पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७६३

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कुकड़ना-कुकर्मकारो कुकड़ना (हिं० कि० ) सङ्कुचित होना, सिकुड़ना । कुकर कानोहांडी नामक नूनन मृण्मय पादौ भिक्षा कुकड़वेल (हिं० स्त्री.) बंडाल । मांगते और उमीमें पकाते खाते हैं। उखुर नामक कुकड़ी (हिं० स्त्री०) १ मुट्टा, अंटी, तकलेमे कात कर दलका भी नाम सुन पड़ता है। उक्त सब लोग शैव उतारा हुवा कच्चे सूतका नपटा हुवा लच्छा । २ मदा. हैं। वह कभी अपना धर्म नहीं छोड़ते! प्रत्येक रका फल, पकौड़े को बोड़ी। ३ खुखड़ी। दलपति मठाध्यक्ष होता है। कुकथा (स. स्त्री० ) कु निन्दिता कथा, क मंधा० ! कुकरी (हिं. स्त्री० ) १ सुरगी, जंगली मुरगी । २ पौड़ा, १खराब बात। दर्द। ३ झिल्ली । ४ करोटि, खोपड़ी। कुकनू (यू० पु०) पक्षिविशेष, एक चिड़िया। कहते | कुकरौंधा (हिं० पु०) कुकरटु, एक छोटा पौदा। (Blumea है कि वह अकेले ही उपजता और पपना जोड़ा नहीं Lacera) उसे हिन्दी में ककरोंदा, कुकुरवन्दा या जंगली रखता । कुकन गाने में बहुत निपुण होता है। मूना, बंगलामें कुकुरशुगा, बम्बयामें निमूटिं, दक्षि- चंचुमें अनेक छिट्र रहते. जिनसे विभिन्न स्वर निकलते णीमें जंगली कामनी, तामिनमें कत्तुमुन्नांगि, तेलगुमें हैं। उसके विलक्षण गनिस पग्नि निर्गत होता है। कापोगाकु, संस्कृतमें कुक्कुरष्टु, अरवीमें कमाफितूम, पूर्ण युवा होनेपर कुकनू वर्षाऋतु लकड़ियां एकत्र और ब्राहीमें मैयगान कहते हैं। कर उनपर बैठता और गाया करता है। फारमी कुकरौंधा साधारणतः भारतके मैदानों में होता। में उसे "पासशजन" कहते हैं। वह उत्तर-पश्चिम (हिमालय पर २००० फीट #चे कुकभ (सं० लो०) कुकेन पादानेन पानेन इत्यर्थः तक )-से विवापर, सिंगापुर पौर सिंहन तक पाया भाति, कुक-भा क । मद्य, शराव । जाता है। पत्र बड़े होते हैं। उनमे एक प्रकारका गन्ध कुकर (सं० वि० ) कुसितः करो यस्य, वहुव्री० । छूटता है। वर्षाऋतु बीतने पर पाई स्थानों में अथवा कुत्सित हस्तविशेष, खराब हाथों वाला । उसका नालियों के निकट कुकरौंधा उगता है। उसके सुदी, संस्कृत पर्याय-कुणि, कूणि और कोणि है। पवशाखा निकलनसे छोटे पड़ जाते हैं। शाखापत्र कुकर-औघड़ नामक शिवसम्पदाकी एक शाखा। क्षुद्र क्षुद्र रोम द्वारा प्राच्छादित रहते हैं। हाथ डेढ़ गुजरातमें कोई दशनामी संन्यासी रहे। उन्हें गोरक्ष हाथ बढ़ने पर मनरी पाती है, उसमें जो वीन होते, 'नाथके अनुग्रहसे ब्रह्मगिरि नाम मिला। वही ब्रह्मगिरि वह नतमें डाम्तनेसे फनते हैं। कुकरौंधा रक्तस्राव पौघड़ सम्प्रदायके प्रवर्तक थे। औघड़ शैव कहते कि रोकनेके लिये व्यवहार किया जाता है। इनमें काची 'गोरचनाथने 'ब्रह्मगिरिको कानके मुंदरे ( अन्तझार) मी मिलाकर उसे पिलाने पर उपकार पहुंचता है। और कई चिन्ह प्रदान किये। पीछे ब्रह्मगिरिने फिर उसकी प्रांगन धोनका अच्छा पानी तैयार होता है। वह गुदर, सुखर, रुखर, भूखर और कुकरको पांच कोहग्न के लोग उसे मक्खियों और कीड़ों के भगनिमें - शिष्योंको दे डाले । तदनन्तर उन पांचों लोगों ने स्व स्व व्यवहार करते हैं। कुकरौंधकी पत्तियों में तेन भी नाम पर एक एक दल बनाया था। उनके मध्य गुदर निकाल सकते हैं। कृमिरोगमें उसके पत्रका रम एक कानमें मुंदरा और दूसरे कानमें गोरक्षनाथका निकाल कर पिलाया जाता है। नवीन मूलको मुखमें पदचिङ्गित एकखण्ड ताम्र पहनते हैं। सुखर और डान्स लेनेमे खुश्की दूर होती है। उमे कुकुरमुत्ता भी • रुखर दोनों कानों में पीतनका मुंदरा धारण करते है। कहते हैं। कानका मुंदरा देखनैसे ही पौधड़के सम्प्रदायका कुकर्म (संतो०) कुसित कर्म, कर्मधा० । १ चोक- पता लग जाता है। मूखर और कुकर दलको सख्या निन्दित और शास्त्रनिन्दित कर्म, बुरा काम । (वि.) पल्प है। प्रथम ३ दल अपने अपने मिक्षापात्रमें धूप २ कुकर्मयुक्त, वुरा काम करनेदारना। नहीं सुत्लगाते । किन्तु शेषोक्त २ दल उसे करते हैं। कुकर्मकारी ( स० वि०) कुकर्म इरोति, कु-कर्मन्-