पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/१०९

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रोहिणीशान्त-मोहित फोडे हो जाते है तथा पित्तज रोहिणीकी तरह लक्षण | रोहिणीभव (सं० पु० ) । रोहिणीके पुत्र, बलगम । दिखाई देते हैं। यह रोग साध्य है। २ बुधना वैदोपिक रोहिणी रोग रोगीके जीवनको तुग्न नष्ट रोदिणीयोग (मं० पु०) रोहिण्या ये। रोहिणी नक्षत्रका कर डालता है। फफज रोहिणी तीन दिन मांतर, योग, जन्माष्टमी के दिन रोहिणी नक्षत्र दोनेमे गहिणीयोग पैत्तिक रोहिणी पांच दिन के भीतर और वातज रोहिणी होता है। इस रोहिणी नक्षत्रका योग होनसे उसे जयन्ती सात दिनके भीतर जीवन नष्ट करता है। योग भी कहते है। जन्माटमी देगा। इसकी चिकित्सा-साध्य रोहिणी रोगमे रक्तमोक्षण, रोहिणीरमण (सं० पु. ) रोहिण्याः रमणः। कृपा वमन, धूमपान, गण्डपधारण और नरय हितकारक है। ऋषभ नामकी गोषधि । (गजनि०) वसुदेव । घातज रोहिणी रोगमें रक्तमोक्षण कर सैन्धव द्वारा प्रति ३ चन्द्रमा । सारण करे तथा फुछ उग्ण स्नेह द्वारा बार बार गण्डप रोहिणीवल्लभ (सं० पु०) रोहिग्या बालमः । १ चन्द्रमा । लेवे। पित्तज रोहिणी रोगमें रक्तमोक्षण कर प्रियद २ वसुदेव । चूर्ण, चीनी और मधु मिला कर उस पर घिग्ने तथा दाग्य रोहिणीवन (सं० बी० ) नतभेद । और फालसे फलके काढ़े ले गुल्ली करे । कफज रोहिणी- । रोहिणीश (सं० पु० ) रोहिण्या ईमः। १ चन्द्रमा । में गृहधूम, सौंट, पीपल ओर मिर्च के चूर्णसे प्रतिसारण : २ वरसुदेव । करना होगा। रोदिणीपेण (सं० पु० ) रोहिणी नक्षत्रामे चारों ओर अब. श्वेत अपराजिता, विडङ्ग, दन्ती और सैन्धव द्वारा स्थित नझनपुर। तैल पाक कर नास लेने और कुल्ली फरनेसे गहिणी रोहिणीनुन ( स० पु. ) हिण्याः सुतः । १ रोहिणीके रोग नष्ट होता है। पित्तनादि भेदमे पित्तादिनाशक पुन, बलराम। २ बुधप्रद । औषधका व्यवहार करनेसे वे सब लक्षण जाते रहते है। रोहिणेय (सं० पु० ) रोहिणेय, मरकतर्माण। (भावप्रका० रोहिगीरोगचि०) रोहिण्यष्टमी (ग० बी०) रोहिणीयुक्ता सष्टमी। रोहिणी १६ शरीरका पडत्वक, त्वचाकी छठी परत ।' नक्षत्रयुक्ता मारा गाष्टमी। जन्माष्टमोके दिन रोहिणो. २० अश्वका मुखरोगभेद, घोडे के मुहका एक रोग। नक्षत्र के योग होनेको रोहिण्यष्टमी फस्ने है। २१ जलचर पक्षीविशेष । २२ ब्राह्मी बूरी । (त्रि०) २३१ (गट ० १३२ अ.) जन्मामी कन्द देगी। स्थूल, मोटा। रोहिण्याद्यवृत (सं० ली०) गुल्माधिकारमै घृतापविशेष । रोहिणीकान्त (सं० पु०) रोहिण्याः कान्तः । रोहिणी निरक चिकि०५०) पति चन्द्र। रोहित ( स० पु०) रोहतोति रह (रसकहधिभ्य इति त । रोहिणीचन्द्रव्रत (सं० क्ली०) व्रतविशेष । उण_166) र सूर्या। २वर्णभेद् । ३ मत्रयभेद, रोहू रोहिणीचन्द्रशयन (सं० लो०) व्रतविशेष । मछली। मछली मात्र ही. कफ और पित्रवर्द्धक होती है। रोहिणीतनय (सं० पु०) रोहिण्यास्तनयः। रोहिणीके | किन्तु रोह और मैंगुरी मछली कफ और स्त्रियईक नहीं पुत्र, वलराम। होता। (स्त्री०) ४ मृगी। ५एक लता। ६ लाल रंगकी रोहिणीतीर्थ (सं० क्लो०) एक तीर्थका नाम। घोड़ो, वड़वा । ७ नदी। (वि.) ८ रोहित वर्ण रोहिणीत्व (i० क्ली०) रोहिणी भावे त्व । रोहिणी नक्षत्र विशिष्ट, लाल रगका। का भाव या धर्म। (शतपथब्रा० २।१२६) रोहित (सं० क्ली०) रूह (रुहेरच तोया । उण ३६४) रोहिणीपति (सं० क्लो०) रोहिण्याः पति। १ चन्द्रमा। इति इतन् । १ कुङ्कम, केसर। २रक्त, लहू । ३ इन्द्र २ वसुदेव । ३ नृपभ, बैल । धनुप । (पु०) ४ मीनविशेष, रोह मछली। इस रोहिणीप्रिय (सं० पु०) रोहिण्याः प्रियः। रोहिणीपति। मछलीका रंग काला, छोलकायुक्त और इसकी पेटो