पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४५

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8५ ५००से और कामठोमें भी नारङ्गीके बहुतसे बाग़ जीता जागता है। सुनने में आया-एक एक पक्ष नागपुर हैं। मध्यप्रदेश में इसकी कषि बढ़ रही है। नागपुरका ५२६ शत वर्षसे नहीं मुरझाया। इसका वृक्ष ५० सन्तरा बम्बई अधिक जाता है। युक्तप्रदेश में नेपाल, फोट पर्यन्त उच्च विस्तत होता है। प्रत्येक वृधमें दिल्ली और कुछ नागपुरसे भी नारङ्गी पाती है। १००० पर्यन्त फल उतरते हैं। नारङ्ग-मधुराम्ल, अग्निप्रदीपक और वातनाशक नारङ्गका पत्र जलमें चूवानपर एक प्रकार तल है। फिर दूसरी नारङ्गी अत्यन्त अम्नरस, उष्णवीर्य, निकलता है। उसका गन्ध प्रति तोत्र अथच ढप्तिकर दुष्यच्य, वायुनाशक और सारक होती है। (भावप्रकाश ) होता है। अंगरेज़ उसे 'निरोली प्रायेल' कहते हैं। राननिधण्ट के मतसे यह मधुर एवं अम्ल, गुरु, वह अतर बनाने में काम प्राता है। विलायतवाले रोचन, बख्य, रुच्य पौर वात, आम, कृमि, शूल तथा लेवेण्डर, साबुन प्रभृति द्रव्योंमें उसे मिलाते हैं। अमनाशक है। नारङ्गीके फूलसे जो तैलवत् निर्यास निकन्तता, हकीमोमें नारङ्गी के छिलके और फूलको गम उसका पतर पति उत्कृष्ट रहता है। और खु.श्क समझते हैं। इसका गूदा तर रहता है। किसी-किसी वैज्ञानिकने देखभाल नारङ्गीको तेलसे ठण्डकसे खांसी आने या बोखार चढ़ जानसे नारङ्गी कपूर निकाला है। उस कपूरको 'निरोली काम्फर' खिलाते हैं। इसका अर्क सफरे और सफरैके दस्तको कहते हैं। दूर करता है। कोड़े या कै को रोकनेके लिये इसे ४ गङ्गा "कमला कल्पलविका काली कलुषवैरिणो।' बहुत काममें लाते हैं। नारङ्गीका अक भी निहायत (काशीख० २८४४) ५ नर्तकी विशेष,एक नाचने-गानेवाली ताकतवर है। इसके छिलके और फूलसे तेल बनता, र रहो। . यह पीछे राजा जयापीड़की पत्नो वनी थी। जो मालिशमें दवाके तौर पर चलता है। ६ काश्मीरस्थ पुरोविशेष, काश्मीरका एक शहर। डाकर ऐनसली लिखते,–'हिन्दू चिकित्सकोंके (राजगरनिग्यो ४८३) ७ छन्दोविशेष। इसमें दो नगण मतानुसार नारङ्ग रक्तशोधक, ज्वरमें पिपासानिवारक, । और एक सगण रहता अर्थात् लघु वर्णके पीछे एक पौनसरोगहर और क्षुधावर्धक है। ग्रीष्मक समय गुरुवर्ण लगता है। ख ब पको नारङ्गीका शर्बत अंगरेनोंके लिये बहुत "दिगुण मगण सहित: सगण घिविहितः। उपादेय होता है। इसका छिलका वातनाशक और फपिपति मति'विमला चितिप भवति कमला" (इत्तरवाकर) अजीर्ण रोगके लिये हितकर है।' ८ कामरूपमें प्रवाहित एक नदी। इस नदीके भारतवर्षीय फार्माकोपियाके मतसे नारङ्गी बल तौरको भूमि अधिक उर्वरा है। (भ० ब्रमखण १६५४ ) कर और अग्निवर्धक है। अजीण रोग और साधा 2 उत्तर विहारको एक नदी। यह नदी नेपाल रण दुर्वलता पर यह बड़ा उपकार करती है। इसके राज्यमें हिमालयसे निकली है। इसके दक्षिण अंशको पत्रको चूवानेसे जो जल निकालता, वह आध छटांक बूढ़ी कमला करते हैं। ब्रह्मखण्ड में इसोको तैर- सायवीय एवं मु रोगपर प्रयोग करनेसे भाक्षेप भुताको पुण्यसलिला कमला नदो. बताया है। इसके मिटता है। तौरपर शिलानाथ ग्राम है। इसी ग्राममें शिलानाथ मुखपर व्रण होनेसे कोई कोई नारङ्गीका सूखा नामक महादेवको लिङ्गमूर्ति प्रतिष्ठित है। छितका घिसकर लगाता है। फिर सूखे ही छिलके. (भ० प्रखण्ड १५९) को जन्नमें रगड़ चर्मरोगपर व्यवहार करनेसे आशु १. विशालराज्यका एक प्राचीन ग्राम । (म प्रशखए १८५०) फल मिलता है। कमला (हिं. मु.) १ कम्बल, झांझा, झंडी। भारतवर्षमें प्रायः सर्वत्र ही नारङ्गी सुखाटु फलको यह रूयें दार कोड़ा है। मनुष्यका देह इसके स्पर्शसे भांति समाहत होती है। इसका वृक्ष बहुदिन पर्यन्त खुजलाने लगता है। २ मिविशेष, ढोखा, लट, IY. 12 Vol.