पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/१२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१२६ लक्षणादोन-तक्षसिह प्रतिपादन करता है, अनादिकालसे उस शब्दका उस । लक्षणालौह (सं०० ) औषध विशेष । इसके दनादेकी अर्थमें प्रयोग होता है। आधुनिक सङ्केत वा परिमायाके | तरकोर-लक्षणमूल, हरितवर्ण पलाममृल, त्रिकट अनुसार जो शब्द जो अर्थ प्रतिपादन करता है, उस अर्थमें, तिफला, विडग, चितामूद, मुना, अश्वगन्धामूल प्रत्येक उस शब्दका अनादिकाल से प्रयोग नहीं होता। क्योंकि, १ तोला, लौह १२ तोला, इन नवको अच्छी तरह महन आधुनिक सड़े वा परिभाषा व्यक्तिविशेष के इच्छा- कर यह औपध तैयार । दमका अनुपान घी और नुसार परिवर्तित हुआ करती है। परिभाषाकी सृष्टि होनेसे मधु है । औषध सेवन करने याद चीनी के साथ दूध पीना पहले पारिभाषिक अवोध बिलकुल असम्भव है। चाहिए । यह ऑपध बलकर है। इसका व्यवहार करनेमे रुढ शन्द देखो। स्त्रियों के कन्गाप्रस र निवृत्त हो कर पुनप्रसव होता है। इस प्रकार रूढ गटकी सिद्धि के लिये लक्षणा स्वीकृत पाजीकरणाधिकारमें यह एक उत्तम भापत्र है। हुई है। गोशब्दसे व्युत्पत्तिलब्ध अर्था गमनशील मनु- (भैपज्यरत्ना० वाजीकरणादि.) प्यादि न समझ कर गो-पशु तथा कुशल शब्दसे कुशग्राही / लक्षणिन स० वि०) १ लक्षाण या चिायुक्त, जिसमें न समझ कर दक्ष ऐसा अर्थ समझा जाता है। इस कोई लक्षण या चित्र हो। २ लक्षणय, लक्षण जनाने- प्रकार जहा जहां रूढ शब्दकी सिद्धि होगी वहा लक्षणा चाला। होगी। प्रयोजन सिद्रिका विषय पहले ही लिखा जा लक्षणीय (म० पु०) लक्षणा द्वारा मातव्य या योधव्य, चुका है। लक्षण द्वारा जाना था। साधारण भाव लक्षणाका लक्षण कहा गया। यह लक्षणोक ( स० लि. ) जंधेमें निह या लक्षणयुक्त। - लक्षणा फिर कई प्रकारकी है । साहित्यदर्पण, काथ्यप्रकाश लक्षण्य (सं० लि०) १ लक्षणयुक्त, जिनमें कोई लक्षण और सरस्वतीकण्ठाभरण आदिमें इसका विषय विशेष हो। २ लक्षणाई, लक्षण जाननेवाला। ३ देवशक्ति- भावमे लिखा है। उपादानलक्षणा और लक्षणलक्षणा सम्पन्न आदर्श पुरुष । (दिव्या० ४७४।२४) आदि मेदसे भी यह लक्षणा अनेक प्रकारकी है। लक्षदत्त ( सं० पु०) राजभेद, एक राजाका नाम । वाफ्यार्थम अन्वयवोधके लिये अर्थात् वाफ्यकी (कथासरित्सा ५३५) अर्थवोधक अन्वयसिद्धि के लिये जहा मुरय अर्थ न ले लक्षपुर (सं० क्ली० ) एक प्राचीन नगरका नाम । कर दूसरा अर्थ लिया जाता है,वही पर यह नुख्याका (ऐ०५३४) उपादान हेतु हुया है, इस कारण इसको उपादानलक्षणा लक्षसिंह ( राणा )मेवाडके एक राणा, वीरवर हामोरके कहते हैं। (साहित्यद० २०१७) पौत्र और क्षेत्रसिंहके पुत्र । ये करीब करीव १३८३ १०- ___ जहा दुसरेकी अन्ययसिद्धिके लिये मुख्य अर्थ अपनो में पितृसिंहासन पर बैठे। राज्यभार ग्रहण करते ही अर्पण अर्थात् स्वार्थ परित्याग करता है वहा यह लक्षणा! इन्होने पितृपुरुपोका पदानुसरण करके विजयविलास- होतो है । यह लक्षणा उपलक्षणके कारण हो हुया करती, सुखका भोग करने के लिये पहले मारवाडगज्यके ऊपर है, इसलिये इसका नाम लक्षणलक्षणा हुआ है। यह | दृष्टि डाली। विजयगढ़का पहाड़ी दुर्ग अधिकार कर लक्षणा सारोप्य और अध्यवसानाफे भेदसे दो प्रकारको उसे तहस नहस कर डाला तथा अपनी विजयकार्तिके है। (सहित्यद० २०१६) अक्षयस्तम्भ-स्वरूप उसके ऊपर वेदनोर-दुर्ग वनवाया। इन सव लक्षणोंका भेद नन्द और शब्दार्थ ले कर इस समय उनके अधिकृत भील प्रदेशके अन्तर्गत जावुरा आलोचित हुआ है। शब्द योर शब्दशक्ति देखो। नामक स्थानमें चांदी और टीनकी खान निकली। उस लक्षणादोन-१ मध्यप्रदेशके सिवनी जिलेका एक तह- पानसे चांदी निकाल कर इन्होंने राज्यका समृद्धिगौरव सील। भूपरिमाण १५८३ वर्गमील है। २ उक्त तहसीलके सौ गुना बढ़ा दिया था। भन्तर्गत एक वड़ा गांव । अनन्तर राणा लक्षने अम्बर राज्यके अन्तर्गत नगरा-