पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/१२६

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लनक-सनणा १२३ पाना नाय या जिसक द्वारा पहचा नाय उसे रक्षण, पहल लिया जा चुाद, मि तारपर्यका अथ प्रहण कहन हैं। यह रक्षण हो प्रारया है इनरभदानुमाफ कराक पियसम्म का नाम लक्षणा है। सभी और ध्यानदार प्रयोग । (न्यायमन ) इमपा उदाहरण दनेसे स्पष्ट हो जायगा। 'गद्गाया घोषः पृन् तद्विन और समासका नियाम अमिधान तथा| प्रतियामति गङ्गामे चोप रहता है, यह पा पाप है, गङ्गा मनभिशोंका अभिशानसूक ही क्षण पदयाच्य है। पदोपे प्रवाहयुत जलरूप समझा जाता है। प्रयाहयुक्त लक्षम रक्षाथ अभिनियको रक्षण कहत हैं। समान | पलम घोर नही रह सकता। भादमी जमीन पर रहता और असमान जाताय व्यवच्छेद हो लक्षणाय है। है जलमें रहा सम्मन है। अतएर यहां पर शादाय ३ दशन | ४ सोमिति लक्ष्मण। ५ मारस पक्षा की कोई प्रतीति महा होतो अर्थात् गड्ढामें पास परता ६ सामुद्रिका अनुसार शरारके 1 गोंमें होनेवाले कुछ है, इसमे कोइ अर्थहीन समझा गया । मत न सय सालोत विशेष चिहजो शुभ या अशुभ माने जाते हैं। शरारमें | स्थानों में अर्थधोधके लिमे लक्षणाशक्ति बीर परनी होनेवाला एक विशेष प्रकारका काला दाग जो पालपके होती है । लक्षणा स्वीकार करनेसे तात्पर्य भासामोसे गममें रहने के समय सूर्य या चद्रहण लगने कारण | मालूम हो पाता है। 'गङ्गामें घोप रहता है' ऐमा पाक्य पड़ जाता है। शरीरमें दिखाई पडनेवाले ये चिह कदा गया है। पत्रमय गङ्गामें रहना जब असम्भव है आदि जो दिसा रोगले सूचक हों। अगरेनामें इस तव या गलाक समोष है? इसका पता लगानस पहले Simptoms पहते हैं। तोर देखा जाता है। मनपर गला शब्दका अर्थ रक्षणा लक्षणक (A. पु०) रक्षणयुक्त, जिसमें कोह रक्षण हो। छारा गड़ातार कहनेसे और कोरगोलमाल न रहाता लक्षणश (स० वि०) लषण जानातीति शाक। लक्ष तथा इससे तात्पर्य की भी उत्पत्ति होता है। इसलिये गधेचा, जो लक्षणसे जानकार हो। यहा पर तात्पर्य की उतात्ति होके कारण नभम भी पक्षणत्य (स. की० ) लक्षणम्य भावः त्य। रक्षणका कोइ ध्याघात न पहुगा । आत गलाके किनारे पपमम्म भाय या धर्म। या रक्षणा हुई। इस प्रकार जहा जहा तात्पयका लक्षणरक्षणा (स. खा० ) लक्षणाभेद । क्षमणा देखो। अथ ले कर अर्थ माग मियो जायगा, यहा रक्षणा रक्षणवत् (स० लि०) रक्षण विद्यतेऽस्य मतुप मस्य च । होगी। लक्षविशिष्ट रक्षणयुच। समशक्तिप्रकाशिसमें लिया है, कि- लक्षणसग्निपात ( म पु०) १ थटूपात । द्रष्य विशेष । में कोई चिह्न या निन अक्ति करना। "जहत्म्य थाऽाहत्मार्पा शिस्टाधुनिकादिका । रक्षणा (स० स्रो०) क्ष (लोरट च । उप २७) इति । लक्षणा विविधान्नाभिनन्न स्याना " (द ) मस्तस्याढागमश्च, क्षणमत्स्यस्पेति अर ततष्टाप ।। शमशक्तिप्राEिT मतसे या रक्षणा जहत्म्या, १६सा। २मारसी। ३ सम्माविशेष । ४ शपथ । ! मजदत्वार्धा, निरुता बीर याधुनिकादिक भेदस माफ सम्मघ । तात्पी अनुपपत्ति पारण (तात्पयका प्रकारकी है। बोध नहीं होता, मशारण) शपयापका जो सम्बध है, साहित्यदर्पणम लिना है, कि- उसे रक्षणा पहनाई। "मुशापवाय तयुका ययान्योऽय मनाया। " पेयल नम्दार्थ र कर अशेध या यान योध करनेमें ल प्रयोगनाद्वाण मन्नण चिरपिता ॥" अनेक नगद तात्पणको उत्पत्ति नहा होतो अर्थात् । (साहित्यद० २०१३) तारपा दोघ गदी होता इस कारण रक्षणा साकार! जहा मुख्य अशा धोध न हो र तयुा अर्थात् होता HOT RIो सामुण्यार्थयुत हो रूदि (प्रसिद) या प्रयोजनमिति मालूम करना फोर पर नहा होना । सहममें इस लिये जिस गति द्वारा अन्य मया प्रतीगि होता है एक्षणातिक दल मारम हो जाता है ! उसा माम मक्षणा है।