पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/१४६

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लखनऊ थे। इसके बाद विमाडाके शेनोन आ पर अपना राजा जयचदने अन्ग, उदन गार बनाफर राजपून नातिकी प्रभाव फैलाया। इसके बाद अन्यान्य मुसलमान सम्प्र सहायनासे विजनोरके निकटस्थ ायपन पर हमला कर दाय कुसी और देवास हाता हुआ यहा धस गया था। दिया। घे यहाके पासोराज विगलोको पराजित कर प्रवाद है, कि मुमरम'नगण सविधसे यदा आये थे। ससाया और देवा तक अग्रसर हुप पामी और मरखोने सविखसे मुसम्मान लोग घार धार इस जिरेके | मलिहावाद तथा फकोरी और विजनारके दक्षिण सई Tाना स्य नोंको आश्रमण परफे मी स्थायी प्रभुत्व लाम तीरपत्ती सासन्दा तफ अपना दपल जमाया था। इसके न कर सके। रोग सलार मसाउदके सेनापति माह पहले यहा भर जातिका मधिकार और प्रभाव घेगो अधीन पदले देवा नगरको मारमण र लायनऊ। विस्तृत था। होस मएिग्रोम तक बढे ये। यहा शाह वेग हिन्दुओंस पासी और अरखाण यहाके आदिम अधिषासी परास्त और निहत टुमा । निक्टवत्ता ए प्राममें उसका है। ये रोग दुद्ध प मोर शरायो होते हैं। अन्यायी मयपरा मौजूद है। उसकी चोटी बहुत ऊची है, इस । उसकी चोटी बदत ऊची है. इस | अधिवासियोंको शराब पिला पर ये लोग उना मखि पारण लोग उस नी गजापौर कहते है। पीछे यहा मुमर लूट लेते थे । भर जातिक सम्बधम भी ऐसी ही एक मान शासनकर्ता गियुक्त होनेफ याद क्रम देवाम / किंवद ती प्रचलित है। राजा तिलाचदही पुसी और लखनऊसे कोरो परगना तक विस्तृत यहा भरराजघशक्षा प्रभाव फैला। वराइच नगरमें उसकी स्थाकि प्रामादिमें मुमलमान उपनिवेश बसाया गया। राजधानी थी। उसने दिपतिको हरा पर दिल्ली पर घे लोग धीरे धारे एक एक स्थान जीत कर वहाका सर अधिकार जमाया । उसके बाद राजाओंने दिलीसे दार कहलाने लगे। अयोध्या पतिप्रात तक रायशासन किया था। इस । स्थानीय प्रवादसे जाना जाता है गिजपून योर घशफे राजा गोविन्दचदका स्त्रो मोमादेवी गज्यशासन मुसलमान जोगिनिकोंके पहले यहा भय, अरख और कर १०९३ ईमें परलोकवासिनी हुई। मरते समय पासी नामक निम्नश्रेणीको कुछ जातियोंका यास उन्होंने अपनी समत्ति अपने धगगुरु हरगोविन्दको दान या। भयो वा मूगरशी राजाओंका प्रभाव जय लुप्त J पर दी थी। उत्त हरगोविन्दफे घशने १५ पोटी तक हुया तप भरोंने इस प्रदेशको लूटा । यहाँक बने जगल यहाका शासा किया था। मैं आमिपि तपस्या पिया पाने थे। इस कारण ! लखनऊ नगर भोर सेनायास, कोरी, मलिहाबाद का पोर धन स्थानाय लोगोंके निकट परम पुण्य | और अमेठी यहाा प्रधान गर और वाणिज्यद है। पान समझा जाता था । घे सब पि जिस जिस रवी, खरीफ और हेमतिकादि धान फाफा उपजता स्थानमें रहने थे, यह ममी नगररूपम परिणत होने पर है। नाच द्वारा यहामा पाणिज्य उतना नही चलता। मी उही पियों के नामसे पुकारे जाते हैं। मण्डियौन अधिकार रेल्पय और पको सरासे थैलगाडी द्वारा ही मएडल पिके नामस, मोहन मोहनगिरि गोस्वामीके ] चलता है । सीतापुर, फेजावाद और कानपुर माने नामसे गौर जगदेव योगीके नामसे तथा देवा देवल | मानेके लिये जो सहक गई है यह प्राय: ५ सौ मील लम्बी पिके नामसे अमिन हुमा । भर डकैनाने 7 सव है। इसके सिया कुसों, देवा, सुरतानपुर, गोसाइगक्ष पियोंका आश्रम लूट कर १२ सदोंमें सह नदीके | और अमेटी हो कर सुलतानपुर, मोहनलालगन हो कर । तरबत्ती भूमार्गोका शासन किया था। रायबरेली, सहनदीका सुदर पुल पार कर मोहन और पे लोग शित नाम पहाडी भाविकी तरह तराइ । उन्नाव जिले के रसूतावाद और मलिहाबादसे हरदोई प्रदेशसे यहाँ माये थे। आज भी भरविदोका भग्नावशेष जिलेके शाण्डिल्य मगर तक सडक गह हैं। यहाके माना प्रामि पड़ा है। पन्नोज राजयशने अपने | इन समो सडोंसे लखनऊ नगर पा सकते है। भधापनसे पहरे भरोंका दमन करने कोशिश की थी। फिर कुछ सडके यहासे भम्याग्य जिरोंक प्रधान प्रधाा