पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/१२१

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१८ रोहिय-ले (शुभ्रादि यत्र | पा ४१।१२२ ) इनि ढक। रोहिणीके रोहितक ( स० त्रि०) रोहितकके काष्ठसे उत्पन्न । पुट, बलराम । (भारत १९२१९) २ चुवप्रह। रोहित्यायनि ( स० पु० ) रोहित्यके गोतमे उत्पन्न पुरुष। गोवत्स, गायका बछडा। ४ पुरुषोत्तमस्थित पञ्च- रोहिदश्य (सं ० पु०) १ वसुमनाका वंशधर । २रोहि- नीर्थों मेंसे एक तीर्थ । पुरुषोत्तम जा कर पञ्चतीर्थ दृश्य के गोलमे उत्पन्न पुरुष । करना होता है। पुरुषोत्तमस्थ पञ्चतीर्थ करनेसे उसका रोहिप् (सं० क्ली० ) रोहतीति रुह-( रहवृद्धिश्च । उप पुनर्जन्म नहीं होता। ११४८) इति टिपच, धाताश्च वृद्धिः। १ कत्त,ण, रोहिप "मारंगटेयेवटे कारों गहिण व महादयो । नामक धास। पर्याय-देवजग्ध, सौगन्धिक, भूतीक, इन्द्रद्युम्नमरःस्नान्या पुनर्जन्म न विद्यते ॥" । ध्याम, पौर, श्यामक, धूपगन्धिक । गुण-तिक, कटुपाक, (तिथितत्त्व ) । हृद्य और कण्ठथ्याधि, पित्त, अम्ल, शूल, कास और घर- (को०) ५ मरकन मणि, पन्ना । नाशक । (भावप्र०) गहिणेश्वरतीर्था ( स० ली० एक तीर्शका नाम । (पु०) २ मृगविशेष | ३ रोहितमत्स्य, रोह मछली। गहिण्य (सं० पु०) रोहिणका गोलापत्य । रोहिणी (सं० स्त्री० ) रोहिप-टीप । १ मृगी। २ दूर्वा, रोहिन ( मं० वि०) १ रोहितमत्स्य सम्बन्धीय, रोह दूब । मछलीका। (पु० ) २ रोहित मनुके पुत्र का नाम रोही (सं० लो०) स्त्री मृग। ३ कृष्णके एक पुत्रका नाम । खोरी (हि स्त्री० ) रेवडी देखा। ल ल-यवर्गका तीसरा और घ्यञ्जनवर्णका अट्टाईसवाँ वर्ण। चतुर्वर्गप्रदा देवीं] नागहारोपशोभिताम् । इसस उभारण-स्थान दन्त है। इसके उच्चारणमे संवार, एन ध्यात्या लकारन्तु तन्मन्त्र दशधा जयेत् ॥" नाद और घोष प्रयत्न होते हैं। यह अल्पप्राण है। (वर्णोद्धारतन्त्र) इसका पर्याय-चन्द्र, पूतना, पृथ्वी, माधव, शक्र, ! इस प्रकार ध्यान कर लकार दश वार जपना होता चलानुज, पिणाको व्यापक, मांस, बड़गी, नाद, उमृत, है। यह लकार कुण्डलीत्रयांयुक्त, पीतविद्य लताकार, देवी, लवण, वारणापति, गिया, वाणी, क्रिया, माता, सर्वरत्नप्रदायक, पञ्चदेव और पञ्चप्राणमय, त्रिशक्ति और भामिनी, कामिनी, प्रिया, ज्यालिनी, वेगिनी, नाद, प्रद्युम्न लिविन्दुमय है। आत्मादि तत्त्वके साथ इस वर्णकी गोषण, हरि, विश्वात्मा, मन्द्र, वली, चेतः, मेरु, गिरि, हृदयवेशमें भावना करनी होती है। पन्ना और रम। (नन्तसार) "लकारं चञ्चलापानि कुण्डलीवयसयुतम् । इसका ध्यान- पातविद्यु लताकार सर्व रत्नप्रदायकम् ।। "चतुर्भुना पीतया रसातलाचनाम् । पञ्चदेवमन वर्ण पञ्चप्राणमय सदा । पदा व मीमा समानद्वारभूषिताम् ।। त्रिशक्तिमहित वर्ग त्रिविन्दुसहित सदा। योगेन्द्रनिता नित्या योगिनी योगपिणीम् । आत्मादितत्वसहितं हृदि भावय पानति ॥" (कामधेनुत०)