पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७०९

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७१२ काष्ठकुड---काष्ठमौन वर्धक, वातश्लेष्माधिक, शीतल, विशद, बलकारक और | काठपादुका (सं० स्त्री०) काष्ठनिर्मिता पाटुझा, मध्य- मग गेमहर होता है। (विसन्तिा) पदनो० ! खड़ाऊं, लकड़ीका जूता । काष्ठकुडड ( स० लो०) काष्ठमयं कुखडम्, मध्यपदनो। काष्ठपुत्तलिका (सं० स्त्रो. ) काहनिर्मिता पुत्तन्ति का, १ काष्ठनिर्मित भित्ति, लकड़ीकी दीवार । २ काष्ठ मध्यपदनी । लकड़ी की पुतली, कठपुतली । और भित्ति, लकड़ी और दीवार । काष्ठपुष्पा (संपु०) केतको वक्ष, सेवडे का पेड़। काष्ठकुहान (सं० पु० ) मलं उदानयति विदारयति | काष्ठप्रदान (सं• क्लो०) चिताका बनाव । इति कुहालः काष्ठस्य कुहामः काष्ठसया कुहालो वा। काष्ठ फलक (स'• लो०) काष्ठनिर्मितं फलम् मध्याद- अविच, लकड़ोको कुदात्त । वह नौकासे जल निकालने लो० । काष्ठनिर्मित चित्राधार प्रभृति विस्तृत काष्ठ- या उसका पेंदा माफ करनेके काम आता है। खण्ड, लकड़ीका बड़ा टुकड़ा। काष्ठ कूट, काष्ठ कह देखो। काष्ठभार (स.पु.) काष्ठस्य भारः, तत् । काठका काठगोधा (स'० स्त्री०) १ औषधि विशेष । १ जड़ीबूटी बोझ. लकड़ीका वजन | २ काष्ठाकार गोधामृग । काठमारिक ( स० वि०) काष्ठभारेण नीवति, काष्ठमार. काष्ठघटित (सं० वि०) काष्ठेन घटितं निर्मितम्, ३. ठन । काष्ठका भार वहन कर वा काष्ठको विक्रय कर तत् । काष्ठदादा निर्मित, लकड़ीका बना हुवा। जौविका निर्वाह करनेवाला, जो लकड़ी टो या वैच काष्ठजम्बू (म० स्त्री०) काठप्रधाना जम्बूः मध्यपद कर गुजर करता हो। लो। भूमि जस्तक्ष, जङ्गली जामनवा पेड़ । काष्ठभूत (सं• त्रि.) काष्ठ-भू-क्त । काटरूपमें परि. काष्ठतक्षक (स० पु.) काष्ठं तक्षति तन करोति, काष्ठ णत, लकड़ी बना हुवा | २ काष्ठको भांति चेतनाशून्य तह-ख ल्। १ सूदधर, सुतार, बढ़ई । (वि.) एवं कठिन, लकड़ीकी तरह वैज्ञान और सखा । २ काठच्छेदक, लकडी काटनेवाला। काष्ठभृत् (सं० वि०) काष्ठं विभति, काठ-भू-क्तिप काष्ठमट, काष्ठलचक देखो। तुगागमच : काष्ठविशिष्ट, लकड़ी रखनेवाना।२ काष्ठ- काष्ठतन्तु (सपु०) काष्ठे तन्तुरिव विस्त तत्वेन प्रव. निर्मित, लकड़ोका बना हुवा। स्थितत्वात्। काठक्वमि, लकड़ीके भीतर रहनेवाला 'हयान् काठमती यथा।' (शतपथ सानप, 111५1५:१३) कोड़ा। काष्ठमठी (मं० स्त्री०) काष्ठरचिता मठीव, उपमि.चिता. काटदारु ( स० पु.) काष्ठ प्रधानो दारः यहा का सरा, मुर्दा जमाने के लिये लकड़ी का दे। दारकम् । देवदारभेद । देवदारु देखो काष्ठमय (सं० वि०) काष्ठात्मकम्. काष्ठ-मयट् । १ काष्ठ काष्ठहु ( स० पु.) काष्ठप्रधानो ह्रः वृक्षा, मध्यपदनो० । निर्मित, लवडोका बना हुवा । २ काष्ठको भांति कठिन, पक्षाशवक्ष, टेसूका पेड़। लकड़ी की तरह सख्त । काष्ठधात्री (सं० स्त्री० ) काष्ठामलको च, क्षुद्रामम्नक, | काष्ठमल्ल (सं० पु०) काठमशः वाइक इव यव, बहुव्री।। जङ्गली पावलेशा पेड़, छोटा प्रांवला । शव वहन करने के लिये लकड़ी की कोई सवारी । काठधानीफल (स'• लो) काष्ठमिव शुष्क धात्री वाष्ठमल्लिका (सं० स्त्री.) पुष्पवृक्षविशेष, एक फूस- फलम, मध्यपदलो। क्षुद्रामला फल, छोटा आंवला। दार पेड़। वह कषाय, कटु, शीतल और रक्तपित्तन्न होता है। काठमार्जारिका ( सं स्त्री. ) काष्ठविडालिका, गिलहरी। (राजनिघण्ट) काठमौन (सं० ली.) काष्ठमिय मोनम् उपमि० । काष्ठपाटला (सं० स्त्री०) काष्ठयत् कठिना पाटला, काष्ठको भांति मौन, सख्त खामोगी। जिस मौनमें मध्यपदको सितपाटलिका, सफेद परूल का पेड़ । इङ्गित हागभा अभिप्राय प्रकाश नहीं करते, उसे बाष्ठ काष्ठपाटलि, काठपाटला देखो। मोन कहते हैं।