पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कारणपालि-कार्याटक ५३१ कारणपालि (सं.पु.) करेणुपालस्वं प्रपत्यम्, करण- कास्लामेय (स.वि.) कलासस्य इदम्, ककलास- ढक। सवादिम्यक । पाए। कलास सम्बन्धोय, पान-र । इस्तिपाचकका पुत्र, महावतका लड़का। कारो, काला देखी। गिरगिटसे ताल्लुक रखनेवाला। कारोंछ (हि. स्त्री.) १ कालिमा, स्याहो । २ धूमको कार्कवाकर (स• वि. ) कुकवाकोरिदम्, कुकवाकु. कासिम, ध्येको कालिख । ३ काला जाला । अण्। कुछट सम्बन्धीय, सरगैसे सरोकार रखनेवाला। कारोतर (सं• पु.) १ सरा छाननेको साफो। २ पुराकार्कश्य (स' को०) कर्कशस्य भावः, कर्कशयन, । १ कर्कशता, कड़ीबोली। २ कठिनता, सखती। मण्ड, थरावका भाग। कारोचम (सं० पु०) कारण सुरागालनेन उसमः । ३ निर्दयता, वैरहमी। कार्कप (म. पु.) व्यक्तिविशेष, एक अखस । सुरामण्ड,घराधका भाग। कारात्तर (म. पु०) कारिप सुरागालमक्रियया | कापायणि (• पु.) कार्कषस्य अपत्यं पुमान, उत्तरति, कार-उत्-त-पर। १ सुरामण्ड, भरावका | कर्कष-फिरू । कार्कपके पुत्र । २ कूप, कूवा। ३ वभादि निर्मित पात्र कापि (स.पु.) कर्कष-फिजो विकलविधानात् विशेष। न। कार्कषके युव। कारोवार (फा• पु.) कामकाज, लेन देन । कार्कारी (वै. वि.) निजको पावापकर। कार्क (चं. पु. Cork) एक वृक्षको त्वक, विसी "यमदूत समस्त व किं ला काकारिणोऽब्रवीता" पेड़को छाल। इसका काठ अत्यन्त लघु होता है। कार्कीक ( स० वि०) कक: क्लोऽग्नः स इव, इसकी डाट बनाकर बोतल में लगाते हैं। यह सेन कर्क-कक। खेत पवतुल्य, सफेद घोड़े के और पोतंगाल में अधिक उत्पन होता है। च. मानिन्द। फीट तक बढ़ता है। त्वको स्थूलता २ व पर्यन्त कार्ड (• पु• Card) १ स्थूलपन, मोटा काग़ज़ । रहती है। त्वक् उतार लेनेसे चार-छह वर्ष पोई २ खुली चिट्ठी । यह लिखा जाता है। ३ ताश, पत्ता । फिर निकल पाती है। वृक्ष काई डेढ़ सौ वर्ष कार्य (स' • पु० ) कर्णस्य अपत्य पुमान्, कर्ण-अण् । १ कर्ण के पुत्र, उपकेतु। (को०)२ कर्णमल, कानका कार्कर (सं० पु० ) ककटवक्ष, कांकरोल। मैल। (नि.) कर्णेन्द्रिय सम्बन्धी, कानसे ताक काटक, शार्कट देखो। रखनवाला। कार्कटेलव (सं० क्लो. ) कर्कटूना निवासोऽत्र, कर्कट का ग्राहिक (स'• पु. ) कर्णग्राहस्य अपत्य पुमान्, अम्। पोरण । पारा कर्कटु पचीका निवास कर्णग्राह-ठक । सत्वादिष्पक्षक् । पा १ नाविक पुत्र, स्थल, एक चिड़ियेकी रहनेको जगह। मन्नाहका लड़का। कार्कश (सं० वि० ) वकणस्य इदम्, ककण-पञ् । काछिद्रक (स.वि.) कर्णष्ट्रिस्य इदम्, कर्ण- १ कपपछि सम्बन्धोय, एक चिहियेसे सरोकार छिद्र अण, स्वार्थे कन्। कष्ट्रिसम्बन्धोय, कानके रखनेवाला। २ कमिसम्बन्धीय, कोड़ेसे ताल्लुक रखने छेदसे सरोकार रखनेवाला। वाया। ३ देहख वायुविशेष सम्बन्धीय, जिस्मको कार्णवेष्टकिक (सं• वि.) कर्णवकाभ्यां समपादि किसी वासे सरोकार रखनेवाला। (पु०) ४ वन कर्णालद्वाराभ्यां पवश्वं शोभते इत्यर्थः, कर्णवेष्टक-ठन् । कुकट, जंगली मुरगा। सम्पादिनि। पा Weti कर्णवेष्टन अखबार द्वारा घोभित कान्धव (स० वि०) कर्कन्धूनां विकारः अवयवो वा, होनेवासा, जो बाली ग्रेस पहने हो। कर्कन्ध-पण पिनादिभ्यः । पा १ कांच का अवम (वै. लो. ) सारमेद । सम्बन्धीय, कड़वेरोसे सरोकार रणनेवासा । काटक (सं• पु.) कटः पमिजनोऽस्य, कर्णाट- जीता है।