पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/१३२

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लचपण १२६ कल्सीने जल भर कर लाते थे। फिर कभी चित्रकुट स्थल स्वोद पर क्यन्ध और जरायुश सत्कार किया। पर्वतको पर्णशालासे सरोपर-स्ट जामके पथको चिहित दिन-रात उहे जरा भी चैन नहीं-वन आते समय करनेके लिये ऊची तपशाखा पर कपडे धाघ देने थे। होंने कहा था, "देवी सीताके साथ मैं गिरिसाउदेशमें कभी कोमल झाभके शपुर और यशपर्णस रामकी शप्या विहार करू गा, जागरित हों या निहित, उनका काम में बना कर उनकी वाट जोहते थे।कमी ये कालिन्दी पार| ही कर दूगा, खता, कुठार और धनुप हाधम लिये मैं परनेफे लिपे घेडे बनाते और उस पर संताफे पैठनेके उनके साथ साय धुमूगा।" बनासके रेप घपर्म उन रिपे सुन्दर बासन विछा देते थे। इन सयमी स्नेहधीरने पर विपद्का पहाड टूर पडा। रापण सीताको हर ले मातृसेवामें अपनी निजसता खो दी थी। रामचने गया। सीताके शोकसे राम पागल हो गये। भाइका पञ्चररी ना कर लक्ष्मणसे कहा था, "इस सुन्दर तरु यह दारण पट देख कर लक्ष्मण भी पागरसी तरह रानिपूण प्रदेशमै पालाफे लिये एक उत्तम स्थान | सीताको इधर उधर खोजने रगे। रामको थाहासे घे चूनो। रक्षमणने कहा, भाप जो स्थान पसन्दमें गोदावरीके किनारे हे खोनने आपे। आधे यही दिखला दोनिये। सेवकके ऊपर चुनना इसके बाद नामक शापप्रस्त पक्षके कहनेसे राम भार मत टीजिये।" रामचन्द्रने जब यह स्थान यता लक्षमणके साथ पम्पाके किनारे सुप्रीवको खोजमें गये। दिया, तब रमण पता हाथ लिये जमीनको चौरस सुप्रीयने राजकुमारको आते देख हनुमान्को उनके पास करने लगे। मेजा । हनुमान्ने उनका परिचय पूछा और बडे सम्मान ___एक दिन काले सापोंसे भरे हुए गभीर अरण्यम भून पूर्वक कहा, "आप दोनों भाइ दिग्विजयोसे मालूम होते और राहकी पफायटर्स सीताका चेहरा उदास देन राम | है, तथ फिर आपने चोर और घ कल क्यों धारण पिया बहुत दुखित हुए। ये भी दुखमयो रातका कष्ट सह है? आपकी बडो वही भुजा सब भूपोंसे भूपित होने न सके। पलक्षमणको अयोध्या लौट जानेके लिपे पार योग्य थी, पर एक भी भूपण नहीं दिखाई देता, सो यो । थार कहने लगे, "तुम अयोध्या लौट नामी, शोषकी यह सुनकर लक्ष्मण बहुत दुखित हुए। जो विरदिन अवस्था सात्वना दे कर मेरा माताओंश पाल्न मौनमापसे स्ने हाई हृदय पहा करते आपे है, भान ये परना।" रामकी ऐसी कातरोक्सेि दुपित हो लक्षमण स्नेहके छन्द और भापाकोरोक सके। परिचय देने ने कहा, "मैं पिता, सुमित्रा, शत्रुघ्न, यहा तक दिखग। पे पाद उन्होंने कहा 'हनुके कहनेसे बाज हम दोनों को भी तुममे बढ कर नहीं समझता।" माइ सुप्रीयफे शरणापन्न होने आपे हैं। पिन रामने शरणा ____या पर दिन दशाननको पहन सूपणखा याई और गोको अष्टित चित्तसे प्रचुर पादान किया है, लिभु रामकी प्रममिखारिणी हुइ । रामने उसे लक्ष्मण पन विरयात दशरय ज्येष्ठ पुत्र मेरे गुय यह जगत् पास भेज दिया। सयमी जितेन्द्रिय और अनाहार | पूज्य रामचन्द्र याज चाराधिपतिकी शरण लेनेके लिये किष्ट क्षमणको रमणीप्रेम बिल्कुल अच्छान लगा। यहा पहें हैं। सर्वलोक जिनका आश्रय पा पर हाथ उहनि सूर्पणछाफे नाक कान काट कर उसे निलंजताका | होता था, जो प्रजापुनके रक्षा और पालक थे, माज घे पुरस्कार दिया। सूर्पणमाका प्रार्थनासे राक्षस सेना ) आत्रय मिक्षा करके सुप्रीमफे निकट उपस्थित है। ये पति दादूपण यहा मा धमका। दोनों भाइके नुकीले । शोकाभिभूत और मात्त हैं, सुप्रीय निश्चय ही प्रसन्न तोरसे राक्षसोंका निर्मूल हुआ। सूर्पणखाके मुखसे कर उहे शरण देगे।" इता बहते रहते रक्षाका सीताके रूपलावण्यकी बात सुन कर दशानन दण्डका घिरनिरुद्ध मधु पहन लगा। वे रोदर मी हो गये। रपय माया और साताको हर ले गया। स्वण मृगरप] रामका दुरवस्था देख पर कित्तव्यविमूह हो गये, धारी मारीच रामदे शरसे यमपुर सिघारा। उनका दृढ चरित माद्र और करण हो गया। काय मरा, रायु भी मरा, लक्ष्मणने समाधि | अशोक-वनमें हनुमानसे सीताने कहा था 'लक्ष मण Vol, xx 8