पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/११८

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रोपादिक-नौप्यमुद्रा रोधादिक (स.नि.) धादिगण सम्यधीय । mayor Shetlton ) ९२ पत्रिकामै १०२ प्रकारको स्वर्ण रोधिर (स.लि.) रघिर अण । रुधिरसम्यधीय। मुहर, ३२ प्रकार हण वा पगोडा, १ प्रकार अई पगोडा, रौनक ( अ० स्त्रो०) १ वर्ण और भारति, रूप। २ प्रफु ! २४ प्रकार सोनेका कानम (परिमाण २६मे ५६ प्रेन) लता, विकाश । ३शोमा, छटा, चहल पहल । ४ दोप्ति, और २१ प्रकार वैदेशिक रूपर्णमुद्रा तथा रोयके मध्य चमक-दमक। ४५६ प्रकारके रुपये, २३ प्रकारकी अठना, ६ प्रकारके रोप्य ( स ० )रुप्यमेय अण । मप्य चादी। यह पा| फोनम और १ दमडी सिकेको खादका पार्थक्य निर्देश खनिज पदाया है तथा अधातुओंमें गिरा जाता है । इस | पर गये हैं। धातुमे नाना प्रसारके मलद्वार और मोपधादि बनते हैं। ____अनुल फजल्फी रेखोसे मालूम होता है, फि १५४२ स्नायविक दुल्ताजति रोगमें आयुर्वेद मतसे स्वर्ण, इ०में हुमायू से दिल्लीका सिंहामन छीन कर शेरगाहने या लोहके योगसे रौप्यपरित औषध प्रयोगको चिधि है। पहले पहल अपने नाम पर मिका चलाया था। उस डाफर पमार्ग उस औषधको उपकारिता सम्बधर्म | शेरशाहो मुद्राको एक पीठ पर इस्लाम धर्मका निशाना प्रशमा कर गये हैं। और दूमरी पीठ पर पारसी भाषार्म शेरशाहका नाम क्या प्राच्य पया प्रतीच्य जगत्में बहुत पहले से रौप्य लिया था। उसके पहले भारतवपमें अरवदेशीय चादी का भादर और प्यवहार चला आता है। चैदिक ब्राह्म । का घरहाम, स्वण, दिनार और तायेा फुलस प्रचलित गादि युगमें भी अपगण सोने और चादीका प्यपदार। था। पठान और मुगल आधिपत्य विस्तारके साथ साथ जामते थे। पुराणादि और मचादि रमृतिमं चादीका ) ये सब मुद्रापे भी इस देशमें लाइ गइ । प्राचीन हिन्दू उल्लेप देखने आता है। स्मृतिकारी ब्राह्मणके पक्ष | और श राजाओंको नामाङ्कित मुद्रा उसी विष्ठपके दिन शुदस रौप्यदान प्रहणकी व्यवस्था दी है। इस दान घे एक तरद लोपसी हो गई थी। पतित नहीं हो साने। ये सब रन उस समय ब्राह्मण विशेा विवरण मुद्रातत्त्व श दम देखा। गण देवसेयाके लिये निर्दिए रखते थे। सम्राट अकबरने शेरशाहो सिका सस्कार कर विशा विवरण चादी शब्दमें दसा।। चौकोन रोप्यजलाली सिका चलाया। उसका वजन रोपगिरि-प्राचीन विदेह राजा मतगत एक शैल। ११०० माशा था। उसे 'चारयारो' सिका भी कहते थे। रौप्यमय (स.नि.) रोप्प-स्वरूपे मयट । रौप्यम्बका | पयोंकि इसके चार कोने में महम्मद, मानूरकर, गोमर घादीका। और मोसमानका नाम तथा किनारेमें अलीका नाम पुदा रोप्यमुद्रा (स० वी०) रौप्यधातुसे प्रस्तुत राजचिह्ना था। उस शमय भारतके मिन मिन स्थानमं भिग्न हित रौप्यचक वा धतुष्कोण सण्ड, चादीका मिका, मिन तरहका माशे भरका सिमा मालित रहनेसे मुद्रा रुपया (silver Cornage। अगरेजोंक शासनकालमें विशेषका वजन ठीक करना बडो ही असुविधा थी। माज पल जिस प्रकार रौप्यमुद्रा या रुपया (१६ आना अध्यापक कोल को अक्सरशाहके राज्यकालको कुछ यो ६७ पैसेके परावर) प्रचलित है, मुसलमानोंके जमाने परिष्कार स्वर्ण और रौप्यमुद्राका वजन र पर उसस में भी उस प्रकार सिक्का प्रचलित था, लेकिन उसका मौसत १५५ मेन स्थिर किया । अपात् पक पक विशुद्ध परिमाण साज फल समा। था। प्राचीन हिंदू रोप्यमुद्रा १७४४ प्रेनको कदरशाह द्वारा चलाई गई जामों के समय नाना प्रकारको सण और रौप्यमुद्रा थी। जहांगीर, शाहजहा और मोरगजेवक समय जो सय प्रचलित थी। भारतपय विभिन्न राजामों के अधिकार | मुदा चलाइगह है उसका पजन भी १७५ प्रेनषा 1 महम्मद में छेनीसे क्टीईया सचम दाह जो सथ मुदा नच शाहके जमानेमें सूरत, दिली, अहमदाबाद धीर धडाल रित हुथी उनमें कुछ न कुछ नाद अप मिली रहती| में उतने ही पजनको मुद्रा ढाली गइ थी। अतएप मुगल यो। १८६८ १०म सन मेजर सेकल्टन (Surgeon | अमातेको मकवरो, जहागिरी, शाहजहाना, आलमगिरी,