पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७५४

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1 कौन OYO कहाने लगे। पोहायों के अधीन दूसरे जुर्चि स्वाधीन तौर सहादि बना उनमें रहना और क्वषिकर्म हारा वा दुर्दम्य जुषिके नामसे ख्यात थे । दुर्दम्य जुधि | नीविका निर्वाह करना सिखाया था। क्रमश: वह तातारों से ही कोना-तातारों की उत्पत्ति है। वह उस पानचुड़ो मदो-( स्वपनदी, उसमें स्वर्णरण मिलती समय मात्र रियाके पूर्वाश, कोरियानिकटस्थ भूभाग थी)-तौर पर्यन्त फैल गये । सुइखोके पुत्र सिलूने उनमें और प्रामूर-तोरवर्ती लनपदमें स्वाधीनभावसे राजत्व सर्वप्रथम कई राजविधि और समानविधिका प्रचार करते थे। खितानो ने पोहाइयों को उत्सेद कर सर्व किया। शिलके पुत्र उकु-नाइने १०२१ ई०को जन्म प्रधान क्षमता पायो । दुर्दम्य जुचि उनको अधीनता लिया या। उन्होंने सर्वप्रथम जुर्चिवों को लौह-अस्त्र स्वीकार तो करते, किन्तु उनके विधिनियम शासनादि बनाना और..चलाना सिखाया । उकु-नाईके पुत्र मानते न थे। हिलि-पुने १९३२ ई० को जन्मग्रहण किया था। कोन-राजवंशले प्रादिपुरुषका नाम पुखां वा कुखां १०७४ ई. को पिताके मरने पर वह राजा हुवे। उनके था। उन्होंने कोरिया में जन्म ग्रहण किया। हियान-पु धाता पुंसासुने १०४२ ई० को जन्म लिया था । पुलासु वा सियान-कु उनका उपाधि था। उन्होंने ६० वर्षक पिता और ज्येष्ठ भ्राताके राज्यमें फुएसियाम (प्रधान वयसमें अपने कनिष्ठ सहोदर पानी-हो-सिके साथ मन्ची) थे। वही अपने समयकी घटनावाली लकड़ीके · पुकान नदीके तीर यि-तान नामक स्थानमें बनियान तखते या महोके खपरे पर स्मरणार्थ लिख गये। उनके लोगों के मध्य जाकर वास किया। पुकान नदीका मरने पर कनिष्ठ इनकु ४२ वर्ष के वयसमें राजा हुवे। पावनिक नाम कानचुई है। वहां आज भी वनियान हिलिपुके एक पुत्र पगुट बड़े वीर थे। उन्होंने पिट- सोग रहते हैं। व्यों के पनक भववों का दमन किया। उनके परामर्शसे पुखांके वहां जाने पर बनियान जातिके साथ फिर राज्य में अनेक व्यवस्थायें और शृङ्खलायें स्थापित हुई। एक जासिका विवाद उठा था। उस समय बनिया फिर उन्होंने नाना क्षुद क्षुद्र राज्यों को. वशीभूत किया नो'ने उभय पक्ष पर पुखांको मध्यस्थ मान विवाद था। ११०३ १० को इन्कु मर गये। पगुटके ज्येष्ठ मिटाने कहा और स्वीकार किया यदि पुखां विवाद उखासु-राना हुवे । उनके राजत्वकाल खिताम-साम्राज्य मिटा सकेंगे, तो वही उनके सरदार बनेंगे और वह बिगड़ गया । १९१३ ई० को ज्यटका मृत्यः होनेसे उन्हें एक पन्तौकिक बुद्धिमती साठ वर्षको अनढ़ा अगुट राजा बने। उन्होंने खितान-सामान्य का पुनर्ग- कन्यादान करेंगे। क्रमसे वही हुवा। पुखां बनियानों के ठन और मारिया राज्यको स्थापन.किया। प्रगुटने सरदार बने और उनकी दी हुई षष्टिवर्षीया कन्यासे २०६८ ई० को जन्म लिया था। उन्हो'ने ११९६ ई. को विवाह कर वु-लु तथा वु-पालु नामक २ पुत्र और चु-से- स्वर्णके पत्र पर राजसभाका भादेशादि चलाया .पान नामक एक कन्याको सत्पादन किया। कौन-राज और अपने राज्यकालको “टिएनकु' ( स्वर्गका वंश पुखोकी पादिपुरुष (चि-त्सु) बताते हैं। पिसाके साहाय्य कान्त) बताया। १११७ ई० को उन्होंने नियम मरने पर वुल टे-बान-टि नामसे राजा हुवे। वुलुके निकाला-धोई अपने वंशकी कन्यासे विवाह करन पुत्र पोहाई धन-वनटी और पोहाईके पुत्र सुखो सकेगा। उसी समय खितान सामान्य पर चीनके शर हियेनन्स थे। उनके राजबके समय भी दुर्दम्य जुचिसम्राटी अगुटका विवाद हुवा था। उसी विवाद में यो के सहादि न थे । कोई ग्रहादि बनाना जानता भी अगुटने समस्त खितान सामान्य पर अधिकार किया। न था। यह पर्वतको मूल मृत्तिकाके मध्य गत बना पौर चीनराजके साथ सन्धि हो गयो। ११२३ ई० घास फूससे ढांक शीतकालको रहते थे। फिर ग्रीष्म को अगुटने पुटु इदके तौर ५५ वर्ष के वयसमें सूर्य- 'कालको गवादि पशु और स्त्रीपुत्रादि से वह धूमा ग्रहणके दिन परलोक गमन किया। उनके स्मरणाथ करते थे । सुइखो राजाने उन्हें सर्वप्रथम हइकू नदी-1 पिकि नगरमें एक स्मृतिलिपि स्थापित है। Vol, IV. 190