पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/१३५

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१३२ लक्ष्मण भीषण शीतकालकी रातको जमीन पर सो रहे है । पारि। उस वचनको उन्होंने किस प्रकार सहो किया था, जान प्रज्यका नियम पालन कर प्रतिदिन शेष रात्रिको भरत कर आश्चर्य हो सकता है। मारोत्र राक्षसने रामके सरयूमें स्नान करते हैं। चिरसुखोचित राजकुमार स्वरका अनुकरण पर विपन्न कण्ठसे लक्ष्मण कद उस समय किम प्रकार रनान करते होंगे।" कर चीत्कार किया था। सीताने व्याकुट हो कर उसी ___ इन लक्ष गणने ही पहले भरतके प्रति इतना क्रोध | समय लक्ष्मणको रामके पास जाने फाहा । लन्मण रामकी दिखलाया था। किन्तु जिस दिन उन्हें समझमें आया, आमा उठा कर जानेको राजी न हुए। उन्होंने सीता कि वे वन वनमें घूम कर रामकी जिस प्रकार सेवा समझा कर कहा, कि दुष्ट मारीच छल कर रहा है और करते हैं, अयोध्याकी महासमृद्धिके मध्य रह कर भी कोई बात नहीं है। रामजी कुशलपूर्वक है। किन्तु भरत उसी प्रकार रामको भक्तिमें कृच्छ साधन कर रहे हैं। सोताने स्वामीको विपदाशवासे मानान्य हो अश्रुपूर्ण उसी दिनसे मरतके प्रति जो कुछ उनका बुरा भाव था, / और क्रोध भरो आगोले लक्ष मणको कहा, "तू भरतका यह जाता रहा, उनका स्वर स्नेहा और विनम्र हो| चर है, प्रच्छन्न प्रातिशत है, केवल मेरे लोभके लिये गया। किन्तु कैकेयीको उन्होंने कभी भी क्षमा नहीं रामके पीछे पीछे आया है, अगर राम पर कोई विपद् किया। एक दिन लक्ष्मणने रामसे कहा था "दशरय पड़ो तो मैं आगमें कृद महंगो'.यह सुन कर लक्षमण जिसके स्वामी है, साधु भरत जिसके पुत्र है, वह कुछ समय स्तम्भित मीर विमूढ हो बडे रहे। शोध कैकेयी ऐसी निष्ठुर क्यों हुई?" और लजासे उनके कपोल लाल हो गये। उन्होंने कहा, शरत्काल उपस्थित हुमा, किन्तु सुप्रीवका कही 'देवी ! तुम मेरे निकट देवीस्वरूप हो, तुम्हारे प्रति मुके पता नहीं। उसने राम द्वारा वाली मारे जाने पर कुछ भी कहना उचित नहीं। स्त्रियों को बुद्धि स्वभावत: प्रतिज्ञा की थी कि वह सीताको योजनेमें मदद देगा। हो भेदकारी होती है। वे विमुक्तधर्मा, करा और चपला लक्षमणने क्रोधपूर्वक कहा, 'साम्यसुखमें रत मूर्स होती हैं। तुम्हारी बात तनलीहशेलके सहा मेरे कानों में सुग्रीव उपकार पा कर प्रत्युपकारकी अवहेला करता है। घुस रदी है,-निश्चय ही मेरी मृत्यु उपस्थित हो गई, इसका मजा जल्द चसाता हूं। रामने उनका क्रोध शान्त | चारों ओर अशुभ लक्षण दिखाई देते हैं।" इतना कह फर सुप्रीयके पास भेज दिया। सुग्रीवको अपने कर्तव्य. कर लक्ष्मण वहांसे चल दिये। जाने के समय उन्होंने की वात याद दिला कर लक्ष्मणने उसे जो सव बाते सीताले कहा था, "विशालाक्षि! ममी घे सब वनदेवता फही थी, उनमें क्रोधसूचक कुछ ये हैं- तुम्हारी रक्षा करें और यह लकीर जो मैं खोच देताई, "जिस पथसे बालो गया है, यह पथ संकुचित नहीं उसे कभी पार न करना। हुआ है। सुग्रीव ! तुमने जो प्रतिज्ञा की है, उसका क्यों लक्ष मणका पुरुषोचित चरित्र सर्वत्र सतेज था । उनको नहीं पालन करता, क्या वालीके पयका अनुसरण करना पौरुपद्रप्त महिमा सर्वत्र अनाविल थी,-शुभ्र शेफालिका- चाहता ?' शिन्तु लक्ष मणका चरित्र जान कर रामने एक को तरह सुनिर्मल और सुपवित्र थी। रावण 'पुनश्च' जोड़ कर लक्ष मणको सावधान कर दिया । आज जव सीताको आकाशमार्गसे ले जा रहा था, तब उस मिथ्यावादीका विनाश करूंगा । वालीका पुत्र सीताने कुछ आभूषण नीचे गिराये थे। उन आभूपणोंको अदद अमो वानरों को ले कर जानकीको खोज करेगा। सुग्रीवन संग्रह कर रखा था। उसे देख कर लक्ष्मणने ___ केवल वातसे ही वे सन्तुष्ट न हुए, ह थमे तीर धनुप कहा था, 'मैंने हार और केयूरको सीताके वदनमें कभी ले कर तैयार हो गये। वानराधिपति उरसे कोपने नहीं देखा, इसलिये उसे नहीं पहचानता हूँ, लगा और अपने गलेमकं विचित्र क्रोडामाल्यको तोड़ केवल उनके दोनों पैके नूपुरको। क्योकि, पदवन्दना ताड़ कर रामचन्द्र के उदेशसे चल दिया। ऐसे तेजस्वी कालमें उसे अक्सर देखा करता था ।" किष्किन्ध्याको युवकको तेजखिनी सीताने जो कठोर वचन कहा था, गिरिगुहास्थित राजधानी में प्रवेश कर गिरिवासिनो रम.