पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७१५

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७१८ कासिम खान्--कासिम बरोद शाह मक्के को यात्रा की। फिर १५५७ ई० को उनके मरने हांको भगिनी रही। इसीसे कभी कभी सभासद इन्हें पर यह बादशाह अकबरके समय भारत पाये थे। हंसोमें कासीम खान् मनोजा कहते थे । यह एक इन्होंने बहुत समय तक अलीकुली खान्के भ्रामा दीवान्के ग्रन्यकार रहे। उपनाम कासिम था । १६२८ बहादुर खान के साथ काशीमें निवास किया और उनके ई० को इन्हें शाहजहां के समय फिदाई खान्के स्थान मरने पर वहांसे लौट आगर में डेरा डाल दिया। १५८० पर वङ्गानको सूवेदारी मिन्ती । इन्होंने कोई १०००० ई० को १७ वो अप्रेलको प्रागरमें ही इनका मृत्य पोतंगीजों को मार और वाकीको भगा हुगलो अधिकार हुवा। किया। इस घटनाके ३ दोन पोछे १६३१ ई० को कासिम खान्-१ बङ्गालके कोई नचाच । इसन्नामखान् के मरने पर जहांगीरने कासिमखान्को बङ्गालका इनका मृत्य हुवा । इन्होंने भागमें २० बोध भूमि पर एक वृहत् भवन बनाया और १० बोधे भूमि पर एक सूवेदार बनाकर भेजा था। उस समय निम्न वन में मग उद्यान लगाया था। किन्तु अब उसका कोई चिड लोगोंका उत्पात रहा । वह दौरात्मा निवारण कर न देख नहीं पड़ता। सके। उसीसे पदच्युत होने पर १६१८ ई० को दिल्ली- कासीम खान शैख-इमलाम खान्के भ्राता। इनका को भेजे गये। २ मीरजाफरके भाई । शीराज-उद-दौम्लाकै समय निवासस्थान फतेपुर-सीकरी और उपाधि मुहतधिम ग्वान रहा। बादशाह जहांगोरके समय इन्हें ४०००० कासिमखान् राजमहलके एक सेनाध्यक्ष रहे। शीराज उंद-दौलाने अंगरेजोंके भय से जब राजधानी छोड़ टाना- सवारोंपर अधिकार मिना था । १६१३ ई० को भाईके मरने पर नहांगीरने इन्हें बङ्गालका सूवेदार बनाया। थाइ नामक मुसलमान फकीरका प्राश्रय लिया, तब कासिमखान्ने खबर पाते ही गुप्तभावसे जाकर इन्हों ने आसाम आक्रमण किया था । किन्तु प्रामामि- नवाबको बांध लिया और मीरजाफरके पास भेन यों ने रातको धावा कर इनको बहुतसो फौज मार डाली थी। इसीसे यह दिल्ली वापस बुखाये गये। फिर दिया । शीराज-उद-दौला पौर मौरनाफर देखो। कासिम खान् जबीनी-बङ्गान के कोई मुसनमान नवाब इनका मृत्यु हुवा। नवाब फिदाखान्के मरने पर दिलीखा शाहजहान्न | कासिम बरोद शाह १-दक्षिणमें बरीदशाहीवंश- १६२७ ई० कासिमको बङ्गालको सूवेदारी दी थी। के प्रतिष्ठाता । यह एक तुर्को या जार्नीय गुलाम वह धर्मभीक, साहसी, वीर और सुकवि रहे। उनके रहे। धीरे धीरे ये दक्षिणके श्य मुहम्मदयाह समय पोर्तगीज बङ्गाल में प्राधान्य लाभ करते थे । नवाबके वजीर हुवे और अपने प्रभावसे राज्य के प्रभु कासिमने शाहजहानको अनुमति ले १६२२६० को बन गये। फिर १४८२० को इन्होंने प्रादित था, हुगली, उन्हें आक्रमण किया। ३ मास अवरोधक निजाम शार और माद शाहके परामर्यानुसार अपने- पीछे पोतंगीजोंने हुगली छोड़ी थी। प्रायः सहस्राधिक की स्वतन्त्र बनाया तथा अपने नामका सिका चलाया। पोतंगोज मार और चार हजार पकड़े गये थे। उस समय नवावको केवल अहमदावाद बोदरका नगर और दुर्ग अनेक पोर्तगोज-रमणो शाहजहान के अन्तःपुर-शोभार्थ मिला था। १२ वर्ष राज्य करने के पीछे इनका १५०४ ई० 'दिलोको प्रेरित हुयौं। पौसंगीन देखो। हुगली जयक की प्रमोर बरीदने रान्य- पुत्र अल्पकान पीछे ढाकानगरमें कासिम मर गये । का उत्तराधिकार पाया था। इन्होंने अपना वैभव खूध कासिम खान् जवीनी नवाब-बादशाह नहांगोर और बढ़ाया और महमाद शाहको अपने पितासे भो शाह-जहांको सभाके एक सभासद । इनके अधिः अधिक नीचा देखाया। इस शक जिन सात पुरुषांने - कारमें ५००० सवार रहे। यह सन्नवारके अधिवासी अहमदावाद बीदरका राज्य चकाया, उनका नाम थे। मनौजा बेगमसे इनका विवाह हुवा । वह नूरज नीचे लिखे अनुसार है . मृत्यु हुवा । फिर इनके