रहे थे। माणिकचन्द्र स्त्री और योनिरुत्पत्तिस्थानं यस्य, बहुवी०। १ ब्रह्मा । (स्त्री०)। अपने चार पुत्र चन्दम-नगर ले आये। फिर वह पद्मको उत्पत्तिका स्थान, कंवल पैदा होने की जगह। जन्मभूमिको लौटे न थे। रामकमन्न गुरुको पाठ- कमलयोनि-संस्कृतले एक प्राचीन विद्वान् । नृसिंहने शालामें यत्सामान्य बंगला और फारसी पढ़ने लगे। सूर्यसिचाम्सपासनाभाष्यमें इनका वचन उहत किया है। यह अपने पिताके ज्येष्ठ पुत्र थे। पिताको कमन्नम्होचन सङ्गीतचिन्तामणि और सझौतामृतनामक अवस्था अच्छी न रहनेमे इन्हें अापार्जनको चेष्टा संस्कृत ग्रन्थरचयिता। करना पड़ी। २० वर्षके वयःक्रमकान यह पोतंगीनोंक कमलवती, कमलदेवी देखो। सरकारी जहाजी कार्यमें नियुक्त हुये। जहाज़ी कमलवीज (सं० लो०) पद्मवीज, कंवलका तुम, कपतानोंके साथ संस्रव रहनेमे इन्होंने अस्प दिनमें कमलगा। भावप्रकाशके मतसे यह स्वादु, कषाय सामान्य चमित पोर्तगीज भाषा सीखो घो। किन्तु एवं तितरस, थोतल, गुरु, विष्टम्भि, शुक्रवर्धक, सक्ष, कोई उन्नति न हुयो। इन्हें बाढ़ पक्षसे कुछ रुपया बलकारक, संग्राहक, गर्भसंस्थापक और कफ, वायु, ऋण लेना पड़ा था। उमी रुपयेके लिये यह थोड़े पित्त, रहल तथा दाहनाशक है। दिन काराग्यहमें भी रहे। फिर गोपीमोहन ठाकुरके कमन्तवदन (सं० वि० ) कमलमिद वदनं यस्य, यन और साहाय्यसे इन्होंने छुटकारा पाया। बहुव्रौ० । पद्मको भांति मुखकान्तिविशिष्ट, नो कमल रामकमसने नेनसे लौट अपना रुपया नगा व्यव- की तरह ख वसूरत सुह रखता हो। साय पारम्भ किया था। इस बार इनका भाग्य फिरा, कमलवधन-एक कम्पनराज । यह काश्मीरराजके डि' सुजा प्रति प्रधान प्रधान वणिकों के साथ कारबार प्रवस शत्रु रहे। बालक शूरवर्माके राना होने पर चलने लगा। पोर्तगीज, वणिकों के साथ कामकाज कर इन्होंने संयोग देख काश्मीरराच्य आक्रमण किया। यह सम्यक् सम्पत्तिशाली वन गये। फिर रामकमन्च एकान और तन्त्रीगणने इनसे हार मानी थी। चन्दननगरके जुनाहोंसे एक प्रकारको छोट तैयार करा फिर इनके भयसे काश्मीररान सिंहासनको आशा अमेरिका भेजने लगे। उमसे इन्हें विलक्षण नाम छोड़ गुप्त भावमें भाग खड़े हुये । इन्हें काश्मोरके राजा हुवा था। कहते-प्रत्येक जहाजमें ५.०००). बनमेको बड़ी आशा थी। किन्तु बाझोंने इन्हें किसी! मिले। इसोप्रकार इन्होंने दावार लाभ उठाया था। प्रकार सिंहासमपर बैठने 'न, दिया और इनके बदले पोतंगोजों (फिरनियों) के संसबसे बड़े. पादमी बननेपर खोग इन्हें 'फिरङ्गो कमल बोस' कहने लगे। वास्तविक यशस्कार नामक किसी सामान्य व्यक्तिको भिषित किया। बमक्षवर्धन ८५ यकको विद्यमान थे।.. यह एक कट्टर हिन्दू थे। रामकमल दोष-दुर्गोश्ववादि