पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५७६

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कालाकृष्ट-कालाजिन प्रयुक्त होता है। कर्मधा। सवको प्रक्षीरसे मदन करते हैं । फिर दशमूल स्वाह, बहुत काला। प्राय: यह शब्द मानव व्यवहारमें और पञ्चमूलके वायसे यथाक्रम एक प्रहर घोटकर कानालष्ट (सं० वि०) कालेन मृत्युना श्रावष्टः, -तत्। चने बराबर वटिका बनायी जाती हैं। (पारबावली) १ मृत्यु कटक पाकष्ट, मौतके यजेमें पड़ा हुवा। कालाग्निरस ( स० पु. ) भगन्दरका रस विशेष, २ समय हारा पानीत, वक्षसे निकला हुवा। पोशीदा जगह नालीदार जखमकी एक दवा । शुद्ध कालाक्षरिक (स.पु.) काले यथायोग्यकाले अक्षरं सूत गन्धक, मृतनाग, सुत्यक, जीरक और सैन्धव वेत्ति, काल-प्रक्षर-ठक् । विद्यार्थी, ताजिद इल्म, ठीक बराबर तिन तथा कोशातकीके द्रव में पीस कर लगाने वक्ता पर पढ़नेवाला। या खानेसे भगन्दर रोग नष्ट हो जाता है। (रसरबाकर) कालाक्षरी, सालाचरिक देखी। कान्ताग्निरुद् (पु.) कालाग्नेः प्रनयाग्ने: अधि- काखागक, कालागुरु देखी। ठाता रुद्रः, मध्यप०, कालाग्निरिव रुद्रा था, उपमि। कालागांडा (हिं. पु.) काली और मोटी जख १ च्याग्निके अधिष्ठाव-देवता रुद्र । २ उक्त रुद्रके कानागुरु (सं० क्लो० ) काल कृष्ण गुरु, समंधा । उपासक एक ऋषि। ३ यजुर्वेदीय एक उपनिषद । कृष्ण भगुरु, काला अगर । कचागुरु देखो। कालाग्निस्ट्ररस (सं० पु.) १ कुष्ठाधिकारका एक "चकम्मे तोलोहिये तस्मिन् प्राग यौविष धरः । रस, कोढकी एक दवा। मरिच, अच एवं तीक्ष्य तदृगनालामता प्राप्त : सह कालागुरुद्रम" (रघु०४।१) भस्म, माक्षिक और गन्धकको बन्ध्याकर्कोटको के कन्दमें कालागैड़ा, कालागांडा देखो। डानु महीसे ऊपर छोप देते हैं, फिर भूधराख्य पुटमें कालाग्नि (संयु०) काम्नः सर्वहारकः पग्निः, एक दिन पका उसका चूर्ण बना लिया जाता है। १ प्रलयाग्नि, कयामतको भाग । इस चूर्ण में दशमांश विष मिलानेसे उक्त प्रौषध प्रस्तुत ३ प्रलयाग्निके अधिष्ठाता रुद्र । ३ पवमुख रुद्राक्ष। होता है। माना ३ मापमान है। उक्त कालाग्निरुद्र अव रुद्राक्ष काखाग्निरुद्रको प्रतिप्रय है। इससे उसे रस दध दिनमें विसपंको नाश करता है। अनुपानमें भी कालाग्नि कहते हैं। स्कन्दपुराणमें उसे सर्व पाप- पिप्पलो और मधु मिन्नाना चाहिये। २ ज्वररीगका नाशक बताया है, रसविशेष,बुखारकी एक दवा । मरीच और गन्धक तुल्य "पचषक स्वयं कद्रः कालानि म नामतः । पगम्यागमनाच अभयस्य च भषणात्। डान पंच पित्त, भावना देना चाहिये। फिर मुच्यते सर्व पापेभ्य: पक्षपकस्य धारणा" मत्सर, वाराह, छाग और माहिषजको एकदिन भावना पञ्चमुख रुद्राक्ष साक्षात् रुद्रदेवस्वरूप है। उसे लगती है। उता मायूरादि द्रव्योंको समस्त अथवा कालाग्नि भी कहते हैं। उमा रुद्राक्ष धारण करनेमे व्यस्तरूपसे मा ग्रहण कर सकते हैं। पीछे २ रति गरम पगम्यागमन वा प्रभक्ष्य भक्षणके पापसे मुक्ति डालनेसे कालाग्निरुद्ररस' प्रस्तुत होता है। माना दो मिलती है। गुजाके बराबर कही है। मान पथ्य है। (रसरवाकर) कालाग्निभैरव (सं० पु० ) ज्वरका एक रस, बुखार) काला ( सं० लो• ) का कृष्णवर्ण अङ्गम्, कर्मधा। की कोई दवा। १ भाग पारद और १ गन्धकको १ कष्णवण देश, काना जिम । कालस्य कालपुरुषस्य कस्नल बमा गोक्षुरके क्वाथसे भावना देना चाक्ष्येि । अङ्ग ६-तत् । २ कालपुरुषका पङ्ग । (वि०) बहुवो। सूखं जाने पर उसे पौस कर चूर्ण के वरावर तामचूर्ण, ३ कृष्णवर्ण देहविशिष्ट, काले जिस्मवाना। तामचूर्ण को अष्टांश विष, १ भाग हिगुल २ भाग | कामाचोर (हि• पु० ) १ सुचतुर चौर, हुशियार चार । वस्तूवीज, ५ भाग हरिताल,, ३ भाग मनाशिला,- ३ २ कापुरुष, खराब पादमी। भाग टङ्गण, ३ भाग खर्पर, २ भाग 'लैपास ३ भाग कालाजाजी (सं• स्त्री• ) कृष्णजीरक, काला जीरा स्वर्ण माक्षिक, १ भाग 'चौर और भाग बा डास | कालानिन (सं• को०) कासस्य कृष्णमृगस्य पनिगम, Vol. IV. 145 मायूर, 1