पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५८८

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कालिदास ५८१ 'धनपाल, प्रसवराघव अन्य कार, जयदेव, वाराम, जर्मन पडित तासनके मतानुसार कालिदास भवभूति, भास्कर, मयूर, मलिनाध, महेश्वर, माध, ई० द्वितीय शताब्दको समुंद्रगुप्तको सभामें विद्यमान विलफोर्ड और प्रिन्तप सावन शिक्षा है कि मुकुन्द, रामेश्वर प्रभृति। वेदान्ताचार्यकृत विश्व- गुणादर्श पढ़नेसे समझते हैं-किसी समय कालिदास, कालिदास प्रायः १४०० वर्ष पूर्व वर्तमान रहे। जर्मन श्रीहर्ष और भवभूति भोजराजको सभामें वर्तमान थे। पण्डित वैधरने ई० श्यसे ४थे शताब्दके मध्य काति- किन्तु विशेष प्रमाण मिले हैं कि उक्त सकल पण्डित दासका माविर्भावकाल निर्णय किया है। पीछे कालिदासके समकालीन न थे। जैकोबी साहबने कालिदासका ज्योतिषशब्द पकड़ नयदेव, वापमह, मवमूति प्रमति देखी। ठहराया है कि कालिदासको ग्रीक ज्योतिषशास्त्रका वाणभका हर्षचरित पढ़नेसे ही समझ सकते है ज्ञान था। उसके अनुसार वह ३५०० से पहले। लोग हो नहीं सकते। ज्योतिषी कर्ण, भांजदाजी, कि कालिदास पाण और श्रीहर्ष से बहुपूर्व विद्य- मोक्षमूना प्रभृतिक मतमें-कालिदास के पाविर्भावका मान थे। ज्योतिर्वि दाभरण नामक एक ज्योतिषग्रन्य काल ई० षष्ठ शताब्द था । कालिदासका रचित माना जाता है। उसमें लिखा धमारे घंङ्गन्देशीय पुरातत्त्वानुसन्धितगणमें प्रक्षय- है,-"धन्वन्तरि, इश्णक, अमरसिंह, शङ्ख, वेतानभट्ट, कुमार दत्तके मतानुसार ई० ४ शताब्दक मध्यभागके घटकपर, कालिदास, सुविख्यात वराहमिहिर और वररुचि विज्ञमके नवरत्नोंमें हैं। विक्रमने ५ पक- पोछे षष्ठ शताब्दके शेषमागके पहले और ऐतिहासिक रहस्यप्रणेताके मतमें ई. षष्ठ शताब्दको कालिदास नृपतियों को मार कलियुगमें अपना अब्द चलाया। विद्यमान थे। प्रधानतः देखते हैं कि अधिकांश पुरा- इमने ( कालिदास) ३०६८ कति गताब्दके वैशाख विदोंके महमें कालिदास ई. पष्ठ शताब्दके लोग मासमें इस प्रन्यकी रचना प्रारम्भ कर कातिकमासमें सम्म किया।" फिर २०वें अध्यायके 8वें नाकमें रहे। उनको युक्ति यह है,- कहा है,-"आज भी काम्बोज, गौड़, पान्ध, मानव उन्नयिनीराज इर्ष विक्रमादित्यने कवि माळगुप्तके पौर सौराष्ट्र देशके लोग विख्यात वदान्यवर विक्रमका प्रति सन्तुष्ट हो उन्हें काश्मीर राज्य प्रदान किया था। गुण गाते हैं।" फिर राजा विक्रमादित्य द्वारा कालिदासको अर्ध राज्य दिया जानेका भी प्रवाद है। कल्हण पण्डितने पूर्वकथित भोजप्रबन्ध और ज्योतिर्विदाभरणको राजतरङ्गिणी में राजा मानगुप्तको कवि बनाया है। कभी प्रामाणिक ग्रन्य मान नहीं सकते। कारण १, हर्षचरितके प्रारम्भमें प्रवरसेन और कातिदासका इतिपूर्व लिख चुके हैं कि नवरत्न विभिन्न समयके लोग उन्लेख है। प्रवरसेनने वितस्ता नदी पर एक सुबइत् थे। २, रचनाप्रणाली पालोचना करनेसे ज्योति- सेत् निर्माण कराया था। कालिदासने उसी सेतुके विदामरण कालिदासका करनिःसृत समझ नहीं उपलवमें "सेतुकाव्य" रचना किया। सेतप्रवन्धके पड़ता। ३, ज्योतिर्विदाभरणको शेषोल्ल वर्णना टीकाकार रामदासके भी मतमें कालिदासने सेतुबन्ध पढ़नेसे अनुमान करते हैं कि उसके रचित होनेसे बहु पूर्व विक्रमादित्य विद्यमान घे। फिर ज्योतिर्विदा. Indische Alterthumskande, Il. p. 457, 1158-60. भरणके समय विक्रमाद और विक्रमसम्बन्धीय प्रवाद + Weber's Sanskrit Literature, P, 204 . 3Lonatsberichte der Koniglick Prenssischen Aka- भी चारो ओर फैला था। demie der Wissenchaften za Berlin, 1873, p. 554-658. Kern's Bribat Sanhita, p. 20, Bhan Daji in the . . " विझम उबको कोषमास: पमरदेवको मिलाविपिमें Journal of the Bombay Branch Roy. As. Soc, 2861, p. 19-30, 207-200 ; 3lex Müller's India what can it नपरबका । teach , p. 820