पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/१५९

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लग्न लग्न (सं० क्ली० ) लगत फले इति लग मङ्गे (त्र्यसन्ते । लग्ननिरूपण किये जाने पर अर्थात् किमी एक बालकका ध्यान्नलग्नेति । पा ७२।१८) इति निपातनान् साधुः। जन्म होने पर अथवा किसी व्यक्ति द्वारा प्रश्न किये जाने १ ज्योतिपमे दिनका उतना यश जितने में किसी एक पर बालकका किस लग्नमें जन्म हुया है अथवा किम राणिका उदय होता है। अहोरात्रके मध्य द्वादश राशिका लग्नमे प्रश्न किया गया है, इस जाननेमे निमोक्त उदर होता है, इसलिये अहोरात्रम द्वादशलग्न कल्पित | प्रणालोके अनुसार लग्न स्थिर करना होता है । हुए हैं। 'राशिनामुदयो लग्न' ( दीपिका ) प्रति दिवा लग्न स्थिर करने में पहले उसी दिनकी रविभुक्ति स्थिर रातमे यथात्रामसे द्वादश राशिका उदय हुआ करता है। 'करनी होती है। साधारणतः रबिभुतिका अर्थ यह, कि इस एक एक राशिके उदितकालके मानको लग्नमान राशिमान या लग्नमानमा जितना अंश रवि द्वारा भुक्ति कहने है। या जितना अंग रविने मोग किया है। रवि एक एक पृथ्वी ६० दंड यानी दिन गतमें एक बार अपनी धुरी मासमें एक एक राशि में रह कर बारह महीने में बारह पर घूमती है। इमीको पृथ्वोकी आहिकगति कहते है। राशिका भोग करते है। जिम मासकी जिस राशिमें इस एक बाहिरगतिवगतः पृथ्वी मेघ आदि हादश सूर्य उदय होते हैं। उसकी सातवी राशिमे वे अस्त राशि अतिक्रम करती है। सुतरां इससे सहज में हो जाना होते हैं। जैसे वैशास्त्र महीने में सूर्य मेप गशिमें उदय जाता है, कि एक राशि अतिक्रम करने में प्रायः५ दंड होते और सातवीं तुला रानिमें सम्न होते है । सूर्य लगता है। किन्तु सूक्ष्मरूपसे गणना की जाने पर सब प्रतिदिन राशिके कुछ अंश बढ़ते वढते मासके अन्तमें लग्नोंका लग्नमान समान नहीं होता। इसका कारण राशिक सीमान्त प्रदेशमे पहुंचते हैं। इस प्रकार सभी यह है, कि पृथ्वीका आकार विलकुल गोल नहीं है। राशि रवि द्वारा भुक्त होती है। इसमें प्रत्येक दिन राशि इसीलिये लग्नमानको बती वढतो हुआ करती है। से कुछ कुछ बढ़नेमे जो समय लगता है, उसे सूर्यको सूर्यादयके समय जिस लग्नका उदय अर्थात् पूर्वाकाशम दैनिक रविभुक्ति या गति कहते हैं । उदय लग्नकी प्रकाश होता है, उसे उदयलग्न तथा सूर्यास्तके समय रविभुक्ति उदयरविभुक्ति तथा अस्तालगनकी रविभुक्ति जिस लग्नका उदय होता है, उसे अस्तलग्न कहते है। अस्तरविभुक्ति कहलाती है। फिर यह लग्नमान सव देशोंमे समान नहीं है। ___सूर्यको अयनगतिसे इसका परिवर्तन हुआ करता | लग्नमानको मामको दिनसंख्या द्वारा भाग देने पर है। ६६ वर्ष ८ मासमें सूर्य एक मास हट जाते हैं | जो भागफल होगा, वही दैनिक रविभुक्ति है। और इससे लगनमानका भी कुछ प्रभेद हो जाता है। प्रति | उपायसे मी रविभुक्ति जानी जाती है, किन्तु यही तरीका वर्षकी पञ्जिकामे अयनागमोधित लगनमान दिया जाता ) पटियाना सवसे सहज है और इसीसे सूक्ष्मरूपसे रविभुक्ति स्थिर है उसको देख कर लगनमान स्थिर किया जाता है । ६६ होतो है। वर्ष ८ मासको वाद सूर्यके एक अंश हट जाने पर भी लानमानके उपलको दूना कर उसके दडको पल इसी लगनमानके अनुसार लगन स्थिर करनेसे करोव | तथा पलको विपल करनेसे दैनिक रविभुक्ति निश्चित करीब ठीक होता है। सामान्य २२१ पलका तारतम्य होगी। जैसे मेप लग्नमान ४७ पल है, इसका दूना हो सकता है। करनेसे ८।१४ पल होगा। यहां पर ८ दंडको पल प्राचीन लगनमान- करनेसे ८ पल १४ रिपल दैनिक रविभुक्ति होगी, यही "गमागवेदैनधिस्नु मैत्र योग : पञ्चखसागरेश्च । जानना होगा। यह जो नियम कहा गया, वह उस प्रायाः कुवैटविण्यालय मेः क्रमात् नमान्मपतुलादिमानम् ॥" हालतमें जब तीस दिनका मास होता है। मासकी (ज्यातिःसारस०) कमी वेशी होनेसे समयमे भी कुछ फर्क पड़ जाता है। लम्ननिरूपणकी प्रणाली-किसी निर्दिष्ट समयका रविभुक्ति स्थिर करनेका और भो एक नियम है।