पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५१४

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जानेवाला सूद। ५१४ कायस्था-कारक कायस्था (सं.स्त्री०) कायः तिष्ठति पनया, काय-स्था निष्पादित कृषि, बैल वगैरहको मेहनतसे अदा किया कं। १ हरीतकों, हड़। २ पामलको, प्रांवला। ३ काकोली। ४ स्थलैला, बड़ी इलायची । ५ सूक्ष्म ला, "दोधवाधकमयुता कायिका समुदाढता।” (न्यास) छोटी इलायची। तुलसीवध। ७ सिन्दुवारतच, कायोढज (• पु० ) पुत्रविशेष, एक बेटा। प्राजापत्य संभालका पेड़। ८ कायस्थ-स्त्रीजाति। कायस्थादिधूपन (सं० लो०) धूपनविशेष, एक बफारा। कायोत्सर्ग ( • पु०) जैन अईतकी एक मूर्ति । विवाइसे उत्पन्न होनेवाचे पुत्र को कायोटज कहते है। हरीतकी, राना, केंटुकी, गुडूची, गुग्गुल, चोरक यह वीतरागावस्थामें खड़ा रहता है। नामक गन्धद्रव्य, वाव्यासक, वचा तथा कुष्ठ बराबर कार (सं.पु.) क-वञ्। १ वध, कतन्न । २ निश्चय, बरोबर डाल बफारा लेनेसे शौतच्चर छूट जाता है। यकीन। (कं सुखं ऋच्छति पनेन, क-ऋ-धन्) फिर उक्त कल्कको यवक्षार, लवण तथा कान्त्रिकके साथ ३ स्वामी, मालिका ४ तुषारपर्वत, बरफका पहाड़। यथाविधि पकाने और शरीरमें लगानेसे भी शीतज्वर ५ करने या बनानेवाला। कोई कर्मपद पूर्व रहनेसे शान्त होता है। (भावप्रकाश ) कायस्थाली (सं० स्त्री०) रसपाटल वृक्ष, लाल फलका 'कार' शब्द कर्ता पर्थमें आता है, जैसे-वर्णकार, कुम्भकार, कर्मकार इत्यादि । ६ क्रिया, काम । यौगिक एक पेड़। अर्थम ही इसका प्रयोग पड़ता है, जैसे-उपकार, कायस्थिका (सं० स्त्री.) काकोली। चमत्कार । ७ अधरको बतानेवाला। यह भी यौगिक कायस्थैर्य ( सं० क्ली० ) कायस्य स्थैर्यम्, ६-तत्। १ रसायन औषधादि द्वारा शरीरको स्थिरता, सुकब्बी इत्यादि । ८ पूजाका व्यकरण, वलि । अर्थ में ही प्रयुक्त होता है, जैसे-प्रकार, ककार दवा खाने से जिस्मको मजबूती। कार ( फा० पु.) कार्य, काम। काया (हिं. स्त्री०) शरीर, जिस्म । कारक (सं०.ली.) क्रियाभिरन्वितं भाष्यमते करोति कायाकल्प (हिं. पु.) कायस्थैर्य, दवाके जोरसे क्रियां निवर्तयति, छ कर्तरि खुल। यमांनो, पुराने जिस्को नया बनानेकी तरकीब । कटेया। २ बदर, देर । ३ वर्षापचीव जन, पोलेका कायाकाशसम्बन्धसंयम (सं० पु०) काय और पाकायके ४ भवस्थाविशेष, हासत (Case)| क्रियाके सम्बन्धका संयम, जिस्म पर पासमान्के लगावका साथ सम्बन्धविशिष्ट अथवा क्रिया निष्पादकको जब्त। इससे भाकामें लोग उड़ सकते है। कारक कहते हैं। वैयाकरणभूषणके मसमें "बायाशामयोः सम्बन्धसंयमान . क्रियाजनक शक्लिविशिष्टमान कारकपदवाथ हैं। खनुतूबसमापचे राकाशगमनम्।" (पातचलसूब) ट्रव्यादिमें उक्त शक्ति रहना असम्भव है। फिर भी कायाग्नि (सं० पु.) कायस्थितो पम्निः मध्यपदली० । शक्ति और शक्तिमान्का पभेद मानके 'द्रव्यादिमें पाचकाग्नि, हजम करनेकी ताकत । कारकत्वका व्यवहार होता है। कारक शब्दका कायापटल (हि. स्त्री०) १ कायपरिवर्तन, जिस्मकी क्रियानिष्पादक अर्थ लगानेसे सकल कारक कर्तृकारक तबदौली। २ घोर परिवर्तन, बड़ा हेरफेर। हो जाते हैं। किन्तु व्यापारके भेदानुसार उनका कायिक (सं. नि. ) कायेन निष्पादितः निवत्तो वा, करणादि भेद मान लेना पड़ता है। मञ्चषामें काय-ढक । १.शरीर द्वारा निष्यादित, जिससे किया कारकका भेद लिखा है- हुवा। २ शरीर द्वारा उत्पन्न, जिससे निकला हुवा। "कतु : कारकान्तरप्रवर्तनम्यापास। करस्य क्रियाजनकाव्यवडिव ३शरीर सम्बन्धीय, जिसमानी। वयापारः। बियाफीनोई सवरुपयापारस व बर्मामरिक- कायिका ( सं. स्त्री० ) कायेन कायिकव्यापारण क्रियापारचयापारो धिवरपस। चानुमब्यादि व्यापार समझामस-। निर्वता, काय-टक । उषभ प्रतिके कायिक परित्रमसे अवधिभावोपगमद्यापारोऽपादामसेति।" पानी।