पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/१६२

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१९७ रविस्थित नक्षत्रके अनुसार भग्नपरीना। यदि दोपहर | परदेशमें, राहमें वा और किसी जगह तथा स्थिरसहक दिनको जाम हो, तो रवि निस नक्षत्रमें ई, उस नक्षत्रमें | राशि होनेसे अपने घरमें म्यसम्पीय गात्मीय घर, प्रस्व अर्थात् उस नक्षवरित निस राशि मधया रविस्थित होगा, ऐसा जानना चाहिये। मानसे सम्म नक्षतम जो राशि होती है यह राशि जम ____दीपति द्वारा लग्ना अश निरूपण-स्नेहमय सन्द्र यदि लगन होगी। दोपहर दिन बाद शाम तक रविभोगा राम प्रारम्भमें रहे, ती प्रदीप तेलसे भरा था, यदि मध्य नक्षसे द्वादश नक्षत्रघटित जो राशि होगी, उसोको भागमें रहें तो आधा तेल था और यदि घे शेष भागमें जम्मरगन समझना चाहिये ।सध्या के बाद दोपहर रात ! रहे, तो प्रदीपमे थोडा तेल था, ऐसा जाना होगा। कोई को जाम होनेसे रविमोगा नक्षत्रसे सत्तरह वा उन्नीस कोई कहते हैं, किच दफे पूर्णापूर्णत्यमेदसे तेर का रहना नक्षत्र तथा दोपहर रात वादसे रे पर सूर्योदय से पूर्व स्थिर दिया जाता है कि तु यदि प्रदीपकी पत्ती दग्ध हो तक चौवोस नक्षवघटित जो राशि होगी यही लगन होती रही हो, तो जानना चाहिये कि लगनके प्रारम्भ में प्रथम चन्द्रराश्याधिप योर रविभीगा नक्षत्र घे दोनों नियम भागमे जम हुआ है । उस बच्ची से आधी दाय हे गये। इन्हीं दोनों नियमों में अक्सर लगन निरूपण होनेसे लग नवे मध्यमागमें तथा अधिकाश दग्ध करते देखा जाता है तथा इसोफे अनुमार लगन स्थिर होनेसे शेष भाग जाम हुगा है, स्थिर करना होगा। किया जाता है। (यूहन्नातक) ____ लग्न हो जातकका शरीर है, इस कारण लगन परीक्षा जामलग्नम यदि शीपर्योदय हो तो गर्भम्प शिशु मस्तर। मच्छी तरह का उचित है। जातक लग नमे किस द्वारा, पृष्ठोदय होनेसे पाद द्वारा तथा दोनोंका उदय । क्सि विषयका विचार किया जाता है उसका विषय नोचे हो, तो हम्त द्वारा भूमिष्ठ होता है। फिर यदि जाम । लिया जाता है। हममें शुभग्रहकी दृष्टि या योग रहे, तो सुख और यदि लग्नमें देदका परिमाण, रूप, यण, आयसि, पापप्रहको दृष्टि चा योग, तो कास प्रसव होगा, ऐसा शरीर चिह, यश, गुण और निर्गुण, सुख और दुल, जानना चाहिये । इस पर मनित्य नामक एक ज्योतिर्विद प्रवास और स्वदेशवास, सवल और दुर्घल, शान, कहते है, कि सानपति या रनका नयाशपात यदि वो चरित्र, स्वभाव, नारोग्य, प्रशसा, मान, इन्द्रिय निप्रद, हो अथवा यदि कोई धनी प्रहरग्नमें रहे, तो विपरीत । वयोमान अधात् मायुका स्थूल परिमाण जाति, भावम अर्थात् इस्तपदादि द्वारा गर्भस्थ शिशु बाहर फ्लेग मागिनेयवधू, पुखीविचार, चेष्टा, कटु ल्यण और निस्सा है। जातकके रोकार महोत्परका पहना तितादि रस, पितामही, मातामह पुलका भाग्य, मनुकी है कि शापों य रम्नमें गर्भस्थ शिशु ऊद पोदर, ऊधा, मृत्यु वैद्य, सारेका पुत्र, सासनी माता पितामहको मुख और निम्नपृष्ठ हो पर नया पृष्ठोदय लग्नमें अधो, सम्पत्ति स्वदेशभाग्य और विदेशमाग्य, मस्तक सूतिका मुख ऊर्धपृष्ठ हो कर जमरता है। गार और कीर्ति, इन सबका विचार करना होता है। मेष, गृप या सिह इसके अायतम लानम यदि जम अधात् इन सबका विचार करने लग्नसे हो देखना दी, तथा उसमें यदि शनि या महल रहे, तो गभस्थ शिशु होता है। नाडीवाहित हो कर उत्पन्न हुआ है, ऐसा जानना होगा। जातकालङ्कारमें लिखा है, लिम्न और गजपति लग्नका उदित नराश जिस शशिके खरूप होगा उस दोनों ही बलवान होनेमे रुगनभावोत्य कालकी वृद्धि तथा राशि जातकका जो अङ्ग निरूपित होता है, वहा अह दुयल होनेसे फल की हानि होती है। इस प्रकार अन्याय नाडीयेरित था, जाना होगा। मिलगन राशि और मानस्थल में ही भावराशि और मायपतिफ शुभाशुभके लग्नकी नराय स्वरूप राशि पल्वान होती है उस राशि अनुसार शुभाशुमको कल्पना करना होगा। के सश्चरण स्थान प्रसारथानको कल्पना करना होग-1 एक लग सक ऊपर ही सभी भारफल निर्भर करता है लगन या नवाश राति चरसमा होनसे घर बाहर, लगनमें गोलमाल होनेसे समा फल गोलमाल हो जाते हैं।