पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४८६

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820 कायस्थ शुद्रधर्मतत्व में एक कायस्थकी उत्पत्ति इस प्रकार संस्कारादि कर्म बतलाये हैं, उन ससको वे मेरी बतलाई गई है- प्रतिाके अनुसार करेंगे। "माडिव्यवनिसास्न्वेंदहादयः प्रसूयते । ब्रह्माके इस कथनसें चित्रगुप्त पोर उनके वंशधर सकायस्थ प्रति प्रोजस्तस्य कर्म विधीयते। कायस्थ क्षत्रिय हैं, इसमें कुछ भी सन्देह उपस्थित चमाई यायो माहिया माहिमानो वैदे। नहीं होता। नीपानां देगाताना लेखनं स समाचरन । मिताक्षरामें कायस्थाँको राजवाझम, शूलपाणित गणकत्व विचिवम बीजपाटी प्रभदनः । दीपकलिकामें राजसम्बन्धहत प्रभावशाली और पराक. अघमः शूद्रशातिभ्यः पञ्चसकारवामसी। विरचित याज्ञवल्क्यनिधन्धमें कगधिकृत या करधि- चातुर्वस्य सेवाडि लिपिलखनसाधनम् । कारी कहा गया है। कायस्थ सदासे राजाक प्रिय शिखां यज्ञोपवीतच कायस्थाद्यो विषघ्न येत्।" होते पाये हैं। यह राजकार्यमें निपुण होते हैं, और 'वैदेहके औरससे पौर माहिष्थपनीके गर्भसे जो कर वसूल करने में इनका मुख्यतः हाथ रहता है। इसे उत्पन्न हुये हैं, वे कायस्थ हैं। देशीय लिपिका लिखना, लिये इन लोगों के द्वारा प्रजाका पधिक पौड़ा पंहुच गणना करना, शिल्प कार्य करना, वीज प्रादिका बोना, सकती है। अतः याज्ञवलक्य और अग्निपुराण कार चार वर्णकी सेवा करना इत्यादि उनका कार्य बतलाया राजाओंका इन (कायस्थ ) लोगोंके प्रति गया है। यह पांचो संस्कार प्रधम शूद्रजातिके करनेके विशेष नक्ष्य रखनेका पादेश दे गये हैं। हैं, इसलिये इनको चोटी, यज्ञोपवीत, गैरिकवस्त्र और कायस्थोंके हाथसे किसी किसी जगह-प्रजा देवताका स्पर्श न रखना चाहिये।' अधिक पीड़ित होती रही, इसी लिये पौशनश- इसके अतिरिक्त शब्दकल्पद्रुमोइत देवीवरके "उपविष्टा धर्मशास्त्र में, ब्रह्मवैवर्तपुराणके. जन्मखण्डमें पौर 'दिनाः पञ्च तथैव शूद्रपञ्चकाः।" इस कथनसे यही प्रमाणित राजतरतिषी ग्रन्यमें कायस्थोंकी निन्दा की गई होता है कि, आदिशूरको सभाम पञ्च ब्राह्मणों के साथ लेकिन किसी भी शास्त्र में कायस्थोंको आये हुये पञ्चकायस्ख प्रादि शूद्र ही ठहराये गये थे। होनवर्ण नहीं कहा गया है। कमलाकरने जिन इसके सिवा बहरमपुराणमें भी लिखा है,- प्रतितोमजास कायस्योंका उल्लेख किया "शुदायाँ वयानात: करणौ वर्णमहरा" (चर १३५०) इत्यादि प्रमाणसे किसी लोगोंका मत है चित्रगुप्तके वंशधर कायस्थ नहीं हैं पोर न उनमें उस 'कि वैश्यसे उत्पन्न वर्णसहर करण भी कायस्थ थे। जगह लिखी गई बातें हो साटित होतो हैं। ऐसा मालूम पड़ता है कि मेदनीपुरवासी प्राधुनिक 'कास्य- विरुद्धमत-खण्डन। जातिका नाम संस्कृत भाषामें उन्हों (कमलाकर)ने विरुद्धवादी लोग चित्रगुप्तके वर्ण और धर्म सम्बन्धमें 'कायस्थ रख दिया है। किन्तु चित्रगुप्तके वंशधर जिन युक्तियां को दिखलाते हैं, उनके उत्तरमें हम कायस्थोंको उन्होंने भी कायस्थ-चत्रिय कह कर परिचय पहिले ही कमलाकरत वृहप्रधाखण्ड का प्रमाण दिया है। चित्रगुप्तने देवकन्या सुदक्षिणाके साथ उपत कर चुके हैं कि, ब्रह्माने उत्पत्ति विवाह किया था। "प्रणाऽसीन्द्रियभानो देवाग्रायन- कालमें ही चित्रगुप्तसे कहा था-"तुम कायस्ख' जिस मुक्स में। माननाच सदा तमादाति दयिते रिज" इत्यादि स्थलसे क्षत्रिय उत्पन्न हुए हैं उसी स्थानसे उत्पन्न पद्मपुराणके कथमानुसार ब्राह्मण नव चित्रगुप्त को देव होनेके कारण क्षत्रिय नामसे प्रसिद्द होगे। तुम्हार वंशके मान कर पूजते थे, तब धर्मधर्माने अपनी कन्याका वोग मी तुम्हारे हो समान पर्थात् कायस्थ उनसे पाणिग्रहण कर दिया; तो इसमें दोष कौनसा नामसे पुकार जावेंगे। उन लोगोंका विवाह क्षत्रिय हो..गया। इसके सिवा उस समय यौनसृष्टि या कन्यावोंके साथ होगा: ::चत्रियवर्णके लिये नो सहरोत्पत्तिको कोई चर्चा हौन थी; नहीं तो ब्राष्ट्राण