पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/१५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

लखनऊ १५४ त्सव हुआ करता था। यहांसे दक्षिणकी ओर घूम कर उसे हस्तगत कर अपनी प्रियतमा स्त्री मसुक-उप मुल. एक आच्छादित द्वार पार करनेसे चीनीयागमें जाया तानको रहने के लिये दिया था। पीछे एक दूसरा जिली. जाता है। यहां चीनी कांचक पानादिने उद्यानभोगको! खाना पाट करनेसे दर्शक राजपथ पर पहुंचता है। अलकृत कर रखा है। वहाले नग्नाकृति रमणी मूर्तिसे लखनऊ गरेजोंके अधिकारमें आनेके बाद यहांके परिशोभित पक प्रवेशद्वार अतिक्रम करनेसे हजरतवाग | रथापत्यशिल्पकी गौरवमापा और किसी भी प्रकारको में पहुंचते हैं। वह नग्न प्रतिकृतियां १८वीमे अमार्जित | अट्टालिका न वनाई गई। केवल कुछ दातव्य चिकित्सा- यूरोपीय रुचिसे बनाई गई हैं। हजरतवागके दक्षिण लय, विद्यालय और राजकार्यालय बनाये गये थे। वल- चण्डीवाली, चारद्वारी और खासमुकाम वा वादशाह रामपुरके महाराज सर दिग्विजयसिंह के. सी. एम, आई. मंजिल है। इस दौरद्वारीकी मेज एक समय चांदीसे ने रेसिडेन्सिकी वगलमें एक अस्पताल वनवा दिया है। मढ़ी हुई थी। बादशाह मजिल सयादत् अली खां द्वारा ____ उपरोक्त दोनों इमामबाडे, छत्रमझिल, कैसरबाग प्रतिष्ठित होने पर भी वाजिद अलीशाहने उसे अपने और अयोध्या गजवंशघरोंके यन्याय प्रासादोंको छोड नवप्रासाद चित्रके अन्तर्भुक्त कर लिया। उसके वाम कर यहां सयादत् अली खां, मुसिदजादी, महन्मद अली भागमें और भी कितनी अट्टालिकाये हैं जिनगेंसे राज- शाह और गाजी उद्दीन हैदरका समाधिमन्दिर देखने क्षौरकार आजिम उल्ला बांका बादलक्ष्मी नामक वास- लायक है। पतन्दिन्न बहुत सी उद्यानवाटिका, हवामाना, भवन उल्लेखनीय है। नवाब वाजिद अलीने चार लाख देवमन्दिर, मसजिद और धनाढा नगरवासियों का वास. रुपये में इसे खरीदा था। इस अट्टालिका प्रधान बेगम भवन भी स्थापत्यशिल्पसे परिपूर्ण है । १८वी सदीकी और राजमहिपो रहती थी। सिपाही विद्रोहके समय | घृणित स्थापत्यरुचि जव इङ्गलैण्डसे,दूर,झो गई, तब उस- इस प्रासादमें रह कर उसकी एक वेगमने विद्रोहिदलको ने भारतमें प्रवेश किया। भोगविलासलोलुप मुसलमान- सहातार्थ दरवार लगाया था। इसके पासघाले अस्तवल राजोंने उसको यूय अपनाया। प्रत्नतत्वानुमन्धित्सु में अङ्करेज वन्दी रखे गये थे। फागुंसनने इस नगरके स्थापत्यशिल्पका उल्लेख यों ___इसके पार्श्वस्थ-पथकी वगलमें वृक्ष है । उस वृक्ष किया है,-No caricatures are so ludicrous or so का तला मर्मर पत्थरका बंधा हुआ था। मेलेक दिन | bad as those in which Italhan detail are intro- नवाव फकीरके वेशमें पोला कपड़ा पहन कर वहां बैठे duced १८५६ ई०की ७वी फरवरीको अगरेजराजने रहते थे। अयोध्याप्रदेशको जीत कर लपनऊके राजा वाजिद अली पूर्वकी ओर खालीद्वारा लाख रुपया खर्च कर बनाया। शाहको कलकत्तेका गढ़ातीरवत्ती मुचीखोला नामक गया था। उसे पार करनेसे कैसरवागका प्रकृत उद्यान रथानमें नजरबंद रखा। उसी भवनमें १८वीं सदीको प्राङ्गण देखने में आता है। इसके चारों ओर अन्तःपुर लखनऊके अंतिम नवावकी मृत्यु हुई । कामिनियोंका प्रासाद है। इस प्रासाद-प्राङ्गणमें प्रतिवर्ष सिपाही-विद्रोह । भादोंके महीने में मेला लगता है । इस मेले में लखनऊवासी __मीरटनगरमें सिपाही-विद्रोहव हि धधकनेके दो मास क्या हिन्दू क्या मुसलमान सभी जमा होते हैं। इसके बाद १८५७ ई०की २री मार्चको सर हेनरी लारेन्स नवा- वाद प्रस्तरनिर्मित वारद्वारी है । वह अभी रङ्गमञ्चमें परि धिकृत अयोध्याप्रदेशके चीफ कमिश्नर नियुक्त हुए। उस णत हो गया है। पश्चिमका लाखीद्वार पार करनेसे समय लखनऊ दुर्गमें ३२ अंगरेज सेनादल, एक दल यूरो- 'कैसर-पसन्द' नामक प्रसिद्ध प्रासाद मिलता है। उसे | पोय कमानवाहो सैन्य. ७ नम्बरके देशी अश्वारोही सेना- नासिर उद्दीन हैदरके मन्दी रौशन-उद्दौलाने बनवाया दल तथा १३, ४८ और ७१ नम्वरके देशी पदाति नगरके था । उसका ऊपरी भाग अर्द्ध गोलाकार स्वर्णमय समीप दो दल सेनादल तथा स्थानीय इरेगुलके पदातिक, आमरणसे आच्छादित है । नवाब वाजिद अलीशाहने एक दल सामरिक पुलिस-सेना, दो दल देशो कमानवाहा