पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६७

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करकोष्ठी-करघाट पदलो । करकलस, अनलि, पानी लेनको दानों मूला, पूर्वफगुनो, पूरीषाढ़ा, पूर्वभाद्यद, मघा, भरणी हाथ मिला अंगुलीका बनाव । एवं वत्तिका भिन्न अन्य नक्षत्र, मिथुन, सिंह, कन्या, करकोष्ठी (सं० स्त्री०) करस्थिता कोष्ठो। करस्थिता तुला, वृश्चिक, तथा मौनतान और रवि, साम,बुध, बह- रेखा, हाथकी रेखा। स्पति एवं शुक्रवारको करग्रह प्रारम्भ करना चाहिये। करखा (हिं० पु०) १ युद्धसङ्गोत, लड़ाईका गाना। "नीयोग्रपौवरभेपु वने शोषोदय भानुदिने गमाई। २ छन्दोविशेष । करखेमें प्रत्येक पाद ३७ मावा रखता कुर्यादानुनानि समीहितानि कायद्वारम्भमपि प्रनाया। पौर अन्तको.यगण पड़ता है। ३ उत्कर्ष, उत्तेजना, ऐसही समय भारतीय जमीन्दार देवतादिको अर्चना- लागडांट। ४ कलक, कालिख। कर नया खाता बनात. और अपने अपने साध्यानुसार करगता (हिं. पु०) सुवर्ण रोप्य वा सूत्रको मेखला, ब्राह्मण तथा भात्मीय वन्धु प्रभृतिको खिलाते हैं। सोने चांदी सूस वगैरहको करधनी। करयाम (सं० पु.) गोण्डवन प्रदेशस्य नगरविशेष। करगह (हिं० पु०) १ निम्नस्थानविशेष, एक नोची यह नगर गोंड जातिको राजधानी रहा। उस जगह। यह तन्तुवायका कर्मशालामे होता है। प्रदेशले अन्तर्गत रत्नपुरंसे ६४ कास उत्तर करग्राम जुचाई पैर लटका करगइपर बैठते और वस्त्र वुनते अवस्थित है। हैं। २ यन्त्रविशेष, एक औज़ार। इससे तन्तुवाय करयाइ (सं० पु. ) कर रक्षाति यः, ग्रहण। वस्त्र प्रस्तुत करते हैं। ३ तन्तुवायकर्मशाला, जुला विमापा यहा। पा ॥१४॥ १राजा, बादशाह। राजख होंका कारखाना। आदायकारी, गुमाश्ता, मालगुजारी या टिकस वसूल करगहना ( (हिं. पु०) प्रस्तर वा काष्ठखण्डविशेष, करनेवाला। ३ साधारणत: इस्तग्रहणकारीमान, जो एक पत्थर या लकड़ी। इसे भरेठा भी कहते हैं। हाथ पकड़ता हो। करगहना.दार निर्माण करते समय चौखटपर जोड़ाई कराइक (सं० पु०) कर समाति, मह खन् । करनेके लिये.रखा जाता है। एल बची। पा ३११३। १ पति, मालिक, मालगुजारी करगही (हिं. स्त्री० ) . धान्य विशेष, एक धान । पानेवाला। २ राजस्व पादायकारी, मालगुजारी वसूल यह अग्रहायण मास कटती और एक प्रकारका मोटा करनेवाला, गुमास्ता। ३ इस्तयाणकारी, हाय जड़हन:धान ठहरती है। पकड़नेवाला। करगी (हिं० स्त्री०) मार्जनीविशेष, एक खुरचनी। कराही (स- पु० ) कर गलाति, ग्रा.धुन् । इससे कर्मशालामें परिष्कार को हुयी शर्करा बटोरी गिल्पिमि प्युन्। 'पा ॥१४५। करग्राह। कराह देखो। करघर्षण ( (सं० पु.) कराभ्यं पृथते ऽस, घष कर्मणि करग्रह (सं. पु.) .करोगृह्यते यत्र, प्राधारे अप । जुट । १ दधिमन्यनदण, मथानो। इसका संस्कृत १ विवाह, मादी, परनावा। २ हस्तधारण, हायको पर्याय-वैशाख, दधिचार और तकाट है। (लो) पकड़। ३ प्रजासे प्राप्य राजखका ग्रहण, प्रदा माल २ इस्तघर्षण, हाथोंका मलना। गुज़ारी, टिकस वसूल करनेका काम । करघषों (सं० पु.) कराभ्या करयो वा घर्षण" करग्रहण (सं० क्ली) करस्य ग्रहणं यन, बहुव्री। विद्यते यस्य यत्र वा, कर-घर्ष नि। जुद मन्चनदंड, करण्इ देखो। छोटी मथानी।. करग्रहारम्भ (सं०.पु.) करग्रहस्य भारम्भ प्रजाति- करघा (हिं. पु. ): वस्त्र प्रस्तुत करनेका एक यन्त्र, पुछेभ्यो यन। वार्षिक करके ग्रहणारम्भका दिन, सलाना कपड़े बुननेको एक चरखी। करण देखो। मालगुजारी वसूत करनेका आगाज । इसे पुण्याह करघाट . (सं• पु०) विषयविशेष, एक जहरीला पड़ा। -और पुस्था भी करते हैं। अश्लेषा प्रा, ज्येष्ठा, । इसके वल्लल और नियोसमें विष रहता है। (एन). जाती है। -