पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/११७

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रौद्र-रोध ११४ रौद्ररसके साथ हास्य,शृङ्गार और भयानक रसके । १३ तीव्र, तेज। १४ भोपण, खफिनाक। १५ रुद्र. सम्बन्धी । १६ रुद्रका उपासक । साथ विरोध है। (साहित्यद० २२४२) (पु.) रुद्रस्थायमिति स्द-मण । २ न्द्रतेज, रीटक (२०सी० ) रुद्रेण स्तंन्द्र (कुनानादिम्पो वन । धृप, घाम । पर्याय-धर्म, प्रकाश, द्योत, मातप । इसका पा ४५३१११८) इनि वृन्। रुद्र द्वारा किया हुआ। गुण-कटु, सक्ष, रवेद मूर्छा और तृष्णानाशक, दाह रौद्रकर्मान् ( स० वि० ) रौद्र कर्म यस्य । १ भीषण और वैवर्ण्यजनक तथा चक्षु रोग का कर्मा, भयंकर काम करनेवाला । (को०) २ भीषण कर्म, भयंकर काम। ज्योतिपमें रौद्रके नाम देगनेमे जाते है, जैसे- रौतु (स० पु. ) आकाश के पूर्व-दक्षिण मार्गपं टिके जठर, पिङ्गल, रौद्र, घोराप्य, कालसंगित, अग्निनामा अग्रभागके समान फपिश या कपासी, राक्ष या रुम्वा और हन। ताम्रवर्ण किरणाने युन और आकाशके तीन माग तकमें प्रतिवर्ग एक एक रौद्र अधिपति होता है। जिस गमन करनेवाला एक केतु । प्रकार राजा, मन्त्री आदि प्रतिवर्ण एफ एक होता है रोहगण ( स० पु.) फलितज्योनिपके अनुसार एक गण. उसी प्रकार इन सात रौद्रोंमेंसे एक एक हुमा करना है। का नाम । इस गणमें जन्म लेनेसे वह व्यक्ति पापिष्ट होता किस वर्गम कौन रोड अधिपति होगा, गणना द्वारा है। (योटी प्रदीप ) उसका स्थिर करना होता है। रौद्रता ( सखी०, रौद्रस्य भावः तल-टाप । १रीदत्व, "जठरः पिङ्गला रौद्रो वागड्या कानशितः। भयदरता, डरावनापन । २ प्रचण्डता, प्रग्वरता। अग्निनामा हतो रौद्रः सप्त रौद्राः प्रकीर्तिता ॥" रोवर्मन (स० वि०) रौद्र दर्शनं यस्य । भीषण आकृति (ज्योतिष) और चेष्टावाला, भय र रुपका । किसी किसी प्रन्यमे हत' इस नामकी जगह 'प्राण-रोदध्यानी-जैनसम्प्रदायभेद। (स्थविरा० ११७८ ) “दाह' नाम लिखा है। रौद्रपाद ( स० लो० ) रौद्रम्य नक्षत्रविशेषस्य पादं। आद्रा नक्षत्रका पादभेद। ___ इस रौद्रका फल इस प्रकार लिखा है, जिस वर्ष पिङ्गल रौद्र होता है उस वर्गम प्रजाक्षय, अनेक रोगों रौद्रमनस (६० वि०) रौद्रं मनोयस्य । भयानक मनोयुक्त और सब जीवोंकी उत्पत्ति होती है। जठर रौद्र होनेसे निष्ठुर चित्तवाला, क्रूर। प्राणादि पित्तरोग और मानवको तरह तरहका क्लोश ! रौद्राग्न ( सं त्रि० ) रुद्र और अग्निसम्बन्धीय । अग्नि नामक रौद्र होनेसे उत्ताप द्वारा पृथ्वी शुका तथा, रौद्रायण (सं० पु० ) रुद्रके गोत्रमे उत्पन्न पुरुष । जीवोंको नाना प्रकारका रोग, रौद्र नामक रोदमें चित्तोडेग रौद्रार्क ( स० पु०) २३ मालाओंके छंदोंकी संग्रा जो नाना रोग और व्रणादि पीड़ा, घोर नामक रौद्रमे अतिशय कुल मिला कर ४६३६८ हो सकते हैं। उत्ताप तथा बहुविध रोग , काल नामक रौद्र में उत्तापले रौद्राश्व (संपु०) पुरुषपुत्र और उसके वंशके एक राजा। सभी जीव पोडिन तथा व्रणादि नाना प्रकारका रोग! रौद्रि (सपु०) रुद्रके गोलमें उत्पन्न पुरुष। होता है। (न्योतिष) रौद्री ( स० स्त्री०) रौद्र-टीप । १ रुद्रकी पत्नी, चण्डी। महामाया चामुण्डादेवीने रुद्र नामक महात्यका संहार ___ हेमन्त ऋतु । ४ यम । ५ कार्तिकेय ! ६ वृहस्पति- के ६० संवत्सरोंमेसे ५४वां वर्ग। ७ केतुभेद । ८ अप- किया था, इसीसे ये महारौद्री नामसे प्रसिद्ध हुई थीं। (वराहपु० नितिमा०) देवताभेद । इस अर्था में रौद्र शब्द बहुवचनान्त है। २ गान्धारस्वरकी दो श्रुतियोमिस पहली ध्रु नि । - जातिविशेष । १० भाद्रा नक्षत्र । इसका अधिष्ठात्री रौद्रोमाव (सं० पु०) रुद्रका धर्म । देवता रुद्र है। इस कारण आदाका रौद्र नाम हुआ है। राध (संपु०) रोधस्यापत्य रोध (शिवादिभ्योऽण । ११ सामभेद । १२ लिगमेद । ( त्रि०) रुद-अण् ।। पा ४।१।११२) इति ण या रोधका अपत्य ।