पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७२२

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1 वाजिब। किङ्करसन-किङ्किणोकांश्रम ७२५ किहरसेन-एक बंगाली कायस्थ । दिल्लीवाले मुगल. चित्त मुरशिदाबाद जाकर नवावसे मिले। नवाब उन्हें सम्राट बहादुर शाहके समय उनके पुत्र प्राजिम्-उश जैन-उद-दीनका पादमो समझ कुछ हो गये, किन्तु शान् बङ्गान्त-विहार-उडोसाके नाजिम पौर दीवान उस क्रोधको छिपा मुखसे मोठी मोठी बात' कहने रहे। उसी समय हुगली में एक जैन-उद-दीन फौजदार लगे। फिर उन्होंने किधरसेनको ही हुगलौके कर- थे । प्राजिमके साथ जैन-उद-दीमको सम्प्रीति न "संग्राहकपद पर बैठाया था । एक वर्ष पीछे नवा- रही उससे उन्हें पदच्यत होना पड़ा । प्राजिमने बने उनसे हिसाब तलब किया। किहरसेन हिसाव अपने प्रियपान वानीवेगको हुगलीका फौजदार बनाया समझाने मुरशिदाबाद गये थे। कागजपत्रों को झूठ था । पदच्युत फौजदार जैन-उद-दीनके अधीन बता नवाबने उन्हें कैद किया था। कैदखाने में उन्हें किचरसेन पेशकार रहे। वह प्रति चतुर और कार्य- | भैसका दूध नमक डालकर खानेको दिया जाता था । दक्ष थे। जैन-उद-दीनको उन पर प्रीति तो रही, १७०८ ई० के पीछे किसी समय किहरसेनने पर- किन्तु वह किडरसेन पर पूर्ण विश्वास न रखते थे। लोक गमन किया। उनका घर सम्भवतः फरासडांगेमें कारण किपरसेनको बुद्धि और क्षमताको उस समय रहा । फरासडांगका एक स्थान प्राज भौ'किङ्गरसेनका कोई राजपुरुष पाता न था। जैन-उद-दीन्ने निसय गड़' कहाता है। किया कि वालीबंगके पहुंचते ही वह उन्हें फौनदारी- | किरी ( स० स्त्री०) किङ्कर-डोष् । दासी, टहलुरे । का कागजपत्र समझा दिल्ली चले जायेंगे । किन्त | किर्तव्य ( सं० वि० ) क्या करना उचित, कोन फा पानेमें बिलम्ब देख जैन-उद-दीनने उन्हें अपना उद्देश बता शोघ्र चलनेको अनुरोध किया था। वालोग भी किर्तव्यता (सं० स्त्री०) किङ्गत व्यस्य भावः किर्तव्य- किचरसेनको जानते और उनपर विश्वास भी रखते थे। तल। क्या करना पड़ गा लेसो चिन्ता। उन्होंने जेन-उद-दीनको कडला भेजा कि किहरसेनको कितव्यविमूढ़ ( सं० वि० ) किर्तव्ये कर्तव्यतानिश्चये कागजपत्र बता वह दिल्ली जा सकते थे । जैन-उद- विमूढ़ः, ७-तत् । कर्तव्य नियय करनेको असमर्थ, जो अपना फर्ज ठहरा न सकता हो । दीनने अपने मनमें सोचा-'किहरसेन किसी समय किडिग (सं.पु.) सात्वतवंशीय कोई राना। हमारी अधीनस्थ कर्मचारी रहे । उनको कागजपत्र "मनमानस्य मिनोचिः किदियो मुष्टिरेव च। (भागवत) समझा देने की बात कह वालीवेगने हमारा अपमान | किङ्किणी (सं० स्त्री० ) किमपि किश्चिद्दा कणति किम्- किया है। उक्त विवेचनासे उन्होंने कागज पत्र छोड़े | कण-इन्-डीप पृषोदरादित्वात् साधुः । १ कटिदेशका न थे । वालीवेगने उसी सूत्रपर नैन-उद-दीनसे युद्ध पाभरणविशेष, कमरका एक गहना, करधनी । छेड़ दिया। फरासडांगके निकट युद्ध हुवा । फगसी उसका संस्कृत पर्याय-क्षुद्रघण्टिका, कहणी, किसि सियों और बोलन्दाजी ने जैन-उद-दीनका पक्ष लिया पिका, कितिणि, क्षुद्रघण्टी प्रतिसरा, किडियोका, था । वालोवेगने दिलपत् नामक किसी व्यक्तिके कणिका, शुट्रिका और घघरी है । २ अनारसयुक्त अधीन नवाबका सैन्य भेजा था। किन्तु जैन-उद-दीनने | द्राक्षाविशेष,एक खट्टा अंगुर । ३ वृक्षविशेष, एक पेड़। सन्धिका प्रस्ताव कर दिलपत्के पास आदमी पहुंचाया। ४ देवीस्तुतिविशेष । ५ विकत वृक्ष, बैंची। इयुबास्त्र.. उसके पहुंचते ही अचानक वा पूर्वक किसी षड़यन्त्रा. विशेष, सड़ाईका एक हथियार । (रामायण, १२० सर्ग) नुसार फरासीसी तोपका एक गोला दिलपसिंहके किणिका (सं० स्त्रो०) किहिणी खार्थे कन्-टाप । जाकर लगा था । मैनाध्यक्ष इत होनेसे नवाबको फौजमें गड़बड़ पड़ गयो । जैन-उद-दीन उसी सुयोगमें किहर- किोिकाश्रम (सं• पु.लो०) एक तीर्थ । उक्त तीर्थमें मुद्रघण्टिका, करधनी । सेनको ही साथ ले दिल्ली चले गये। वहां पहुंचते ही रहनेसे परजन्म प्रमरोलोक मिलता है। वह मर गये । किहरसेन खदेशको नोटे.पार निर्भीक- भारत, पमु० २५०) Vol. IV. 182