पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/१३६

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लक्ष्मण-क्षणतोय १३३ णिया नपुर और पाचोम विलासमुखर निस्सन सुन ) शीकर यशोय सरदार राव राजा लक्ष्मणसिंह द्वारा पर लक्ष्मण लजित होते थे। यह लबा मन पौरुषको । १८०८६०में यह नगर बसाया गया। यह नगर दुर्ग लक्षण थी । चरित्रवान साधुका इस प्रकार जग मादिसे परिरक्षित तथा जयपुर नगरके अनुकरण पर यना स्यामाविक था। जब मदविलासी नमितादष्टि तारा है। यहा धनी महाजनांको का एक सुदर सुन्दर अट्टा रमणके पास भाइ, उसका विशाल थोणी स्खलित, लिका है। पायीका हेमसूत्र उनके सामने मृदुतरगिरा हो उठा, तर लक्ष्मणगढ--राजपूतानेके अलवार सामत राज्यके अन्त लक्षाणसे शिर झुका लिया था। इन सब गुणोंस वे र्गत पर नगर। यह अटवार नगरसे २३ मोलका दुरी दयताके समान पूजनीय थे इसमे जरा भी स ह नही ।। पर दक्षिण पूमि अस्थित है। पहले यह स्थान तौर लक्ष्मण-कह एक प्रकार और पण्डित। १ गुरुवश से परिचित था। राजा प्रतापसिंहने दुर्ग बनानेके टोकाक रचयिता १२ एक प्रकार । होने चूडामणि | वाद इस स्थानका नाम बदल कर लक्षमणगढ रखा। साद देशनिधिग्लिास और रमलन य नामक तीन प्रय, नजफ पाने इस दुर्ग पर हमला किया था। लिसे। परमह साहिताके रचयिता 18 समस्यार्णवके रमण गुप्त-काश्मीरवासी एक शैपदार्शनिक। ये प्रणेता। ५ वैद्यकयोगचन्द्रिका या योगद्रिका नामक उत्पल और गट्टनारायणके शिष्य थे। तथा ६५०३०में प्रत्यके रचयिता । ये दत्तके पुत्र तथा नागनाथ और तारा मौजूद थे। यणके शिष्य थे। ६ महामायादर्शक प्रणेता। इनके पिता लक्ष्मणचद-कीरगावके एक हिन्दू साम त राजा । इनकी का नाम था मुरारि पाठक ! पद्यामृत तरङ्गिणीत एक उपाधि राजान धी। ये निगरी (जालन्धर) राज जय फयि। ८ मृच्छाटिटोकाके प्रणेता, लल्लादीक्षितके पिता च के मधीन राज्य करत थे। इनकी माता लक्षणिका और शङ्कर दाक्षिनक पुन। लिगर्स-राजपुर हदयद्रको लडकी थी। कोरगावके एक्ष्मण-- एक हिंदू महारान। कोसामके शिलाफलक, शिववैद्यनाय मदिरमें इनकी प्रशस्ति उत्कीर्ण देखी में यही सम्यत् उत्कीर्ण देखा जाता है। २ कच्छपघात | जाती है। घशीय पक राजा, वन्न दामनके पिता। ये १०वों सदीके लक्ष्मण ठाकुर-सिपिलाके एक राजा ती महाराज मन्तों विद्यमान थे। ३ बङ्गालके सेन्पशीय एक शिवसिंहफे पूर्णपुरुष । गजा। पे राजा फेशवसेनके पौत्र और नारायणके पुत्र लक्षमणतीर्थ-पुराणोक एक प्राचीन तीथा। इस नदीके थे। ऐतिहासिा अघुल फजलने नारायणको 'नौजेव" | जल में स्नान करनेसे अशेष पुण्यलाम होता है। नारद नामस मोर सेनव शक शेप स्वाधीन राजा कह कर पुराण ७, अध्यायमें इस तीर्थमाहात्म्यक वन है। उल्लेख दिया है। लक्ष्मणसेन और धन्नदेश देखा। यह दक्षिण भारतमं प्रवाहित कावेरी नदोको एक एक्ष्मण मावाय-१ चण्डाकुपवतीके प्रणेता । २ शाखा है। पुर्गराज्यमें ब्रह्मगिरिसनिहित फुङिग्राम के जगम्मोहानामा ज्योतिर्मयके रचयिता। ३ पादुका पाव देशसे निकल कर उत्तर-पूर्व की ओर मदिसुर-राज्य सहन, विरोधपरिवार और घेदार्शविचारफे प्रणेता। होती हुइ कावेरी सङ्गममें मिली है। यहाको नदोर्म सात लक्ष्मणकयन (स. लो० ) १ लक्षमणी स्तुति करनेका बाध है जिससे वेत पटा बडी सुविधा हो गई है। इन एक स्तोत । २धरणीविशेष। सय पार्थों में हानागोद वाध सबसे पदा है। लक्ष्मण फरि-वृष्णपिलासम्पूके रचयिता। २ चम्पू उत्पत्ति स्थानसे कुछ दूर पर्वत पर मानसे ब्रह्मगिरिमें रामायण युद्धकाएर प्रणेता। एक बडा जलप्रपात दिखाई देता है। यही प्रपात लक्ष मण लक्ष्मणकुण्डद (स.को.) पर ती का नाम । तीर्थ नामसे प्रसिद्ध है। यहा प्रति घामें हजारों भादमी लक्ष्मणगढ-रानपूतानेके जयपुर राज्यके शेखावाटी जिला स्नान करने आते हैं। जिस पथसे इस तीर्थ में थाना म्यगत एक नगर। जयपुर राज्यके अधीनस्य सामन्त ! होता है यह पदा ही विस्मयजनक है। पथक दक्षिण Vol LL.