पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४२७

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। 1 कामधेनु-कामन्दकि विश्वामित्र: राजा होते भी उक्त समस्त द्रव्य देख | गायके पाकारका होता है। दूसरो पोरके तख्ते में चमत्कृत हुये। उन्होंने देखा कि कामधेनुसे वैसा हनमान्को मूर्ति रहती है। यह लोग सवेरे और असाधारण ऐश्वयं भोग किया जा सकता था। इसीसे शाम दोनों समय उक्त यन्त्र की पूजा तथा पारतो विश्वामित्रने शत सहस्र दुग्धवती गायोंके बदले करते हैं। कामधेन्वी कामधेनुयन्त्र कन्धे पर रख वशिष्ठसे कामधेनु मांगी। किन्तु वशिष्ठने धेनु देना | भिक्षा मांगने निकलते हैं। यह किसीके द्वार पर स्वीकार न किया। उस समय विश्वामित्रने हरण खड़े नहीं रहते, 'धनुषधारी राम धनुषधारी राम, करनेके लिये सैन्यको आदेश दिया था। सैन्यने कहते राइ राह घूमा करते हैं। यही यह नाम सुन कामधेनुको खोल ले जानेका उद्योग किया। नन्दिनी इच्छानुसार कामधेनुपात्रमें भिक्षा डाल देते हैं। यह सोच कर अत्यन्त दुःखित हुयौं कि वशिष्ठने उनको कामध्वंसी (सं० पु०) कामं कन्दप ध्वसयति, काम- छोड़ दिया था। फिर वह अपने बलसे वहु सैन्चको ध्वनस्-णिच-णिनि। कामको ध्वंस करनेशने शिव । मार वशिष्ठके निकट आ पहुंचीं। उन्होंने वशिष्ठसे कामध्वज (सं० पु०) मत्स्य, मछौ। कामदेवकी पूछा था,-'आपने क्या हमें परित्याग किया हैं ? पताका मछली है। नतुवा विश्वामित्र के सिपाही हमें क्यों लिये जाते हैं : कामन : (सं० त्रि० ) कामयतीति, कम पिङ्युच् ।। वशिष्ठने उत्तर दिया, 'नहीं इमने तुम्हें परित्याग : १ कामुक, चाहनेवाचा । ( लौ• ) भावे युच् । नहीं किया है। तथा फिर हम कभी तुम्हें परित्याग २ अभिलाष, ख़ाहिय। न करेंगे। अतएव तुम शत शत महावीर सैन्य सृष्टि | कामना (सं० स्त्री०) कामन-टाप । .कर विश्वामित्रको पराजित करी। वशिष्ठली आज्ञा खाहिश २ बन्दाक, बांदा। पाते ही नन्दिनीने योनिदेशसे यवन, पुरीषसे शक पौर कामनाशक (सं० पु. ) काम कन्द नाशयति, रोमकूपसे म्लेच्छ, हारीत तथा किरात सैन्य निकाले थे। काम-नश्-णिच्-खुल् । १ महादेव । (वि.) उन्होंने विश्वामित्रको समुदाय सैन्यका विनाश कर २ कामशक्तिनाथक। पराजित किया। विश्वामित्रके पुत्र इससे बहुत वह कामनोड़ा (सं० स्त्री ) कस्तूरिका, मुश्क । हुये और (एकवारगी ही सौ पुत्र ) वशिष्ठके पर कामनीयक (सं० लो०) कमनीयस्य भावः, कमनीय- झपट पड़े। वशिष्ठने क्रोधके साथ एक ही हुशारसे वुन् । रमीयता, खूबसूरती । उनको जला डाला। इस अपमानके पीछे विखा- कामन्दकि (सं० पु.) कमन्दकस्य अपत्वं पुमान्, मित्रने राजशनिकी अपेक्षा तपस्याको शक्तिको बड़ा कमन्दक-दू। एक नीतिशास्त्र-प्रणेता। इनके माना था। वह गजकार्य छोड़ कठोर तपस्या में लग बनाये ग्रन्यका नाम कामन्दकीय नीतिशास्त्र है। वह ‘गये। उसी तपस्याके फलसे उन्होंने ब्रह्मर्षिकी भांति १८ पध्यायमें विभक्त और महाभारतकी भांति चमताशाली बन ब्रह्मर्षि नाम पाया था । प्राचीनकाल-रचित है। बहुत पारी उल नौतिमानः बालि प्रभृति दीपमें नीति बमा था। वहां महा- (रामायब, परख, ५१०) कामधेनुतन्य : (सं.ली.) कामधेनुरिव सर्वाभीष्टप्रद भारतको भांति वह विभाषा अनुवादित भी हुवा। तन्त्रम्। शिवप्रोत एक तन्त्र । उसके यवदीप पहुँचनेका समय निर्धारित नहीं। बोई कामधेन्वी-रामात वा..निमात सम्पदायभुक्ता वैष्णव । अनुमान करता, कि,महाभारतकेही समकासवा मी महामारव देखो। उसकी चार टीका इनमें अधिकांश भिक्षुक रहते हैं। कामधेनु नामक भिचायन्त्र व्यवहार करनेसे ही कामधेन्वी नाम पड़ा। मिलती हैं। एक टीकाका नाम उपाचाय-निरपेच .:कामधेनुयन्त्र बैंगीको भांति होता है। उसकी दोनों है।.बाको तानमें एक जयराम, दूसरी पामाराम पौष घोर दो खते नगे रहते है। एक पोरका तखता :तीसरी वरदारामको बनायी है। पहुंचा होमा।