पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/१११

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रोहिला १०८ ६० लाग्यसे ऊपर है। अवध-रोहिलग्यण्ड और कुमायन-! स्थान स्वान और बाजीग्से मारक अन्तर्गत शिवि नगा रोहिलखण्ड रेलवे के खुर जानेसे स्थानीय वाणिज्य- तक तथा हमन अदालसे कावुल नक विस्तृत था। व्यवसायमे वडी -बुविधा हुई है। शायद इसी रोहनामजनपरया पहाटी प्रदेशात समा रोहिला अफगान जाति एक समय एन विस्तृत . गत अफगान जाति का नाम भारतवर्ष रोहिला हुमा विमागमे रहती थी। उन लोगोंने अपने वाट बलसे दस होगा। उत्तर भारत की अपेक्षा दक्षिण माग्न बाम कर स्थानको जीत र अफगान शासन फैलाया था। तभी : दिदगाबादमें अफगान औपनिवेशिकगण पोहेला कदलाने से यह रयान रोहिलखगड सहलाता है। दुद्धर्ष रोहिला है। उत्तर भारतवानी अफगान जाति साधारणतः जातिकी बीरप्रति और युद्धविग्रहमा हाल तथा प्रत्येक पटान नामने ही परिचित है। जिलेका दनि म रोहिल्ला मान्दमे लिखा गया है। औरगजेषकी मृत्युफे बाद मुगार माम्राज्यमे जब रोहिरना सन्द देग्यो। विटनाला उपस्थित हुई, नर नाना म्गानगो नेतृगण रोहिल्ला ( रोहेला ) भारतवासी अफगान ज्ञातिकी एक अपने अपने प्रभुत्व स्थापनकी कोशिश करने लगे। इस शाखा । ये लोग प्रधानतः युसुफजै अफगान नामसं परि समय उत्तर प्रदेशवासी अफगान चोरी डकैती करके पे! चिन है। दिल्ली में पटान-अधिपत्यके समय ये लोग। भरते थे। सीमाम्याग्यपी अफगान सेनापनि दाऊद भारतवर्षमे मा कर नाना राज्यों में फैल गये। उस मुगट-सरकारमे कोतवासन नियुक्त था । मदगुणोंमे समय अफगान सरदार जागीरका शासनकर्तृत्व ले कर दरवारमे उमको अच्छी मातिर घो। गन्ना यह मालिक अपनी अपनी प्रधानता स्थापन के लिये कोशिश करते शाह मालमको मार पर कातिगर नामक ग्धानमें अपने थे। पजायके पेशावर-विभागमें भारत पर आक्रामण | गोटो जमाने के लिये मीक हृढने लगा। मममय उसकी करनेवाले कुछ यफगानोंने उपनिवेश बसाया सहो, पर । चोरताने मुग्ध हो कर अफगान लोग उसके दलमें मिल मारतके अन्यान्य स्थानों में उन्हें ठहरनको सुविधा न , गये! दाऊदने प्रथम जीयनमें अर्थात् जय बद लूट पार हुई ! १५२६ ईमें मुगल बादशाह वावरशाहने -जय . किया करता था, पक जाट बालकको अपहरण घर भारतवमि राजपाट स्थापन किया, उस समयसे लेकर उसका लालन पालन किया था । उम यालकका नाम था और जेबके. शासनकाल तक भारतवामि पठानोंका • अली महम्मद । अली अपने प्रतिपालक दाऊदो मार विशेष प्रादुर्भाव रहा। प्रतिष्ठापन्न और प्रतापशाली । कर स्वयं अफगान सम्प्रदायका अधिनेता हो गया। योद्धा राजपून वा हिन्दू-राजाओंके जमाने में अफगान अपने साहस और कार्यतत्परताके गुणसे वह शीघ्र हो लोग अपना शिर ऊंचा न कर सके। औरङ्गजेबकी । कातिहारका सर्वमय का हो उठा। उसने सैकड़ों अफ- मृत्युके बाद मुगल-प्रभावकी दिनों दिन अवनति होती ' गान योद्धाको कार्य में नियुक्त कर अपना वल बढ़ाया था। देख अफगान जाति लूट पाट करती हुई नौकरीको खोज दिल्ली दरबारको दुरवस्था देव पर १७३९ ईमें मे मारतवर्ण आई। दो एकको राजकार्यमें नोकरी मिल , नादिरशाहने मुगलशाहका दपं और भी चूर कर दिया। जाने पर भी अधिकांश चोरी डकैती कर जीवन निर्वाह : इससे अठी महम्मदकी क्षमता पहलेसे यढ चलो । अनेक करने लगे। शिक्षित अफगान सेना और सेनापति उसके दलमें मिल भारतवासी यह अफगान जाति उस समय रोहिल्ला , गया । महम्मद इस प्रकार बलवान हो भावी प्रतियोगीके कहलाती थी। हिन्दुओंने उनका रोहिला नाम क्यों रखा । विरोधकी आशङ्का दूर करने के लिये अपने चचा रहमन् उसका पता नहीं चलना । पस्तु भाषामें रोहका अर्थ | खांस ना मिला । रहमत् उस समय रोहिलखण्डका पर्वत और रोहेलाइका अर्थ पर्वतवासी है। एतद्भिन्न सर्वप्रधान अफगान सरदार था। वह अलीसे कुछ तारीख इ-शाही और फिरिस्तामे अफगानिस्तानके अन्त । जागीर ले कर उसके साथ मिल कर कार्य करनेको त रोह नामक जनपदका उल्लेव देखने में आता है । वह। राजी हुआ। रहमत्का पिता शाह आलम वादलझै अफ.